नई दिल्ली (शौर्य यादव): कोरोना महामारी के बीच देश भर में मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्शन सैक्टर (Manufacturing and production sector) सुस्त पड़ा हुआ है। मांग में गिरावट आने के कारण कई लोगों को नौकरियों से हाथ गंवाना पड़ा, साथ ही बहुत से लोग जिनकी नौकरियां सुरक्षित है। उनके वेतन में कटौती की जा रही है। ऐसे हालात में जब बेरोजगारी की दर अपने चरम पर है, डीजल और पेट्रोल (Diesel and petrol) में दामों ने आम नागरिकों को चिंता में डाल रखा है। ये देश के इतिहास में पहली बार है कि डीजल और पेट्रोल के दाम बराबर हो गये है। बीते बुधवार को राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 79.76 रूपये और डीजल की कीमत 79.88 रूपये दर्ज की गयी। पिछले 18 दिन के आंकड़े बताते है कि, डीजल के दामों में 10.48 रूपये और पेट्रोल के दामों में 8.50 रूपये का इज़ाफा दर्ज किया गया है। कीमतों की डोर आम आदमी पार्टी और केन्द्र में बैठी भाजपा दोनों के पास है। जैसे ही दोनों अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले टैक्स की हिस्सेदारी बढ़ाते है, दामों इज़ाफा होता है।
बीती पाँच मई के दौरान दिल्ली सरकार ने डीजल पर वैट बढ़ाकर 16.75% से 30 फीसदी कर दिया। ठीक उसी दौरान पेट्रोल पर भी वैट 27% से 30 फीसदी कर दिया गया। इन सबके बीच सबसे अहम डीजल की कीमत है, क्योंकि माल-ढुलाई और ट्रांसपोर्ट सैक्टर (Transport sector) इसी पर निर्भर करता है। रोजमर्रा के सामान और माल-ढुलाई की कीमतों पर इसका सीधा असर होगा। ट्रांसपोर्टर (Transporter) ज़्यादा किराया वसूलेगें, जिसका भार आम जनता की जेबों पर पड़ेगा। रोजमर्रा के सामानों की कीमत में बढ़ोत्तरी होनी तय है। जहाँ एक ओर आम जनता की जेब और चूल्हें पर कोरोना ने सेंध लगाई, वहीं दूसरी और डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी दोहरी मार बनाकर सामने आया है।
मौजूदा वक़्त के मुताबिक नोएड़ा और गाजियाबाद में डीजल पर वैट दर 10.41 फीसदी है। वहीं गुरूग्राम और फरीदाबाद में वैट दर 9.11 प्रतिशत है। अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गयी है। मई महीने के दौरान क्रूड ऑयल (Crude oil) का मूल्य 30.60 डॉलर प्रति बैरल (Dollar per barrel) दर्ज किया गया था। भारतीय ग्राहक पेट्रोल और डीजल पर 64 फीसदी कर का भुगतान करते है। यानि की कुल मूल्य का दो-तिहाई पैसा सरकारी खाते में जाता है। बीते बुधवार के आंकड़े के मुताबिक 79.76 रूपये प्रतिलीटर पेट्रोल और 79.88 रूपये प्रतिलीटर डीजल पर आम जनता ने तकरीबन 50.69 रूपये टैक्स भुगतान किया। केन्द्र सरकार ने 2 महीनों के दौरान करीब-करीब दोनों पर ही 13 रूपये का कर बढ़ाया है। ऊपर से इन दोनों की राशि में राज्यों का लगने वाला टैक्स अलग है।
साल 2014 जून महीने के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार (International market) में कच्चे तेल की कीमतें औसतन 48.66 डॉलर प्रति बैरल थी। उस दौरान सबसे ज़्यादा कीमत 61.36 डॉलर प्रति बैरल दर्ज की गयी थी। मौजूदा पेट्रोल और डीजल की कीमतों से केन्द्र और राज्य सरकारों (Central and State Governments) को संयुक्त रूप से तकरीबन 3 लाख करोड़ रूपये की आमदनी होना तय है। ऐसे में चीज़ों के दाम बढ़ना तो तय है ही। साथ उन लोगों की जेब पर बड़ी कैंची चलेगी जिनके पास डीजल कारें है। एक तो डीजल कारों के दाम पेट्रोल कारों की अपेक्षा ज़्यादा होते है। उन्हें चलाने की मियाद भी कम होती है। जहाँ पेट्रोल कारें सड़कों पर कानूनी रूप से 15 साल चल सकती है, वहीं डीजल कारें 10 साल चलती है। आमतौर पर लोग डीजल कारें इसलिए खरीदना पसन्द करते है, क्योंकि उन्हें पेट्रोल की तुलना में चलाना सस्ता पड़ता है। लेकिन जिस तरह से दोनों की कीमतें एक पायदान पर आ खड़ी हुई है, उसे देखते हुए डीजल कारों का ग्राहक खुद को ठगा महसूस कर रहा है।
मामले पर केन्द्र और राज्यों सरकारों को पहल करते हुए टैक्स की दरों को घटाना होगा। मोदी सरकार की अपील नकारते हुए जिस तरह से कई संस्थान लोगों की नौकरियों और जेबों पर सेंधमारी कर रहे है, उससे लोगों में भारी असंतोष है। दूसरी तरफ आम जनता मंहगाई और कोरोना महामारी (Inflation and corona epidemic) से त्रस्त है। ऐसे में डीजल और पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी सरकार के खिल़ाफ आक्रामक माहौल (Aggressive atmosphere) तैयार कर सकती है। फिलहाल राजधानी वासी इसके पीछे की वज़ह तलाश रहे है। डीजल और पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी का जिम्मेदार कौन है, आम आदमी पार्टी या केन्द्र में बैठी भाजपा ?