न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): बंगाल चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) को करारा झटका लगा है। जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) की बड़ी कामयाबी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस पूरे मामले के सूत्रधार बने शुभेंदु अधिकारी जिन्होनें हाल में टीएमसी से इस्तीफा दे दिया है, उन्हें ममता बनर्जी का खास सिपहसालार माना जाता था। सूबे में ममता का राजनीतिक किला अभेद्य (Political fort Impregnable) बनाने में उनका खास योगदान रहा था। कई लोग इसे अमित शाह की सियासी घेरेबंदी से जोड़कर देख रहे है। शुभेंदु अधिकारी को जेड कैटेगरी के सुरक्षा मिलना इसी ओर इशारा कर रहा है कि, वो जल्द ही सूबे के भगवा खेमे में ताल ठोंकते नज़र आय़ेगें। एक कार्यक्रम के दौरान शुभेंदु ने दावा किया कि उन पर 11 बार जानलेवा हमले हो चुके है।
बीते 27 नवंबर को उन्होनें पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री पद से इस्तीफा दिया था, लेकिन उनकी टीएमसी की प्राथमिक सदस्यता से उन्होनें इस्तीफा नहीं दिया। जिसके बाद सियासी कयास लगाने की सरगर्मियां काफी बढ़ गयी थी। इसके बाद कई सिलसिलेवार घटनाक्रम (Sequential events) हुए, जिससे उनके भाजपा में छिटककर जाने के आसार पुख्ता होते दिख रहे है। फिलहाल उन्होनें भाजपा की औपचारिक सदस्यता ग्रहण नहीं की है। इंटलीजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट और खतरे को आंकते हुए उन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा का मिलना, पूर्व मेदिनीपुर जिले के कांथी में उनके कार्यालय का भगवा रंग में रंगा जाना इसी बात की ओर इशारा करता है कि अब भाजपा में उनका शामिल होना मात्र औपचारिकता ही रह गया है।
पार्टी को इस्तीफा देते हुए उन्होनें लिखा कि, अब टीएमसी में बने रहना उनके लिए मुश्किल है। पश्चिम बंगाल के सेवा के लिए वो आगे भी तत्पर रहेगें। पश्चिम बंगाल में भगवा लहराना भाजपा के लिए अब अस्मिता का सवाल का बन गया है। जेपी नड्डा के काफिले पर हमला और हमले में कैलाश विजयवर्गीय के बुरी तरह घायल होने के बाद बीजेपी की इस मंशा को और भी मजबूती मिली है। कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि, इस प्रकरण की पटकथा अमित शाह के आदेश पर दिलीप घोष और कैलाश विजयवर्गीय ने लिखी। कहीं ना कहीं इससे भाजपा को बड़ी पॉलिटिकल माइलेज (Political mileage) मिलेगी।
शुभेंदु अधिकारी के बाद वनमंत्री राजीव बनर्जी भी ममता दीदी के खिलाफ बगावती तेवर अख़्तियार कर चुके है। एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान उन्होनें कहा कि- आजकल टीएमसी में शीर्ष नेतृत्व में करीबियों को पार्टी में तव्ज़्जों दी जा रही है। मेहनती कार्यकर्ताओं को दरकिनार (Bypassing) किया जा रहा है। लोग सेवा के लिए नहीं सत्ता का सुख भोगने के लिए पार्टी में आ रहे है। अगर राजीव बनर्जी भी टीएमसी का दामन छोड़ देते है तो आम जनता के बीच संदेश जायेगा कि सूबे में दीदी का किला ढह रहा है। जिसका उन्हें खासा नुकसान भुगतना पड़ सकता है। इसी तर्ज पर मुकुल रॉय टीएमसी से छिटककर भाजपाई खेमें शामिल हुए थे।
प्रशांत किशोर, सुदीप बनर्जी और अभिषेक बनर्जी ने उन्हें मानने की कोशिश की थी। फिलहाल वो कवायद बेकार जाती दिख रही है। भीतरखाने ये भी चर्चा तेज है कि टीएमसी की अंदरूनी कलह का बड़ा कारण है मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है। आगामी विधानसभा की रणनीति तैयार करने में दोनों बेहद सक्रियता से काम कर रहा है। जिसके पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी हो रही है, उनसे रायशुमारी नहीं की जा रही है।
पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को लगता है कि उनकी अनदेखी की जा रही है। अहम फैसलों लेने में उन्हें दरकिनार किया जा रहा है। जिसका नतीज़ा पार्टी के लिए बेहद गंभीर हो सकता है। ऐसे में हाल की उभर रही तस्वीर को देखते हुए लगता है कि भाजपा के लिए ये नफ़े का सौदा साबित हो रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या ये टीएमसी के किले में सेंध है? अगर सेंध है तो इसका कितना फायदा भाजपा को और कितना नुकसान टीएमसी को पहुँचता है?