नई दिल्ली (देवेंद्र कुमार): Atiq Ahmed Murder Case: उत्तर प्रदेश में अतीक और अशरफ की पुलिस हिरासत में हत्या की जांच करने समेत उत्तर प्रदेश के विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) ने साल 2017 के बाद से हुई मुठभेड़ों की जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग करते हुए एक वकील के जरिये सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है।
गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस की मौजूदगी में प्रयागराज के अस्पताल ले जाने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। एडवोकेट विशाल तिवारी (Advocate Vishal Tiwari) ने एक जनहित याचिका दायर की है और साल 2017 के बाद से हुई 183 मुठभेड़ों की जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन करने की मांग की है, जैसा कि उत्तर प्रदेश के विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून और कानून) ने कहा है।
उन्होंने अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की हत्या के बारे में भी पूछताछ करने की मांग की है, जिनकी पुलिस की मौजूदगी में हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वकील विशाल तिवारी ने अपनी जनहित याचिका में कानपुर बिकरू एनकाउंटर केस (Bikeru Encounter Case) 2020 जिसमें विकास दुबे (Vikas Dubey) और उसके सहयोगियों की जांच और सबूतों को रिकॉर्ड करने के लिये केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश देकर फर्जी मुठभेड़ों का पता लगाने के लिये निर्देश जारी करने की भी मांग की है।
याचिका में कहा गया है, “उत्तर प्रदेश पुलिस ने डेयरडेविल्स बनने की कोशिश की है।” याचिकाकर्ता ने कहा कि उनकी जनहित याचिका कानून के शासन के उल्लंघन और उत्तर प्रदेश की ओर से की जा रही दमनकारी पुलिस बर्बरता के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता ने अदालत को अवगत कराया है कि उसने विकास दुबे के कानपुर मुठभेड़ (Kanpur Encounter) से जुड़े एक मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाया है और कहा है कि इसी तरह की वारदात उत्तर प्रदेश पुलिस (Uttar Pradesh Police) की ओर से दोहराई गई थी, जो कि अतीक अहमद गैंगस्टर के बेटे असद की मुठभेड़ में देखने को मिलता है। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की निजी हमलावरों ने तब हत्या कर दी थी, जब वो पुलिस हिरासत में थे और उन्हें चिकित्सा परीक्षण के लिए ले जाया जा रहा था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इस तरह की घटनायें लोकतंत्र और कानून के शासन के लिये गंभीर खतरा हैं और इस तरह की हरकतें अराजकता को बढ़ा सकती है।
उन्होंने ये भी जिक्र किया कि कानून के तहत न्यायेतर हत्याओं या फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की बहुत बुरी तरह से निंदा की गयी है और ऐसी चीजें लोकतांत्रिक समाज में मौजूद नहीं हो सकती हैं। पुलिस को अंतिम न्याय देने या दंड देने वाली संस्था बनने की मंजूरी नहीं दी जा सकती है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि- “दंड की शक्ति सिर्फ न्यायपालिका में निहित है। पुलिस जब डेयर डेविल्स बन जाती है तो कानून का पूरा शासन ध्वस्त हो जाता है और पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में डर पैदा करता है जो कि लोकतंत्र के लिये बेहद खतरनाक है और इसके नतीज़न आगे अपराध भी होते हैं।”
याचिकाकर्ता वकील विशाल तिवारी (Petitioner Advocate Vishal Tiwari) ने आगे कहा कि- 15 अप्रैल को गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को उत्तर प्रदेश पुलिस मेडिकल परीक्षण के लिये ले जा रही थी, वो यूपी पुलिस की हिरासत में थे और उनकी ड्यूटी थी कि वो आरोपी को सर्वोच्च सुरक्षा प्रदान करते।
वकील ने ये भी कहा कि अतीक अहमद और उनके भाई की हालिया हत्या इस मामले की पारदर्शिता पर सवाल उठाती हैं। ये भारतीय लोकतंत्र और कानून के शासन पर सीधा हमला है। बाद में हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अपराध के दौरान पुलिस की ओर से कोई पुख्ता सुरक्षा मुहैया नहीं करवायी गयी थी। ये प्रकरण अपने आप में बड़ा सवाल खड़ी करती है।