न्यूज़ डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत रखा जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इसका महात्मय ठीक पूर्वांचल में मनाये जाने वाले व्रत जिउतिया के समान है। इस दिन श्रीधाम राधा कुंड (Shridham radha kund) में संतान प्राप्ति के इच्छुक महिलायें स्नान कर, करूणामयी श्रीप्रिया राधारानी (Radharani) से संतान की कामना करती है। अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली से ठीक आठ दिन पहले आता है। करवा चौथ की तरह की अहोई अष्टमी उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है। इस व्रत को अहोई आठें नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि, जो कि माह का आठवाँ दिन होता है, उस दौरान किया जाता है। यह व्रत संतान की लंबीं उम्र के साथ- सथ उसे हर परेशानी से बचाने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जो भी महिला अहोई अष्टमी का व्रत रखती है उसके पुत्र को लंबी आयु के साथ ही उसके जीवन में सुख और समृद्धि का चिरस्थायी वास होता है। अहोई अष्टमी के व्रत में तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। इस व्रत का पालन निर्जला और निराहार रहकर किया जाता है। अहोई का शाब्दिक अर्थ होता है अनहोनी से बचाने वाली।
अहोई अष्टमी का पावन मुहूर्त
8 नवंबर 2020 दिन रविवार
पूजन का मुहूर्त – गोधूलि बेला (सांय) 5 बजकर 31 मिनट से शाम 6 बजकर 50 मिनट तक
तारों का दर्शन करने का समय – शाम 5 बजकर 56 मिनट
चन्द्रोदय समय – रात 11बजकर 56 मिनट
अष्टमी तिथि का आरम्भ – सुबह 7 बजकर 29 मिनट से
अष्टमी तिथि की समाप्ति – अगले दिन सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक (9 नवंबर 2020)
अहोई अष्टमी की पूजन विधि
सबसे पहले दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाये या फिर बाज़ार में बनी उनकी तस्वीर लायें। अगर चित्र बना रहे है तो उसमें आठ किनारियां या अष्ट कोष्टक होने चाहिए। सेही (hedgehog) और उसके बच्चे को भी चित्र में अंकित करें। लकड़ी की चौकी या आसन पर अहोई माता का चित्र स्थापित करें। जिसके बांयी ओर तांबे के कलश में जल भरकर रखे। कलश पर स्वास्तिक बनाकर उस पर मौली बांधे। इसके बाद अहोई माता को वायन (पूरी, हलवा तथा पुआ इत्यादि भोज्य पदार्थ) का भोग लगाये। अनाज़ों में ज्वार या कच्चा भोजन (सीधा) भी पूजा के दौरान माँ को अर्पित किया जा सकता है। कुनबे के सबसे वयोवृद्धि महिला से सभी व्रती महिलायें अहोई अष्ठमी व्रत कथा का पाठ करवाये। कथा श्रवण के दौरान हाथों में व्रती महिलाओं को अनाज के सात दाने रखने चाहिए। कथा समाप्ति पर अहोई अष्टमी आरती की आरती करे। उत्तर भारत में कई स्थानों पर बच्चों का गले में पहनाने के लिए चाँदी की अहोई माता जिसे स्याऊ भी कहा जाता है का प्रावधान है। अगर इसकी मान्यता व्रती महिलाओं के यहां है तो पूजा के बाद इसे चाँदी के दो मनकों के साथ धागे में गूँथ कर गले में माला की तरह संतान को धारण करवाये। तारों और चन्द्रमा का दर्शन कर उन्हें पवित्र कलश से अर्घ्य देकर अहोई माता व्रत को समापन की ओर ले जाये।
अहोई अष्टमी की व्रत कथा
एक महिला के सात पुत्र थे। एक दिन वह मिट्टी लाने के लिए वन में गई। मिट्टी खोदते समय उससे भूलवश सेही के बच्चे की मृत्यु हो जाती है। जिसके कारण सेही ने उस महिला को संतान शोक का श्राप दिया। कालांतर में उस महिला के सातों बेटों की मृत्यु हो गई। महिला को अहसास हुआ कि यह सेही के श्राप का नतीज़ा है। अपने पुत्रों को वापस पाने के लिए महिला ने अहोई माता की पूजा कर छह दिन का उपवास रखा। मां उसकी प्रार्थना से अत्यंत प्रसन्न हुई और उसके सातों पुत्र पुर्नजीवित कर दिया।
व्रत के दौरान बरते ये सावधानियां
- व्रत के दिन भूलकर भी व्रती महिलायें को काले गहरे नीले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
- अहोई अष्टमी के व्रत की पूजा प्रारम्भ करने से पहले विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी की पूजा आवश्य करनी चाहिए। सनातनीय परम्परा में मान्यता है कि किसी भी पूजा का फल तभी मिलता है जब पूजा का आरम्भ भगवान गणेश जी का नाम लेकर किया जाए।
- व्रत पूजन के दौरान पहले से इस्तेमाल की हुई पूजन सामग्री के इस्तेमाल से बचें।
- पूजन करते समय ध्यान रखें कि कांसे (Bronze) के लोटे का प्रयोग ना करे। इस दिन कांसे को और उसके इस्तेमाल को शुभ नहीं माना जाता है।
- व्रत के लिए प्रसाद और भोजन सामग्री बनाते समय याद रखें कि इसमें प्याज, लहसुन आदि का प्रयोग न करें। कई जगह करवाचौथ पर इस्तेमाल किए गए करवे को पूजा में दुबारा इस्तेमाल में ले लिया जाता है। लेकिन आप ये करने से बचे।
- व्रती महिला को दिन में सोने से बचना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से संतान की उम्र कम होती है।
- अहोई अष्टमी का व्रतीय विधान निर्जला और निराहार है। साथ इस दिन सास-ससुर या घर के किसी बड़े के लिए बायना भी निकाला जाता है।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता,जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता॥
जय अहोई माता…॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥
जय अहोई माता…॥
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥
जय अहोई माता…॥
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता॥
जय अहोई माता…॥
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता॥
जय अहोई माता…॥
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥
जय अहोई माता…॥
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता॥
जय अहोई माता…॥
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥
जय अहोई माता…॥
अहोई अष्टमी वाले दिन श्रीधाम राधाकुंड में स्नान का अखंड विधान
अहोई अष्टमी वाले दिन श्रीधाम राधाकुण्ड में स्नान या डुबकी लगाने का विशेष महात्मय है। इस पुनीत दिन श्रीकृष्ण की आराध्या राधा रानी का आशीष प्राप्त करने लिए उपासक राधाकुण्ड में स्नान करते है। श्रद्धालुओं में प्रबल मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन राधाकुण्ड में स्नान करने से गर्भधारण में सफलता मिलती है और भविष्य में गर्भपात के संयोग समाप्त होते है। इसकी आस्था के साथ हर साल हज़ारों दम्पति गोवर्धन (goverdhan) की तलहटी में बसे श्रीधाम राधाकुंड पहुँचते है। जहाँ वे स्नान कर आनंदमयी, करूणामयी, स्नेहमयी श्रीमती राधा रानी का आशीष प्राप्त करते है। निशिता काल यानि कि मध्यरात्रि में स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है। इस दौरान कुंड में स्नान और संकल्प लेकर संतान इच्छुक दम्पति (Couple wishing to have children) राधारानी को लाल वस्त्र में सजाकर कच्चा सफेद कद्दू (पेठा) अर्पित करते है। जिन दम्पतियों की मन्नत पूरी हो चुकी हो वे भी इस दिन राधारानी के प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिए राधाकुण्ड आकर स्नान और परिक्रमा करते है और ब्रजरानी को धन्यवाद देते है।