न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): चमोली में ग्लेशियर टूटने (Avalanche in Chamoli) के बाद अभी तक रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, भारतीय सेना, भारतीय तिब्बत बॉर्डर पुलिस और सशस्त्र सीमा बल की टीमें लगातार बचाओ अभियान में लगी हुई है। उत्तराखंड पुलिस के मुताबिक टनल में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए हर तरह की तकनीकी मदद ली जा रही है। अभी तक करीब 15 लोगों को रेस्क्यू अभियान के तहत बचाया गया साथ ही 14 शवों की बरामदगी भी की गई।
इस राहत और बचाव अभियान में वायुसेना के सी-130 विमान को लगाया गया। साथ ही सेना और नौसेना के विशेष गोताखोरों की तैनाती रैणी गांव के आसपास के इलाकों में कर दी गई। रेस्क्यू ऑप्रेशन में तेजी लाने के लिए नौसेना की विशेष कमांडो यूनिट मार्कोस (Special Commando Unit Marcos) जौलीग्रांट पहुंच गई है। इंडियन एयर फोर्स को घटना वाले इलाकों का हवाई सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया है। भारतीय सेना की इंजीनियर टास्क फोर्स देर रात जरनेटर और सर्च लाइट की मदद से सुरंग का मलबा हटाने का काम करती रही। स्थानीय प्रशासन ने मामले की संवेदनशीलता देखते हुए घटना स्थलों के आसपास चिकित्सा सहायता के इंतज़ाम कर रखे है।
दोनों हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से अभी तक करीब 121 लोग लापता बताए जा रहे हैं। बचाओ अभियान का जायजा लेने के लिए केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक तपोवन पहुंच चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक जिस दूसरी सुरंग को आइटीबीपी द्वारा खोजा जा रहा है, उसमें करीब 30 लोगों के फंसे होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इस कवायद के दौरान प्रशासन की प्राथमिकता सुरंग में फंसे लोगों को बचाने की है जिसके लिए जेसीबी और हाइड्रोलिक क्रेन (Hydraulic crane) की मदद ली जा रही है।
वायु सेना के हवाई सर्वेक्षण (Aerial survey) में बताया गया है कि, इस आपदा में तपोवन डैम पूरी तरह बर्बाद हो गया है। इसके साथ ही मलारी वैली और तपोवन के प्रवेश द्वार पर बना पुल इस हादसे में बह गए। जोशीमठ से तपोवन के बीच मुख्य सड़क इस आपदा की चपेट में आने से बच गई। किसी भी तरह की संभावित घटना के मद्देनजर जोशीमठ, ऋषिकेश और श्रीनगर में आपदा प्रबंधन की टीमों को हाई अलर्ट रखा गया है।
पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने और विस्फोटक का इस्तेमाल करने का मामला कोर्ट में लंबित
गौरतलब है कि साल 2019 के दौरान स्थानीय निवासी कुंदन सिंह ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए, आरोप लगाया था कि इस परियोजना से जुड़ी प्राइवेट कंपनी अपनी गतिविधियों से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रही है। उन्होनें पीआईएल में लिखा कि कंपनी पहाड़ों की खुदाई के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल कर रही है। जिससे आसपास के संवेदनशील इलाकों खासतौर से नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व को नुकसान पहुंचने की भारी आशंका है।
कोर्ट के आदेशों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव और जिला मजिस्ट्रेट की संयुक्त निरीक्षण टीम मौके पर सर्वेक्षण के लिए पहुंची और उन्होंने रिपोर्ट देते हुए कहा कि, उन्हें वहां कोई भी गैरकानूनी खुदाई और विस्फोटक का सुराग नहीं मिला है। साथ ही उन्होंने बताया कि वहां पर कुछ बैराज और पावर हाउस हैं, जिन्हें जल्द ही खाली करवा लिया जाएगा। मामला अभी भी उत्तराखंड उच्च न्यायालय में लंबित है।