Prithiviraj Film: गुर्जर और राजपूत के विवाद में फंसती अक्षय कुमार की फिल्म पृथ्वीराज

एंटरटेनमेंट डेस्क (स्तुति महाजन): राजस्थान में गुर्जर समुदाय ने अक्षय कुमार की फिल्म ‘पृथ्वीराज’ (Prithiviraj Film) की स्क्रीनिंग रोकने की धमकी दी है, अगर फिल्म पृथ्वीराज चौहान के लिये ‘राजपूत’ शब्द का इस्तेमाल जारी रखा गया तो। समुदाय ने दावा किया कि पृथ्वीराज गुर्जर समुदाय (Gujjar Community) से थे और राजपूत नहीं थे। हालांकि राजपूत समुदाय (Rajput community) के नेताओं ने उनके दावे को मजबूती से खारिज कर दिया और कहा कि गुर्जर शुरू में गौचर था, जो बाद में गुर्जर में तब्दील हो गया।

राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजेंद्र सिंह शक्तावत (Vijender Singh Shaktawat, National Spokesperson of Rajput Karni Sena) ने दावा किया कि गौचर से शब्द बदलकर गुर्जर हुआ। क्योंकि समुदाय के लोगों का वास्ता गुजरात से था, इसलिए उन्हें ये नाम मिला। उन्होंने कहा कि ये जगह से जुड़ा हुआ शब्द है न कि जाति से संबंधित शब्द।

गुर्जर नेता हिम्मत सिंह ने कहा कि, “पृथ्वीराज फिल्म चंदबरदाई (Chandbardai) के लिखे पृथ्वीराज रासो (Prithviraj Raso) की बुनियाद पर बनायी गई है और इसे पृथ्वीराज फिल्म के टीज़र में दिखाया गया। इतिहास में उपलब्ध शिलालेखों से खुलासा करने के बाद रिसर्चर्स ने माना है कि चंदबरदाई ने इसे लिखा था। पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के लगभग 400 साल पहले 16 वीं शताब्दी में रासो महाकाव्य लिखा गया था जो कि काल्पनिक है। महाकाव्य को चंदबरदाई ने प्रिंगल भाषा में लिखा है, जो बाजरा और राजस्थानी बोली का मिलाजुला रूप है।”

हिम्मत सिंह ने आगे कहा कि, “गुर्जर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के दौरान संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन प्रिंगल भाषा का नहीं, जिसका इस्तेमाल कवि ने किया है। ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि 13वीं शताब्दी से पहले राजपूत कभी भी वजूद में नहीं थे, हमने ऐतिहासिक तथ्यों से इसे साबित कर दिया है और इसे मौजूदा वक़्त में राजपूत समुदाय के लोगों ने भी स्वीकारा है। इसलिए उन्होंने खुद का क्षत्रिय होने का दावा किया न कि राजपूतों के तौर पर।

बता दे कि दादरी और ग्वालियर में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज (Gurjar Emperor Mihir Bhoj) की प्रतिमा के अनावरण के बाद भी एक विवाद के दौरान राजपूतों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अपनी जाति क्षत्रिय (Kshatriya) के रूप में ज़ाहिर की थी।”

फिल्म पर विवाद इसलिये है क्योंकि राजपूत शब्द का इस्तेमाल चंदबरदाई के समय किया गया था, न कि पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के दौरान उन्होंने कहा कि, “पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर गुर्जर जाति से जुड़े हुए हैं, और इसलिए उनके पुत्र को गुर्जर होना चाहिए “।

विजेंद्र सिंह शक्तावत ने कहा कि ये सच है कि राजपूत एक उपाधि है जाति नहीं। लेकिन फिर ये भी एक सच्चाई है कि राजपूत उन लोगों का प्रतीक हैं जो जमीन से जुड़े हुए हैं, जिसका अर्थ है मिट्टी के बेटे जो अपनी जमीन की खातिर अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं।

शक्तावत ने दावा किया कि, ये सच है कि 13वीं शताब्दी में राजपूत शब्द का जिक्र नहीं मिलता, भगवान राम क्षत्रिय थे लेकिन उन्हें कभी राजपूत के तौर पर नहीं जाना गया। राजपूत एक उपाधि है जिसका मतलब है राजा का पुत्र, वो विरासत जो राजघरानों के बीच जारी रहती है जहाँ राजाओं को उपाधि मिलती है।

उन्होंने आगे कहा कि सोमेश्वर गुर्जरलैंड के राजा थे, जो आज के गुजरात और राजस्थान का हिस्सा थे और इसलिये उन्हें गुर्जरधिपति या गुर्जरधीर कहा जाता था, जो दक्षिण राजस्थान और गुजरात को जोड़ता था। उन्होंने दावा किया कि गुर्जर समुदाय के सभी दावे बेबुनियादी हैं।

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