नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): 18 सितम्बर 2020 से 16 अक्टूबर 2020 के दौरान मलमास (Malmas 2020) पड़ेगा। इसे अधिकमास, पुरूषोत्तम मास आदि नामों से भी जाना जाता है। भारतीय वैदिक ज्योतिष परम्पराओं (Indian Vedic Astrologer Traditions) के अनुसार जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उस मास को मलमास कहा जाता है। हिन्दू पंचांग सूर्य और चन्द्र की गति गणनाओं पर आधारित होता है। जिसमें एक सूर्य वर्ष 365 दिन और 6 घंटे का होता है और चन्द्र वर्ष 354 दिनों के बराबर माना जाता है। दोनों के वर्षों के बीच का अन्तर तकरीबन 11 दिनों का बनता है। घटती-बढ़ती तिथियों के अन्तर को बराबर करने के लिए हिन्दी पंचांग में हर तीन साल में एक बार मलमास आता है। ये ठीक अंग्रेजी कैलेंडर की लीप वर्ष की भांति है।
इस दौरान पुरूषोत्तम मास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु की आराधना और उनके बीज़ मंत्रों का जाप जातकों के लिए विशेष लाभकारी और अमोघ फलदायी होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अधिक मास को लोग मलमास कहकर संबोधित करने लगे। इससे व्यथित होकर इस कालखंड ने मूर्त स्वरूप धारण करके बैकुंठ लोक की ओर प्रस्थान किया। शेषशैय्या पर शयन कर रहे भगवान विष्णु (Lord Vishnu) से अपने मन की व्यथा कही। भगवान विष्णु ने मलमास को वरदान देते हुए स्वयं मलमास के अधिपति बन गये। तब से मलमास या अधिकमास को पुरूषोत्तम मास कहा जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि इस माह में किये गये ज्योतिषीय प्रयासों से कुंडलिनी दोषों का निवारण अतिशीघ्र होता है। धार्मिक कार्यों का फल अन्य मासों की तुलना में दस गुना मिलता है। साथ ही जातकों को अश्वमेघ यज्ञ के समान यश और शौर्य की प्राप्ति भी होती है।
क्या खास है, इस बार के मलमास में
इस साल आने वाला मलमास अपने साथ कई अद्भुत ज्योतिषीय संयोगों को लेकर आ रहा है। ये नक्षत्र संयोग 2020 के बाद सीधे 2039 में दुबारा बनेगें। 18 सितम्बर को मलमास की शुरूआत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शुक्ल नाम के पावन योग के साथ होगी। इस दौरान 26 सितंबर और 1, 2, 4, 6, 7, 9, 11, 17 अक्टूबर सर्वार्थसिद्धि योग की नक्षत्रीय दशायें बन रही है। इन तिथियों पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, विष्णु कवच का जाप, श्रीमद् देवीभागवत, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण और श्रीमद् भागवत पुराण का वाचन-मनन-श्रवण-चिंतन अमोघ फलदायी है। इन विशेष तिथियों पर शास्त्रोक्त विधान से भगवान विष्णु की आराधना कर जातकों के सभी मनोरथ पूर्ण होते है। साथ ही 19 व 27 सितंबर को द्विपुष्कर योग बना रहा है। इस दिन किये गये दान-जप-ध्यान-नाम संकीर्तन का दुगुना फल जातकों को प्राप्त होता है। 10 अक्टूबर के दिन रवि पुष्य और 11 अक्टूबर को सोम पुष्य नक्षत्र के दुर्लभ संयोग बन रहे है। इन दोनों तिथियों में की गयी खरीदारी अत्यन्त शुभ मानी जाती है। 2 अक्टूबर के दिन प्रात: 06:14:47 बजे अमृतसिद्धि योग भी बन रहा है। अमृतसिद्धि योग का एक दिन, दो दिन पुष्य नक्षत्र के, नौ दिन सर्वार्थसिद्धि योग के, दो दिन द्विपुष्कर योग, एक दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शुक्ल योग इस तरह पुरूषोत्तम माह के ये सभी ज्योतिषीय संयोग और नक्षत्रों के एक साथ बनने की दशा 160 बाद यानि कि 2039 में दुबारा बनेगी।
पुरूषोत्तम मास के विशेष नियम-विधान
- मलमास में मांगलिक विधान और कार्य जैसे विवाह, प्राण-प्रतिष्ठा, देव प्रतिमा स्थापना, मुंडन, कर्णवेधन, जनेऊ, नववधू गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण आदि पुनीत मांगलिक संस्कार और कार्यों को नहीं करना चाहिए। हालांकि संतान जन्म से जुड़े संस्कार जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत संस्कार संपन्न किये जा सकते हैं।
- अधिकमास में भगवान विष्णु के सभी अवतारों के पूजन और वंदन का ज्योतिषीय विधान है। साथ ही चौरासी कोसी ब्रज भूमि की परिक्रमा करना विशेष लाभकारी माना जाता है। फिलहाल कोरोना संकट के कारण ब्रज परिक्रमा करना संभव नहीं है, ऐसे में मानस भक्ति अत्यंत लाभकारी है।
- अगर किसी मांगलिक कार्य का आरम्भ मलमास की शुरुआत से पहले हो चुका है तो उसे पूर्ण किया जा सकता है। मलमास लगने से पहले मकान बनाने का बयाना और कागज़ी कार्रवाई हो चुकी हो और नींव पूजन भी किया जा चुका हो तो भवन निर्माण का कार्य मलमास में भी किया जा सकता है।