न्यूज डेस्क (समरजीत अधिकारी): राजधानी दिल्ली मौत, चीख़ पुकार और तबाही के मंजर की गवाह बनी हुई है। अस्पतालों में अव्यवस्था का माहौल पसरा हुआ है, प्रशासनिक तंत्र अराजकता की भेंट चढ़ गया है और श्मशान घाट लाशों के खचखचा भरे हुये है। लुटियंस दिल्ली इन सब बातों से बेपरवाह लोकतंत्र की सबसे हसीन इमारत बनाने में व्यस्त है। जिसका नाम है सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (Central Vista Project.)। आप इस बात का अन्दाज़ा इसी से लगा सकते है कि हुक्मरानों ने इस जरूरी सेवाओं के श्रेणी में डाल दिया है। जिसकी वज़ह से इस पर नाइट कर्फ्यू और लॉकडाउन को कोई असर नहीं होने वाला। ऑक्सीजन की कमी, मेडिकल सुविधाओं का टोटा और लाशों के ढ़ेर से बेपरवाह ये प्रोजेक्ट बदस्तूर जारी है।
प्रशासन की पूरी मदद मिले इसलिये तमाम तरह के नोटिफिकेशन, सर्कुलर और दूसरी प्रशासनिक कार्रवाइयां (Notifications, circulars and other administrative actions) इसके लिये पूरी कर दी गयी है। 20 हज़ार करोड़ रूपये की इस परियोजना के तहत कई ब्रिटिश कालीन इमारतों के बदलकर नया रंगरूप दिया जायेगा। ताकि भारत की महान लोकतंत्र को त्रासदी और तबाही के बीच एक शानदार संसद की इमारत मिल सके। सितंबर 2019 में जब इसके लिये जल्दबाज़ी में टेंडर जारी किये तो ये प्रोजेक्ट आलोचनाओं के घेरे में आ गया। बीते साल सोशल मीडिया पर भी आम लोगों ने इस परियोजना के जमकर लताड़ा स्वास्थ्य प्रणालियों और अर्थव्यवस्था के टूटने के बावजूद सरकार इसमें लगातार आम जनता का पैसा और संसाधन झोंक रही है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार 201 करोड़ रुपये की लागत से 162 ऑक्सीजन प्रोडक्शन प्लांट लगाने जा रही है। जबकि दूसरे अकेले संसद भवन की निर्माण की लागत पांच गुना ज़्यादा लगभग 971 करोड़ रुपये है। बढ़ती आलोचनाओं ने सरकार के रवैये को बेपर्दा कर दिया। इसी साल 20 अप्रैल को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तीन इमारतें बनाने के लिये टेंडर जारी किये गये। जब देश कोरोना के दूसरी लहर का नंगा नाच देख रहा था। केंद्र सरकार द्वारा सेन्ट्रल विस्ट के निर्माण को जरूरी सेवा की श्रेणी में डाले जाने के बाद बेहिचक और बेधड़क करीब 180 कर्मिशियल गाड़ियों को लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू और तमाम तरह की बाध्यताओं से मुक्ति दे दी गयी है। केन्द्र सरकार के इशारे पर केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और दिल्ली पुलिस इस प्रोजेक्ट को तैयार करने वाली शापूरजी पल्लोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को पूरी छूट दे रही है। कंपनी को कर्फ्यू के दौरान सराय काले खां मजदूरों को लाने और ले जाने के लिये बस चलाने की भी मंजूरी दी गयी है।
इस मामले पर सीपीडब्ल्यूडी प्रवक्ता ने मीडिया को बताया कि, हमने मजदूरों के साइट्स पर रूकने के लिये सीमित इंतज़ाम किये है। साथ ही उन्हें उनके कैंप से लाने और ले जाने की आधिकारिक मंजूरी भी ले ली है। अगले दिन प्रवक्ता ने अपनी बात में जोड़ घटाव करते हुए कहा कि साइट पर सिर्फ जरूरी गतिविधियों को चलाया जा रहा है। मौके पर मौजूद मजदूरों को अनुमति दी जाती है। रूकने के लिये बाहरी दूसरे मजदूरों के लिये ऐसी कोई अनुमति नहीं है। ज़मीनी हकीकत ये है कि मजदूर लगातार साइट से अपने कैंप सराय काले खां आ-जा रहे है।
शापूरजी पल्लोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने इस कॉन्ट्रैक्ट के लिये कामों को कई सब कॉन्ट्रैक्टरों (Subcontractors) में बांट दिया है। जो कि अपने अपने हिसाब से काम कर रहे है। सभी अपने नियम और कायदों से काम कर रहे है। कुछ ने काम रोक दिया है। कुछ ने जारी रखा है। सब कॉन्ट्रैक्टर उन्हें अपनी मर्जी साइट पर ठहरा रहे है और भेज भी रहे है। काम कर रहे मजदूरों को वेतन अधिनियम से निर्धारित कम वेतन दिया जा रहा है। जिसकी कोई मॉनिटरिंग नहीं की जा रही है। मजदूरों को इन विकट हालातों में रोजगार मिल रहा है, वहीं इनके लिये चैन की बात है। सबकॉन्ट्रैक्टर उनकी तनख्वाह रोक कर रख रहे है। मनमाने तरीके से काम के घंटे बढ़ाकर काम ले रहे है। ये सब मनमानी लोकतंत्र की पावन मंदिर के नज़दीक हो रही है। बावजूद इन सबके भारतीय लोकतंत्र की शानदार इमारत का काम जारी है।