एजेंसियां/न्यूज डेस्क (गौरांग यदुवंशी): अफगानिस्तान (Afghanistan) में जर्मन सैनिकों के साथ काम करने वाले कुछ अफगानों सैनिकों ने दावा किया कि, अगले कुछ महीनों में गठबंधन सेनाओं द्वारा अफगानिस्तान छोड़ने के बाद उन्हें अपनी जान का खतरा मंडरा रहा है। जिसके लिये वो सुरक्षा की मांग कर रहे है। टोलो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दिनों के बारे में चिंता ज़ाहिर करते हुए, अफगान सैन्य कॉन्ट्रेक्टरों ने मजार-ए-शरीफ शहर में जर्मन सैनिकों के अड्डे के बाहर विरोध प्रदर्शन किया साथ ही शरण और सुरक्षा की मांग की।
सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर उनमें से एक ने कहा कि उसने नौ साल तक जर्मन सशस्त्र बलों के साथ काम किया और इस दौरान उसने अपने तीन साथियों को खूनी झड़पों के दौरान खोया। अफगान सैन्य कॉन्ट्रेक्टरों (Afghan military contractors) ने कहा कि, अगर कर्मचारियों का समर्थन नहीं किया जाता है, तो ये न सिर्फ हमारे लिए बल्कि हमारे परिवारों के लिए भी गंभीर चिंता का मसला होगा। बल्ख में जर्मन सैनिकों के अड्डे के बाहर विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों ने “हमें अकेला मत छोड़ो” के नारे लगाये।
जर्मन बलों के साथ एक पूर्व सैन्य कॉन्ट्रेक्टर नजीबुल्लाह ने कहा, “आपने टरगेटिड हमले देखे हैं … हम चिंतित हैं। हम अपने समाज में अपमानित महसूस करते हैं। हमें उनके साथ [जर्मन सशस्त्र बलों] के साथ काम करने के लिए गलत तरीके से चिन्हित किया गया है। एक दूसरे अफगान सैन्य कॉन्ट्रेक्टर ठेकेदार समद ने कहा कि, “सभी की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये। हमारे प्रति जर्मन सशस्त्र बलों का रवैया पूर्व कर्मचारियों की तरह ही होना चाहिए।”
एक अन्य अफगान ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि, “जिन लोगों ने उनके साथ [जर्मन सेना] काम किया है, वे सभी खतरे में हैं। अफगानिस्तान में सुरक्षा के हालात हर दिन बदल रहे है। इसलिए हम यहां अपने अधिकारों के लिए पूछ रहे हैं ताकि हमें उनकी प्रतिक्रिया और उनका आखिरी फैसला मिल सके। जिन्होंने जर्मनों के साथ काम किया है”
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, 18 अप्रैल को जर्मनी की डीपीए समाचार एजेंसी के हवाले से बताया गया कि, जर्मन रक्षा मंत्री एनेग्रेट क्रैम्प-कैरेनबाउर (German Defence Minister Annegret Kramp-Kaerenbauer) ने कहा है कि उनका देश अपने अफगान कर्मचारियों को कम से कम दो दशकों के युद्ध के बाद देश में अंतरराष्ट्रीय सैन्य मिशन के तौर पर कम नहीं होने देगा। मुझे लगता है कि हम ईमानदारी से इन लोगों को बिना सुरक्षा के न छोड़ें, अब हम स्थायी रूप से अफगानिस्तान के मोर्च से हट जाएंगे।
बीते अप्रैल महीने के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और नाटो ने ऐलान किया कि, 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सभी सैनिकों की वापसी होगी। जो कि 1 मई को शुरू हुई। इसी मोर्चे पर जर्मनी लगभग 1,100 सैनिकों के साथ दूसरा सबसे बड़ा सैन्य दल है।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, इस फैसले ने अफगानिस्तान के राजनीतिक भविष्य के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं और माना जा रहा है कि इससे देश में गृहयुद्ध छिड़ सकता है, जिससे अल कायदा को पैठ बनाने में काफी मदद मिलेगी। साथ ही कई सैन्य इलाकों को निशाना बनाकर हवाई हमले भी किये जा सकते है। अफगानिस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया कि अफगानी सरकार अभी भी विदेशी सैनिकों की मौजूदगी अपने मुल्क में चाहती है।