Agriculture Bills पर सामने आया Bharatiya Kisan Union का पक्ष

नई दिल्ली (न्यूज़ डेस्क): हम बताते हैं सच्चाई क्या है। “पैरों में जंजीर और गले में फन्दा” कभी सोचा है, किसानों को इस धन्धें क्यों बांधा गया था ?सही क्या और गलत क्या ? क्या किसानों का तीनों नए अध्यादेश (Agriculture Bills) के विरुद्ध आंदोलन उचित है भी या नहीं ? सन 1970 के दशक में कांग्रेसी सरकार ने एक कानून पास किया जिसका नाम था APMC Act इस एक्ट में यह प्रावधान किया गया कि किसान अपनी उपज केवल सरकार द्वारा तय स्थान अर्थात सरकारी मंडी में ही बेच सकता है। इस मंडी के बाहर किसान अपनी उपज नहीं बेच सकता। और इस मंडी में कृषि उपज की खरीद भी वो ही व्यक्ति कर सकता था जो APMC ACT में पंजीकृत हो, दूसरा नही। इन पंजीकृत व्यक्तियों को देशी भाषा में कहते हैं “आढ़तिया” यानि “कमीशन एजेंट” इस सारी व्यवस्था के पीछे कुतर्क यह दिया गया कि व्यापारी किसानों को लूटता है इसलिये सारी कृषि उपज की खरीद बिक्री सरकारी ईमानदार अफसरों के सामने हो। जिससे “सरकारी ईमानदार अफसरों” को भी कुछ “हिस्सा पानी” मिलें।

इस एक्ट आने के बाद किसानों का शोषण (Exploitation of farmers) कई गुना बढ़ गया। इस एक्ट के कारण हुआ क्या कृषि उपज की खरीदारी करने वालों की गिनती बहुत सीमित हो गई। किसान की उपज के मात्र 10 – 20 या 50 लोग ही ग्राहक होते है। ये ही चन्द लोग मिल कर किसान की उपज के भाव तय करते है। मजे कि बात ये है कि फिर रोते भी किसान ही है कि इस महंगाई के दौर में किसान को अपनी उपज की सही कीमत नही मिल रही है। जब खरीददार ही संगठित और सीमित संख्या में होंगे तो सही कीमत कैसे मिलेगी ?

यह मार्किट का नियम है कि अगर अपने उत्पादक का शोषण रोकना है तो आपको ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी जिसमें खरीददार की गिनती अनगिनत हो। जब खरीददार ज्यादा होंगे तभी तो किसी भी माल की कीमत बढ़ेगी। लेकिन वर्तमान में चल रही मण्डी व्यवस्था में तो किसान की उपज के मात्र 10 – 20 या 50 लोग ही ग्राहक होते है। APMC ACT से हुआ क्या कि अगर किसी फुटकर विक्रेता को, किसी उपभोक्ता को, किसी छोटे या बड़े विनिर्माता को, या किसी बाहर के व्यापारी को किसी मंडी से सामान खरीदना होता है तो वह किसान से सीधा नहीं खरीद सकता उसे आढ़तियों से ही समान खरीदना पड़ता है। इसमें आढ़तियों की होगी चांदी ही चाँदी और किसान और उपभोक्ता दोनो रगड़ा गया।

जब मंडी में किसान अपनी वर्ष भर की मेहनत को मंडी में लाता है तो खरीददार यानि आढ़तिये आपस में मिल जाते हैं और बहुत ही कम कीमत पर किसान की फसल खरीद लेते हैं। याद रहे, बाद में यही फसल ऊंचे दाम पर उपभोक्ता को उपलब्ध होती थी। यह सारा गोरखधंधा ईमानदार अफसरों की नाक के नीचे होता है। एक टुकड़ा मंडी बोर्ड के अफसरों को डाल दिया जाता है।

मंडी बोर्ड का चेयरमैन लोकल MLA को मोटी रिश्वत देकर नियुक्त होता है। एक हड्डी राजनेताओं के हिस्से भी आती है। यह सारी लूटखसोट APMC Act की आड़ में हो रही थी। दूसरा सरकार ने APMC Act की आड़ में कई तरह के टैक्स और कमीशन किसानों पर थोप दिए। जैसे कि किसान को अपनी फसल “कृषि उपज मंडी” में बेचने के लिए 3% मार्किट फीस, 3% ग्रामीण विकास फंड और 2.5% कमीशन का ज़बरन भुगतान करना पड़ता था। मजदूरी आदि मिलाकर यह फालतू खर्च 10% के आसपास हो जाता है। कई राज्यों में यह खर्च 20% तक पहुंच जाता है। यह सारा खर्च किसान पर पड़ता है। बाकी मंडी तक फसल का ट्रांसपोर्टेशन, रखरखाव का खर्च (Crop transportation and maintenance costs) अलग से बैठता है।

मंडियो में फसल की चोरी, कम तौलना आम बात है। कई बार फसल कई दिनों तक नहीं बिकती किसान को खुद फसल की निगरानी करनी पड़ती है। एक बार फसल मंडी में आ गई तो किसान को वह “बिचौलियों” द्वारा तय की कीमत पर यानि औने पौने दाम पर बेचनी ही पड़ती है। क्योंकि कई राज्यों में किसान अपने राज्य की दूसरी मंडी में अपनी फसल नहीं लेकर जा सकता। दूसरे राज्य की मंडी में फसल बेचना APMC Act के तहत गैर कानूनी था।

APMC Act सारी कृषि उपज पर लागू होता है चाहे वह सब्ज़ी हो, फल हो या अनाज हो। तभी हिमाचल में 10 रुपये किलो बिकने वाला सेब उपभोक्ता तक पहुँचते-पहुँचते 100 रुपए किलो हो जाता है। मोदी सरकार द्वारा किसानों की हालत सुधारने के लिये तीन अध्यादेश लाए गये हैं। जिसमे निम्नलिखित सुधार किए गए है:

1. अब किसान मंडी के बाहर भी अपनी फसल बेच सकता है और मंडी के अंदर भी।

2. किसान का सामान कोई भी व्यक्ति संस्था खरीद सकती है, जिसके पास पैन कार्ड हो।

3. अगर फसल मंडी के बाहर बिकती है तो राज्य सरकार किसान से कोई भी टैक्स वसूल नहीं सकती।

4. किसान अपनी फसल किसी राज्य में किसी भी व्यक्ति को बेच सकता है।

5. किसान “कॉन्टैक्ट खेती” करने के लिये अब स्वतंत्र है।

6. कॉन्टैक्ट खेती (Contact farming) में किसी कंपनी या व्यापारी से उपज की बिक्री का करार हो जाने के बाद फसल की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक संसाधन और इनपुट्स उपलब्ध करवाना खरीददार की जिम्मेदारी होगी। अर्थात खरीददार किसान को कृषि उपकरण, मशीनरी आदि उपलब्ध करवाएगा।

7. कॉन्टैक्ट खेती के तहत उगाई गई फसल को कृषि उपज बिक्री से संबंधित नियम कानूनों और आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों से मुक्त रखा जाएगा।

कई लोग इन कानूनों के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहें है, जोकि निम्नलिखित है:

1. आरोप: सरकार ने मंडीकरण खत्म कर दिया है ?

उत्तर : सरकार ने मंडीकरण खत्म नहीं किया। मण्डियां भी रहेंगी। लेकिन किसान को एक विकल्प दे दिया कि अगर उसको सही दाम मिलता है तो वह कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है। मंडी में भी और मंडी के बाहर भी।

2. आरोप: सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP समाप्त कर रही है ?

उत्तर : मंडीकरण अलग चीज़ है MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य अलग चीज़ है। सारी फसलें, सब्ज़ी, फल मंडीकरण में आते है। MSP सब फसलों पर नहीं मिलता है।

3. आरोप: सारी फसल अम्बानी खरीद लेगा।

उत्तर : वह तो अब भी खरीद सकता है, आढ़तियों को बीच में डालकर।

यह तीन कानून किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Farmers and Rural Economy) की मुक्ति के कानून हैं। आज इस सरकार ने किसानों पर कांग्रेस द्वारा लगाई गयी बन्दिश को हटा कर, हर किसी को अपनी उपज बेचने के लिये आजाद करके, पूरे देश का बाजार किसानों के लिये खोल दिया है। अब किसानों को कोई भी टैक्स भी नही देना होगा। जो भी लोग विरोध कर रहे है वो उन की अपनी समझ है, इस सरकार से बढ़ कर कोई किसान हितैषी सरकार कभी नही बनी और भविष्य में भी कोई नही बनेगी। क्योंकि मोदी जी बहुत अच्छे से जानते है कि किसान और जवान ही देश के आधार है।

विनोद त्यागी

भारतीय किसान यूनियन (अम्बावत)

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