नई दिल्ली (भगत सिंह सहरावत): कृषि व्यवस्था किसी भी देश की आर्थिक रफ्तार को नियंत्रित करती है। भारतीय कृषि व्यवस्था में लंबे समय से किसानों को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने की चर्चा अक्सर होती रहती है। हरित क्रांति (Green Revolution) का चुनिंदा इलाकों तक प्रभाव और देश भर में खेल-खलिहानों का अव्यवस्थित ढांचा मौजूदा कृषि उत्पादनों के लिए बड़ी चुनौती है। जिसकी वजह से राज्यवार जोतों का आकार और फसल उत्पादन की दर में भारी अंतर आ जाता है। हरियाणा और पंजाब में फसल उत्पादन की दर (विशेष रूप से गेहूं और चावल) पूर्वांचल और बिहार की तुलना से कहीं ज्यादा है। इसके साथ ही तकनीकी स्तर किसान कुछ गलतियां कर बैठते हैं, जिनका उन्हें अंदाजा ही नहीं रहता। इन गलतियों को सुधार कर किस तरह ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है।
ऐसे में हम कृषकों को होने वाली समस्या और उसका विवरण साझा कर रहे हैं।
1) किसानों द्वारा ज्यादातर एक वक्त पर एक ही तरह की फसल का चुनाव:
उदाहरण: गेहूं और धान (चावल) की फसल के समय अधिकतर (95%) किसानों द्वारा इन्हीं चयनित फसलों की बुवाई की जाती है, जिससे इनकी उपज तो बढ़ जाती है, किंतु उत्पादन अधिकता होने के कारण किसानों को मिलने वाला बाजार मूल्य नीचे चला जाता है साथ ही स्टोरेज की समस्या आती है, जिससे किसान को नुकसान होता है l
समाधान:
मिश्रित खेती: जब एक खेत में एक ही साथ दो-या-दो से अधिक फसलें उगाई जाती हैं तो, ये संभावना होती है कि यदि कोई फसल मौसम की असामान्यता के कारण नष्ट हो जाए तब भी दूसरी या तीसरी फसल बच सकती है और इस प्रकार उस खेत से मुनाफा हासिल किया जा सकता है, साथ ही फसलों का अच्छा दाम प्राप्त किया जा सकता है l
2) प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग
खेती में फसल को पानी की आवश्यकता होती है, परंतु किसान सिंचाई के गलत तकनीक अपनाकर भूजल को प्रभावित करते हैं साथ ही सिंचाई पर आनी वाली लागत भी बढ़ जाती है।
उदाहरण: भूजल को बोरवेल द्वारा खेत में खुला पानी देना, खुला पानी देने से भूजल के इस्तेमाल की जरूरत ज्यादा पड़ती है। साथ ही डीजल और बिजली पर अतिरिक्त खर्चा होता है। जो खेत भूजल सिंचित होता है, वह जल वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है, आखिर में किसान को नुकसान होने के साथ भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे चला जाता है।
समाधान: सोलर पंप, ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई
सोलर पंप से सिंचाई: सोलर पंप सूर्य की ऊर्जा द्वारा चलाया जाता है इसलिए यह सोलर पंप कहलाता है l पैसे की बचत करने के साथ, ये प्रदूषण मुक्त तकनीक है।
टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली – ये सिंचाई की उन्नत विधि मानी जाती है, क्योंकि इसमें पानी की बचत होती है। ये सिंचाई विधि मिट्टी, खेत के ढाल, जल के स्रोत के मुताबिक की जाती है। इस विधि में पानी को पौधों के मूलक्षेत्र के आस-पास लगाया जाता है। जिससे पौधे को जरूरत के मुताबिक पानी मिलता है। इसमें फर्टिलाइजर और जल दोनों की बचत होती है l
फव्वारा सिंचाई – यह एक ऐसी पद्धति है, जिसमें हवा में पानी का छिड़काव होता है और पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरने लगता है। इसमें पानी का दबाव पंप से भी प्राप्त किया जा सकता है, इस विधि से भूमि और हवा का अनुकूलित अनुपात बना रहता है, साथ ही बीजों में अंकुरण भी जल्द ही होता हैं l
3) कीटनाशकों और रसायनिक खाद का अधिक उपयोग
खेती में लगातार केमिकल्स के इस्तेमाल से जमीन जरूरी हो चुकी है। पर्यावरण के साथ-साथ इसका बुरा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। जहरीले और मंहगे रासायनिक कीटनाशकों, रोग नियंत्रकों और रासायनिक खाद के कारण किसानों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है | इस दुष्चक्र से किसानों को बाहर निकालने के लिए जरुरी है कि, वे खेती में जैविक विकल्पों को अपनाएँ|
समाधान: जैविक कीटनाशक और जैविक खाद फसलों के रोग एवं कीट को कम या खत्म करने के साथ-साथ भूमि की उर्वरता को भी बढाते हैं। ये हमारे आसपास के प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से आसानी से तैयार किए जा सकते हैं। इनकी मदद से कीटनाशकों के लिए किसानों की बाजार पर निर्भरता भी खत्म होती है। खेती में कुछ सरल एवं जांचे परखे तरीकों का इस्तेमाल कर रोगों व कीटों से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
4) खेती पशुपालन और बागवानी को एक साथ ना अपनाना
खेती, पशुपालन और बागवानी, तीनों आपस में जुड़े हुए हैं। क्योंकि ये तीनों आपस में जुड़कर ज्यादा मुनाफा देते हैं, लेकिन ज्यादातर किसान इनको एक साथ नहीं अपनाते जिसकी वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
उदाहरण व समाधान: फसलों के अवशेष पशुओं को खिलाने के काम आते हैं लेकिन पशुपालन को खेती के साथ ना अपनाकर किसान इसका लाभ नहीं ले पाते, पेड़ खेती में लाभ को बढ़ाते हैं उपज देने के साथ ही फसल को प्राकृतिक आपदा से भी बचाते हैं जैसे कि-तूफान, वर्षा, ओले परंतु किसान इसको ना अपनाकर इस लाभ से भी वंचित रह जाते हैं|
5) बीज संरक्षण ना करना
किसान बीज नहीं बचाते और हर बार बीज बाजार से खरीदते हैं।जिससे उनका खर्च बढ़ता है और साथ ही हर बार बीज बदलने के कारण फसल की उपज भी कम होती है।
उदाहरण: जब कोई फसल अच्छी उपज देती है तो उसके बीज का संरक्षण कर लेना चाहिए ताकि भविष्य में भी अच्छी उपज ली जा सके। लेकिन किसान बीज संरक्षण ना करके बाहर से बीज लेता है जिससे खेती की उपज प्रभावित होती है और किसान को हानि होती है।
समाधान: अच्छी उपज देने वाले बीज संरक्षण करना।
किसान भाई ये बुनियादी टिप्स अपनाकर अच्छा लाभ ले सकते हैं। फिलहाल किसानों को जरूरत है कि, कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल हो रही नई तकनीकों और प्रौद्योगिकियों से भलीभांति वाकिफ हो। जिसका इस्तेमाल कर वे कम लागत में उत्पादन दर को बढ़ा सकें।
"सर्वेषां जीवनं कृषिम् अवलम्बते। कृषिः अथवा कृषि कार्यं कष्टमेव। भूमौ जीवनाय आवश्यकम् अन्नं कृषेः उत्पादनम्। कृषिः महत् प्रयत्नम् अपेक्षते। कृषेः सफलतायै अन्यानि साधनानि आवश्यकानि।मुख्यत: जल व्यवस्था समीचीना भवितव्या।भूमेः मृत्तिका अपि कृषि कार्ये सहायकी भवति।भारत देशः कृषि प्रधान देश:। कृषीवलाः बहु कष्टं अनुभूय प्राणिनां कृते व्यवसायं कुर्वन्ति। काले काले वर्षतु पर्जन्यः देशे देशे वर्धतु कृषिः।धन्या हि कृषिः धन्याः च कृषीवलाः।"
अर्थात संपूर्ण जीवन का आधार कृषि पर ही टिका हुआ है। ये कष्ट साध्य साधना है। सभी कृषि उत्पाद अत्यधिक परिश्रम और भूमिगत जल की उर्वरता परिणति है। सींचन हेतु जल और अनुकूल मिट्टी की उपलब्धता कृषि कार्य हेतु सहायक है। समस्त प्राणी जगत में ये अत्यंत श्रमसाध्य व्यवसाय है। कृषि का विकास देश का विकास सुनिश्चित करता है। इसलिए धन्य है कृषि और धन्य है किसान।
*लेखक स्वयं अनुभवी किसान है।