भारतीय वैदिक और ज्योतिष परम्परा (Indian Vedic & Jyotish tradition) के अनुसार विवाह और पाणिग्रह संस्कार ग्रह दशा और पूर्व जन्मों का प्रतिफल होता है। ऐसे में अनुकूल ग्रहदशा में उत्तम वर-वधू की प्राप्ति और संयोग बनते है। पद्म पुराण के अनुसार अनुकूल विवाह संयोग बनाने और ठाकुर श्री बांके बिहारी की प्राप्ति के लिये ब्रज की गोपियों ने कात्यायनी महामाई को प्रसन्न किया था। जिसके बाद गोपियों का वरण श्रीकृष्ण ने किया। इस आर्टिकल के माध्यम से हम उन्हीं खास ग्रह दशा (Planetary Condition) के बारे में बताने जा रहे है। जिसके कारण किसी व्यक्ति के विवाह में अड़चने आती है।
इन Jyotish कारणों से आती है विवाह में बाधायें
- सप्तम में बुध और शुक्र दोनों के होने पर विवाह वादे चलते रहते है, विवाह आधी उम्र में होता है।
- चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो, सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
- सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
- चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है, यहीं बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
- सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो, कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
- सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी (Delay In Marriage) होती है।
- लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरू या शुभ ग्रह योग कारक नही हों परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है, अगर हो भी जावे तो संतान होने बाधायें उत्पन्न होती है।
- जातक या जातिका की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीड़ित हो तो विवाह देर से होता है।
- राहु की दशा में शादी हो या राहु सप्तम को पीड़ित कर रहा हो तो शादी होकर टूट जाती है, या ऐसे जातक का विवाह बहुत ही विलंब से होता हैं।