न्यूज डेस्क (यर्थाथ गोस्वामी): बसंत पंचमी (Basant Panchami) या वसंत पंचमी के दिन विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। माँ सरस्वती ज्ञान, विद्या, संगीत, कला और विज्ञान की देवी हैं। वसंत पंचमी प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो हर साल हिंदू कैलेंडर (Hindu calendar) के अनुसार माघ (वसंत) के महीने में चंद्र ग्रहण के पांचवें दिन मनाया जाता है। ये दिन ज्यादातर जनवरी या फरवरी में पड़ता है।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन के साथ स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में दिन की शुरुआत होती है। इस दिन अबूझ मुहूर्त (Abuja Muhurta) भी होता है यानि कि इस दिन किसी भी शुभकार्य को बिना किसी चिंता के शुरू किया जाता है। साथ ही यहीं मुहूर्त सरस्वती पूजन (Saraswati Pujan) के दौरान किये जाने वाले अनुष्ठानों को पूरा करने के लिये पावन माना जाता है।
ज्योतिषीय परम्परा (Astrological Tradition) के अनुसार प्रात: का समय देवी सरस्वती की पूजा करने का सबसे अच्छा समय माना जाता हैं जब पंचमी (पांचवीं) तिथि (तारीख) प्रबल होती है।
बसंत पंचमी तिथि का समय और परम पावन मुहूर्त
इस साल बसंत पंचमी के पर्व का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurut) प्रातः 07:07 से 12:35 तक है।
बसंत पंचमी तिथि 5 फरवरी को सुबह 3:47 बजे शुरू होकर 6 फरवरी को सुबह 3:46 बजे समाप्त होगी।
बसंत पंचमी पूजन हेतु सामग्री
-आम की लकड़ी
-केसरी
-हल्दी
-कुमकुम
-अक्षत
-नैवेद्य
-गंगाजल
-कलश
-श्रीफल
-हवन समिधा
– षोडश मातृका
-पीले कपड़े
-केसर मिठाई
-चंदन
-दूर्वा दल
-सरस्वती यंत्र
सरस्वती पूजन विधि
- लकड़ी के चबूतरे पर साफ लाल/पीले रंग का कपड़ा बिछाकर देवी सरस्वती की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
- किताबें, कलम/पेंसिल/स्लेट देवी के चरणों में रखें।
- पीतल या मिट्टी का दीपक जलायें। (घी/सरसों के तेल या तिल के तेल का प्रयोग करें)।
- अगरबत्ती जलायें।
- माँ सरस्वती को अपनी प्रार्थना और प्रसाद स्वीकार करने के लिये अत्यंत भक्ति के साथ आमंत्रित करें।
- देवी के माथे पर चंदन और कुमकुम (Sandalwood And Kumkum) का टीका लगायें।
सरस्वती पूजन मंत्र
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥