42 फ़ीसदी लोगों के पास दिनभर का भी कभी राशन नहीं बचा है।
प्रवासी मजदूरों को राशन की जल्द ही जरूरत है, लेकिन उन्हें महीने के आधार पर मदद करने का आश्वासन दिया गया।
83% मजदूर इस बात को लेकर चिंतित हैं कि, 21 दिनों तक उन्हें कोई काम नहीं मिल पाएगा। अगर लॉक डाउन की अवधि को बढ़ाया जाता है तो, जिसके होने की प्रबल संभावना है। तब क्या होगा? आने वाले हालातों के मद्देनजर कारगर तैयारियां क्यों नहीं की गई? व्यवस्था और प्रशासन को समस्या की संजीदगी की को समझना चाहिए। ये COVID-19 के बढ़ते जोखिम के मुकाबले उससे भी बड़ी परेशानी हो सकती है। इंफेक्शन के बढ़ते खतरे पर लगाम कसने के साथ-साथ जमीनी कार्रवाईयों को अमलीजामा पहनाना, इस वक्त की जरूरत है। वरना राणा कपूर वाले मामले की तरह हालात हाथों से फिसल जाएंगे।