न्यूज़ डेस्क (शौर्य यादव): राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (America President Donald Trump) और उनका प्रशासन, China की मनमानियों को लेकर बीते कई महीनों से सख्त रवैया अपना रहा है। जिसके चलते अमेरिकी प्रशासन ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (Communist party of China) के सदस्यों पर वीजा प्रतिबंध लगाया। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से जुड़े शोधकर्ताओं और छात्रों को अमेरिका से बाहर जाने के सख्त निर्देश जारी किए। साथ ही न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और नैस्डेक में सूचीबद्ध चीनी कंपनियों को व्यापार कहीं और जाकर करने के कार्यकारी आदेश जारी किए। दक्षिण चीन सागर में चीनी विस्तारवादी रवैया, शिंजियांग प्रांत में उईगर मुसलमानों के नागरिक अधिकारों का हनन, पूर्वी लद्दाख के मोर्चे पर एलएसी का पीएलए द्वारा उल्लंघन, हांगकांग (Hong-Kong) में नया सुरक्षा कानून और ताइवान की सरकार को परेशान करने के मसले पर अमेरिका चीनी हुक्मरानों से खासा नाराज है।
फिलहाल अमेरिकी सैन्य बलों की दक्षिण एशियाई समुद्री (South Asia Sea) सीमा में तैनाती बढ़ा दी गई है। वाशिंगटन हर हाल में बीजिंग पर नकेल कसना चाहता है। इसीलिए अमेरिकी विदेशी विभाग के पूर्वी एशिया-प्रशांत मामलों के सहायक सचिव डेविड आर. स्टीलवेल ने ट्वीट कर लिखा कि- हालिया दौर में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रही है, तो वहीं दूसरी ओर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना अपनी ताकत दुगुने तरीके से दक्षिणी चीन सागर में झोंक रहा है। ताकि वो इस इलाके में अपने इरादे कारगर तरीके से लागू कर पाए।
अपने अगले ट्वीट में अमेरिकी विदेशी विभाग ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा- चीनी अड़ियल रवैया के सामने अमेरिका अपने मित्र राष्ट्रों की संप्रभुता के साथ मजबूती से खड़ा है। चाहे वो दक्षिणी चीन सागर हो या फिर हिमालय की चोटियां।
अमेरिका दिन-प्रतिदिन चीन को लेकर बयान जारी कर रहा है। कई कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि, इस कवायद से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक साथ दो निशाने साध रहे हैं। चीन को वैश्विक महाशक्ति बनने की राह में रोड़े अटकाना। और दूसरा चीन के खिलाफ मोर्चा खोलकर अमेरिकी लोगों में राष्ट्रवाद की लहर पैदा करना ताकि आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भावनात्मक वोट हासिल कर जीत सुनिश्चित की जा सके।
मौजूदा वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए चीनी नीति नियंता कहीं ना कहीं बैकफुट पर आने के लिए मजबूर हुए हैं। अमेरिका और भारत में लगे कड़े कारोबारी प्रतिबंधों के कारण बीजिंग को रोजाना भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे हालातों में ये ताजातरीन अमेरिकी बयान चीन के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं है।