इस कहानी की शुरूआत होती है, 24 मार्च साल 1971 से। जब पूर्वी पाकिस्तान (अभी का बांग्लादेश) ने अपनी आज़ादी की आव़ाज बुलन्द की थी। पाकिस्तानी आर्मी के जनरल जिया-उर-रहमान ने बगावती तेवर अख़्तियार करते हुए मुक्तिवाहिनी का गठन किया था। ठीक उसी दिन इतिहास के पन्नों में एनआरसी की नींव रख दी गयी थी। रावलपिंडी में बैठे हुक्मरानों के इशारे पर (अभी का पाकिस्तान) जनरल टिक्का खान ने बांग्लादेश में कहर बरपाया हुआ था। ऑपरेशन सर्चलाइट की आड़ में जनरल टिक्का खान ने नरसंहार किया, अवैध गिरफ्तारियां की। बांग्लादेशी आव़ाम लड़ाई और टिक्का खान की दहशत के चलते भारत की ओर रूख़ करने लगी। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास बन गया मुक्तिवाहिनी और इंडियन ऑर्मी ने मिलकर बांग्लादेश को आजाद कराया। भारतीय सेना के सामने पाकिस्तानी ऑर्मी ने विश्व का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण किया। बांग्लादेश बनने के बाद कुछ लोग वापस चले गये और कुछ यहीं हिन्दुस्तानी जमीन पर अवैध रूप से बस गये। अब इसी कहानी को फास्ट फॉरवर्ड करते हुए, हम 1971 से सीधे साल 1986 में जम्प करते है। आसाम में अवैध रूप से रह रहे, बांग्लादेशियों के खिल़ाफ छह साल लंबा जन आंदोलन चला। इस आंदोलन के इर्द-गिर्द असमी अस्मिता, मूल निवासी जातीय पहचान, संसाधनों और नौकरी हासिल को करने की मंशा काम कर रही थी। सरकार ने दबाव में आकर 1986 में सिटिज़नशिप ऐक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए खास़ प्रावधान की व्यवस्था की। गौरतलब है कि असम नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस (एनआरसी) लागू करने वाला देश का पहला सूबा है। एनआरसी की प्रावधानों से ये साफ होता है कि, कौन इस देश का मूल निवासी है या कौन शरणार्थी बनकर आया था और अब इस देश का नागरिक बन गया है। 30 जुलाई 2018 को एनआरसी का पहला प्रारूप आया था। जिसमें 40 लाख से ज़्यादा लोगों के नाम शामिल नहीं थे। अब ये तस्वीर है कि एनआरसी की आखिरी लिस्ट आ गयी है। इसमें तकरीबन 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं है। इसी बात के लेकर सूबे के लोगों में काफी हड़कम्प मचा हुआ है। जिन लोगों के नाम लिस्ट में शामिल नहीं है, उसे असम सरकार ने मौका दिया है, जिसमें निवासी अगर ये साबित कर दे कि, 1951 की एनआरसी लिस्ट में उनके पूर्वजों का नाम शामिल था, या फिर 1971 में बांग्लादेश की आजादी से पहले अगर उनका नाम असम की वोटर लिस्ट में शामिल है तो उन्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है। उन्हें असम का मूल निवासी ही माना जायेगा। जो लोग इस प्रक्रिया से असन्तुष्ट है वो फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील दायर कर सकते है। जिसके लिए उन्हें 120 दिन की मोहलत दी जायेगी।
— NRC Updation Assam (@NRCupdateAssam) August 31, 2019
My appeal to the people of Assam on the eve of publication of final #NRC pic.twitter.com/rZJJSB3cuj— Sarbananda Sonowal (@sarbanandsonwal) August 30, 2019
लोगों में फैली घबराहट के मद्देनज़र आसाम में सुरक्षाबलोंं की तैनाती कर दी गयी। लिस्ट में अपना नाम देखने के लिए एनआरसी केन्द्रों पर काफी भीड़ जुटने लगी है। अफवाहों और फेक न्यूज़ से बचाने के लिए प्रशासन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस पर कड़ी निगरानी कर रहा है।
इस मुद्दे की गर्माहट का अन्दाज़ा इसी बात से लगााया जा सकता है कि, आज दिन भर इस खब़क का नैरेटिव सोशल मीडिया पर छाया रहा है। जिसकी वज़ह से ट्विटर पर #NRCassam और #NRCFinalList ट्रैंड कर रहे है। इस मुद्दे को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया काफी मिली जुली रही।
The NRC is a joke, places like Dhubri & Barpeta combined have more than 30 lakhs bangladeshi immigrants and most of the immigrants have already made it to the draft list while the left outs 19lakhs are mostly Hindu Bangalis & North Indians. #NRCassam— Vivekk Bhardwaz (@oyevivekk) August 31, 2019
‘Vasudeva kutumbakam’ (the world is one family) my foot bloody hypocrites#NRCassam— Neha (@NehaKoppula) August 31, 2019
Mohammad Sanaullah, who fought in Kargil war and also won a president’s medal, was declared a “foreigner” by the Foreigners Tribunal, Kamrup, following a case registered in 2008 after his name was listed as a “D” (doubtful) voter. He was sent to a detention camp.
By :HT#NRCassam pic.twitter.com/RdvMq5DTko— Preet Kaur ਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ (@Preet_Kaur11) August 31, 2019