COVID19 आपदा अंदरूनी तौर पर तेज गति से आगे बढ़ रही है साथ ही ये वैज्ञानिकों को खुद पर लगाम कसने का वक्त नहीं दे रही है। कम्युनिटी लेवल (community level) पर इसने विकसित देशों में लाखों लोगों की जान ली। भारत (India) जैसे देश में बड़ी आबादी वायरस इन्फेक्शन (virus infection) के खतरे को रोकने के लिए रुकावट है। जिसकी वजह से लोग लगातार मारे जा रहे हैं। वायरस टेस्टिंग (virus testing) ऐसे वक्त में अहम भूमिका निभाता है। जमीनी आंकड़ों की मदद से खतरे को कम किया जा सकता है।
अब सवाल उठता है कि भारत में परीक्षण कार्य कैसे और किस स्तर पर काम कर रहे हैं। इसका जवाब ना-उम्मीदों से भरा हुआ है, क्योंकि वायरस टेस्टिंग कछुआ चाल से आगे बढ़ रही है। जिसकी वजह से जमीनी हालातों का हिसाब लगाना मुश्किल हो रहा है। ICMR (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) के आंकड़ों के मुताबिक, 21 अप्रैल, 2020 को 4,62,621 में से मात्र 4,47,812 व्यक्तियों के सैंपलों का टेस्ट हो पाया है। संभावित आंकड़ों के मुताबिक हर दिन 14000 व्यक्तियों का सैंपल टेस्ट किया जा रहा है। रोजाना के हिसाब से औसतन 26000-28000 व्यक्तियों वायरस टेस्टिंग चल रही है। ये आंकड़े बताते हैं कि टेस्ट करने के मामले में हम पाकिस्तान से भी पीछे चल रहे हैं।
हाल के आंकड़ों में यह पता चला कि लगभग 80% से अधिक मामले छूने से जुड़े हैं। जहां रोगियों में लक्षणों का पता लगाना बहुत मुश्किल है और परीक्षण केवल एक ही मापदंड है। भारत की कुल जनसंख्या (population) लगभग 130 करोड़ है और भले ही आधी आबादी का हालिया पैमाने के साथ परीक्षण किया जा रहा हो। अगर इसी रफ्तार से टेस्ट होते रहे तो पूरे भारत में इंफेक्शन टेस्टिंग का काम 59 सालों तक चलेगा। अगर हम रोजाना एक लाख रोगियों पर परीक्षण करते हैं तो भी राष्ट्रीय स्तर पर इसे पूरा करने में 18 साल का वक्त लगेगा।इसलिए परीक्षण के चरण पर अधिकतम जोर दिया जाना चाहिए, इसे प्रति दिन लगभग 10 लाख टेस्ट तक बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
इसके अलावा, धारावी जैसे बड़े स्लम इलाके में मौजूदा हालात आपदा बन सकते हैं। जहां 8-10 लाख की आबादी के बीच कोई सामाजिक भेदभाव नहीं है। कल्पना कीजिए ऐसा सामाजिक इलाका जहां 500 लोग केवल एक ही शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे इलाकों में सार्वजनिक शौचालय महामारी फैलाने और उसे बढ़ाने का काम करेंगे।
त्वरित और सटीक परीक्षण, छुट्टी वाले मरीजों पर भी कड़ी निगरानी रखना वक्त की मांग है। पिछले हफ्ते चीन से आयातित 7 लाख रैपिड परीक्षण किटों के नतीजे बेहद निराशाजनक रहे। इन घटिया परीक्षण किटों ने नेगेटिव रिजल्ट वालों को COVID19 पॉजिटिव पेशेंट दिखाया। यह न सिर्फ किट की गुणवत्ता पर बल्कि खरीद प्रक्रिया पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। आपदा के इन कठिन हालातों में भ्रष्टाचार भी बड़ी तेजी से बढ़ रहा है।
परीक्षण के बिना लॉकडाउन बस हाउस अरेस्ट है। नतीजन राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक ढांचे को तोड़ दिया गया है। लॉकडाउन को प्रभावी बनाने के लिए, नागरिकों के धैर्य के साथ-साथ तेजी से ट्रेसिंग और परीक्षण की जरूरत है। फिलहाल हमें मिलकर इस महामारी पर काबू पाने का संघर्ष करना होगा।