न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ): भारत सरकार ने भारतीय सशस्त्र बलों में नौकरियों के लिये नई अग्निपथ भर्ती योजना (Agnipath Army Recruitment Scheme) शुरू की। इस योजना के तहत 17.5 वर्ष से 21 वर्ष की आयु के युवाओं को सिर्फ चार साल के लिये सेना में भर्ती किया जायेगा और उन्हें अग्निवीर (Agniveer) कहा जायेगा। रक्षा बलों की तीन शाखाओं में हर साल लगभग 50,000 अग्निवीरों की भर्ती की जायेगी।
आखिर क्यों थी अग्निपथ स्कीम की जरूरत? जाने इसके पीछे की सोच
इस योजना से भारतीय सैनिकों की औसत आयु घटेगी। ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा युवा सेना में सेवा कर सकेंगे। उनकी क्षमता ज़्यादा होगी और वो ज़्यादा प्रोडक्टिव होंगे। भारतीय सैनिकों की औसत आयु 32 वर्ष है जबकि अमेरिकी सैनिकों (American Soldiers) की औसत आयु 27 वर्ष और ब्रिटिश सैनिकों (British soldiers) की औसत आयु 30 वर्ष है। इस योजना की मदद से अगले कुछ सालों में भारतीय सैनिकों की औसत आयु 32 से घटाकर 26 वर्ष की जायेगी।
दूसरे इससे सरकार को हथियारों की खरीद पर ज़्यादा पैसा खर्च करने में मदद मिलेगी। अभी तक सरकार को रक्षा बजट (Defence Budget) का आधे से ज्यादा हिस्सा सैनिकों के वेतन और पेंशन देने पर खर्च करना पड़ता था। लेकिन इस योजना के लागू होने से ये खर्चे धीरे-धीरे कम हो जायेगें।
साल 2020-21 में भारत का रक्षा बजट 4,85,000 करोड़ रुपये था। इसमें से 28 फीसदी यानि कि 1,34,000 करोड़ रूपये सरकार ने सैनिकों की तनख्वाह पर खर्च किये। पूर्व सैनिकों को पेंशन देने पर 26 फीसदी यानि 1,28,000 करोड़ रुपये खर्च किये गये। ऐसे में सिर्फ 27 फीसदी यानि 1,31,000 करोड़ रूपये नये हथियार खरीदने पर खर्च किये गये। रक्षा बजट का 54 फीसदी सिर्फ वेतन और पेंशन पर खर्च किया जाता है और इसलिए सरकार चाहे तो भी सेना के आधुनिकीकरण पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रही है। इस योजना के बाद इस खर्च को कम किया जा सकता है।
कहा जा सकता हैं कि सरकार ने इस योजना के तहत लागत में कटौती की है। इस वक़्त हमारे देश में सरकार 32 लाख भूतपूर्व सैनिकों (Ex-Servicemen) को पेंशन देती है और वन रैंक-वन पेंशन (One Rank One Pension) योजना के लागू होने से पेंशन का ये खर्च काफी बढ़ गया है। तीसरा ये हमारे देश में अत्यधिक कुशल कार्यबल की उपलब्धता को बढ़ायेगा। जो सैनिक सेना में होते हैं उनमें अनुशासन के साथ नेतृत्व के गुण भी होते हैं।
इसके अलावा ये जवान मुश्किल हालात से निपटने के तरीके से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसलिये जब सेना का एक जवान आता है और हमारे समाज में काम करता है तो इससे देश की प्रगति होगी और अत्यधिक कुशल कर्मचारियों की उपलब्धता में भी इज़ाफा होगा।
अभी दुनिया में 80 से ज़्यादा देश ऐसे हैं, जहां नागरिकों के लिये कुछ सालों तक सेना में सेवा करना अनिवार्य है। उनमें से प्रमुख हैं दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, रूस, इज़राइल, ब्राजील, तुर्की, नॉर्वे और फिनलैंड (Norway and Finland)।
इन देशों में,18 से 27 वर्ष की आयु के युवाओं को एक निश्चित अवधि के लिये सेना में भर्ती होना पड़ता है और फिर उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। ऑस्ट्रिया (Austria) की सेना में ये अवधि डेढ़ साल है। इज़राइल (Israel) में प्रत्येक नागरिक को तीन साल तक सेना में सेवा करनी होती है। इससे इन देशों को दो बड़े फायदे हुए हैं।
सबसे पहले इन देशों की सेनायें अन्य देशों की सेनाओं की तुलना में बहुत छोटी हैं। और दूसरा इन देशों को इसके कारण अपने पूर्व सैनिकों को पेंशन देने पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। नतीजतन वो रक्षा अनुसंधान (Defence Research) और नये हथियारों की खरीद पर ज़्यादा पैसा खर्च करने में सक्षम हैं।
इसके अलावा कुछ देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने सेना में भर्ती के लिये एकदम अलग नीति अपनायी है। संयुक्त राज्य अमेरिका में सिर्फ उन सैनिकों को पेंशन मिलती है, जो 20 साल से सेना में हैं। अमेरिका में एक कानून है, जिसके तहत 80 प्रतिशत सैनिक अपनी सेवा के आठवें साल के भीतर सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इन जवानों को सरकार कोई पेंशन नहीं देती है। भारत सरकार द्वारा सेना में भर्ती का जो नया मॉडल लाया गया है, वो काफी हद तक अमेरिका से मिलता-जुलता है। कई देश ऐसे भी हैं जो अब एक निश्चित अवधि के लिये ही सैनिकों की भर्ती करते हैं। ब्रिटेन (Britain) में अलग-अलग पदों पर सैनिकों को दो से चार सालों के लिये भर्ती किया जाता है और फिर उन्हें विशेष पैकेज के साथ सेवानिवृत्त किया जाता है।