नई दिल्ली (शौर्य यादव): भगत सिंह (Bhagat Singh) का वजूद किसी फलसफे से कमतर नहीं है। आज भी उनकी सोच कहीं ना कहीं दिलों पर दस्तक देते हुए झकझोर देती है। सरफरोश मिज़ाज, रूमानियत, आज़ादी का जज़्बा, शायराना अन्दाज़ और अहले वतन की खिदमत में सब कुछ लुटाने की सोच वाकई रूह को आंसुओं में डुबाने के लिए काफी है। लायलपुर जिले के बंगा गांव की मिट्टी आज भी खुद रश़्क (Jealously) करती होगी कि उसने भगत सिंह जैसे महामानव को रचा। बिस्मार्क, गैरीबाल्डी, त्रात्स्की, कार्ल मार्क्स, लियो टॉलस्टॉय और लेनिन उनके वैचारिक सहोदर (Ideological sibling) थे। राजगुरू, यशपाल, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव जैसे आज़ादी के परवाने उनके दोस्त थे। लड़कपन से ही उन्हें फ्रांस, आयरलैंड, इटली और रूस की क्रांति के बारे में पढ़ने का शौक था। उनकी लिखी चिट्ठियां, लेख, सम्पादकीय और शेर आज भी रगो में बिजली दौड़ाने के लिए काफी है।
23 साल और कुछ महीने की ज़िन्दगी में उन्होनें इंकलाबियत बखूबी निभायी। आजादी को अपनी दुल्हन बना लिया। वामपंथ की ओर उनका झुकाव जगजाहिर था। उनका लिखा लेख ‘‘मैं नास्तिक क्यों हूं’’ उनकी वैचारिक गहराइयों (Ideological depths) को जानने के लिए काफी है। चार्ली चैप्लिन की फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना उन्हें काफी पसन्द था। बोलने, लिखने और पढ़ने में उन्हें महारत हासिल थी। उनकी बातें सुनने वालों को रूहानी सुकून पहुँचाती थी। कई बार तो वैचारिक विरोधी भी उनकी जादुई शख्सियत के सामने नतमस्तक जाता था।
कोई दम का मेहमां हूं एक अहले महफिल
चरागे शहर हूं, बुझा चाहता हूं
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते खाक है, फानी रहे न रहे
भगत सिंह को समझने के लिए आपको वतन मिट्टी से इश्क करना होगा। आजादी के सही मायने क्या होते है ये समझना होगा। इंकलाब को रास्तों पर चलना होगा। इंसानियत की नब़्ज टटोलनी होगी। खुद का वजूद इन खुली आज़ाद फिज़ाओं में तलाशना होगा। कभी कोई आपसे पूछे सुपरहीरो कैसे होते है तो आप भगत सिंह की तस्वीर दिखा देना।