एजेंसियां/न्यूज डेस्क (वृंदा प्रियदर्शिनी): तालिबान को काबुल पर कब्ज़ा करने और पूरे अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) पर अधिकार करने में कुछ हफ़्ते लगे, लेकिन अब देश पर शासन करना आसान तालिबनियों के लिये आसान नहीं दिख रहा है। दशकों के युद्ध ने न सिर्फ हजारों लोगों की जान ली है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी खोखला कर दिया है। अमेरिकी गठबंधन सेनाओं (US coalition forces) के अफगानिस्तान में घुसने के बाद, पिछले 20 वर्षों में विकास के नाम पर खर्च में सैकड़ों अरबों डॉलर का निवेश किया गया।
हाल ही में अफगानिस्तान सेंट्रल बैंक के प्रमुख ने कहा है कि देश आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है और अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को लगने वाले ‘तिहरे झटके’ से स्थानीय व्यवसायों को भारी नुकसान हो सकता है। शुक्रवार को अटलांटिक काउंसिल (Atlantic Council) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अजमल अहमदी ने कहा कि, पहले सूखा था, फिर COVID-19 महामारी और अब मुल्क पर तालिबानी हुकूमत अर्थव्यवस्था के लिये तीसरा झटका बनकर उभरी है।
"मैं इसे आर्थिक पतन का नाम नहीं देना चाहता, लेकिन मुझे लगता है कि ये अत्यंत चुनौतीपूर्ण या कठिन आर्थिक हालात बनने जा रहे है," अहमदी ने भविष्यवाणी करते हुए आगे कहा कि जीडीपी में 10-20% की कमी आयेगी। अफगानिस्तान पर तालिबानी कब़्जे के बाद पश्चिमी और विश्व मीडिया का ध्यान तालिबान पर रहा है। सभी का ध्यान इस ओर है कि तालिबान जो देश का अगुवाई करेगा, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने या आतंकवादी समूहों को आश्रय ना देने के पहले के वादों पर उसका क्या रुख होगा लेकिन किसी ने भी इस बारे में बात नहीं की कि खोखले आर्थिक हालातों और आम अफगान (Common Afghan) कैसे जीवित रहेंगे।
हालांकि अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस (United Nations Secretary-General Antonio Guterres) को 'एक पूरे मुल्क का पतन' होने से रोकने के लिए 1 बिलियन अमरीकी डालर से ज़्यादा की सहायता राशि देने का वादा किया है। दूसरी ओर अब तक अफगानिस्तान के बाहर रखे गये 9 बिलियन अमरीकी डालर से ज़्यादा के अफगानी विदेशी भंडार (Afghan foreign reserves) पर अभी भी रोक लगी हुई है। हाल ही में अंदरूनी और बाहरी आर्थिक पर्यवेक्षकों (External Economic Observers) ने कहा कि स्थानीय अर्थव्यवस्था शायद बर्बाद होने से कुछ दिन दूर थी।
सेंट्रल बैंक अपना कामकाज बेहद सीमित फंड़ों के साथ कर रहा है। फिलहाल उसकी पहुँच अभी तक देश के बाहर से उसके अपने पैसों के भंडार तक नहीं पहुँच पा रही है। स्थानीय अफगानी मुद्रा में तेज गिरावट का खतरा लगातार बना हुआ है। सूखा और अकाल हजारों लोगों को शहरी इलाकों की ओर ले जा रहा है। विश्व खाद्य कार्यक्रम को डर है कि इस महीने के आखिर तक अफगानिस्तान में भोजन खत्म हो जायेगा, जिससे 14 मिलियन लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएंगे। अचानक बाजार जहां लोग नकदी के लिये घरेलू सामान बेचते हैं, वहां काबुल में बहुत कम खरीदारों के साथ उभरे हैं। नौकरियों बेहद कम है और कई सरकारी कर्मचारियों को अभी तक जुलाई से भुगतान नहीं किया गया है।