यूएस उर्फ अमेरिका को दुनिया भर में लोकतंत्र का आदर्श माना जाता था। अब आदर्श लोकतंत्र का बिहार (Bihar) में दिख रहा है, कोरोना में चुनाव निपटे, नयी सरकार बनने की प्रक्रिया तेज हुई। एक तरह से बिहार में लोकतंत्र का आदर्श अमेरिका पुरानावाला दिखा।
उधर अमेरिका में चुनाव निपटने का नाम नहीं ले रहे हैं। मतलब चुनाव अमेरिका में निपट तो गये हैं, पर मतलब निपटे नहीं हैं। ट्रंप जाने का नाम नहीं ले रहे हैं, बिडेन आने को तैयार बैठे हैं। बिडेन आ गये हैं, पर मतलब अभी आये नहीं हैं,ठीक वैसे जैसे ट्रंप यूं तो जा चुके हैं, पर मतलब गये नहीं हैं।
ये मतलब मतलब क्या है, बात साफ क्यों नहीं हो रही है। ट्रंप ने अमेरिका के चुनावों को कौन बनेगा करोड़पति टाइप प्रोग्राम बनाकर छोड़ दिया है। कौन बनेगा राष्ट्रपति टाइप प्रोग्राम चल रहा है। अमेरिकन लोकतंत्र की फजीहत (American democracy trounced) हो रही है-तानाशाह दुनिया भर के कह रहे हैं, देख लो यह होती है फजीहत लोकतंत्र में। उत्तरी कोरिया के किम जोंग (North Korea’s Kim Jong) कह रहे हैं कि हमारा यहां कोई कन्फ्यूजन नहीं है, बरसों पहले पूछो सवाल कौन है बास-किम जोंग। बरसों बाद पूछो सवाल कौन है बास-किम जोंग। चीन में जिन पिग ने कुछ ऐसा ही जुगाड़ कर लिया है कि बरसों बरस इस सवाल का एक ही जवाब रहेगा कि बास कौन-जिन पिग।
मैं डर रहा हूं कि फजीहत इस स्तर पर ना हो जाये कि व्हाईट हाऊस में दूध की सप्लाई करनेवाले दूधिये की पिटाई हो जाये। ट्रंप के समर्थक पीटें कि अच्छा हमारे बास की तरफ सप्लाई नहीं करेगा, बिडेन की तरफ ही दूध दे रहा है। उधर बिडेन के समर्थक दूधिये को धोयें-समझ क्या रहा है, अंदर करवा देंगे, हमारे बास राष्ट्रपति बिडेन ही असली बास हैं।
बास कौन है, मतलब यह तय हो गया है, पर मतलब तय नहीं भी हुआ है। हम क्या मानें, मतलब दोनों को ही
बधाई
दे दी जानी चाहिए। कौन रहेगा,पता नहीं है। क्या पता दोनों ही रह जायें। सुबह का राष्ट्रपति कोई और शाम से रात का राष्ट्रपति कोई और, अमेरिका है लोकतंत्र के नये माडल पैदा कर सकता है।
काश अमेरिका लोकतंत्र के मामले में बिहार जैसा हो पाता।
साभार- आलोक पुराणिक