गरुड़ पुराण के अनुसार (Garud puran) अतृप्त आत्माएं बनती है भूत। जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छायें और भावनायें लेकर मरा है, अवश्य ही वो भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वो भी प्रबल भूत आत्मा बनकर भटकता है।
ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिये श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।
यम नाम की वायु: वेदों के अनुसार मृत्युकाल में ‘यम’ नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है, तब वो गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।
जन्म मरण का चक्र: जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जागृति में जाती हैं। उसी तरह मृत्युकाल में वो जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सुषुप्ति में चली जाती हैं। फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति (Deep Sleep) में। ये चक्र चलता रहता है।
भूतों की भावना: भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़े होते हैं। ये हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।
भूतों की स्थिति: ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से ये दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को ये मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।
भूतों की ताकत: भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके और वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर (Subtle Body) कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार ये 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं।
कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वो बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत अगर बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। ये किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि ये किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं।
ये भी कि ये किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ठोसपन न होने के कारण ही भूत को अगर गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाये तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है। इसलिए वो केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।
अच्छी और बुरी आत्मा: वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है। उसे पितृलोक और जहां बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। प्रेतों की शक्तियों को नकारात्मक और पितृों की शक्तियों को सकारात्मक बताया गया है। पितृों की आत्मायें देवतुल्य होती है।