देशभर में परोपकार (Philanthropy) की आड़ में ऊंचे दर्जे की मनी लॉन्ड्रिंग (Money laundering) की जा रही है। तकरीबन 90 फीसदी लोग जो परोपकार का नकाब पहने हुए है, वे सभी काले धन के मालिक है। इन्हीं लोगों का खुराफाती दिमाग विकास कार्यों को झटका देता है। जिससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था (Economy) काले धन और घोटालों को रोकने में नाकाम रही है। इससे सीधे तौर पर सामाजिक-आर्थिक सन्तुलन (Socio-economic balance) कायम नहीं हो पा रहा है। इसकी जीती-जागती मिसाल है राणा कपूर और उनका परजीवी परिवार (Parasitic family)। यहाँ सरकार और कॉर्पोरेट्स (Corporates) के बीच गठजोड़ है, जिसका खुलासा होना चाहिए। जिस तरह से समीकरण बन रहे है, उसे देखकर लगता है कि जल्द ही एक लंबी फेहरिस्त सामने आयेगी जिसमें कई बड़े कॉर्पोरेट्स, एनजीओ, ट्रस्ट्स, और फ़ाउंडेशन (Foundation) का नाम शामिल हो सकता है। ये ज़मात राष्ट्रीय स्तर के परजीवी है। जब इनके नामों का खुलासा होगा और सबूत सामने आयेगें तो देखना दिलचस्प होगा कि, देश के कथित चौकीदारों की फौज क्या कदम उठाती है। तब इन लोगों के राष्ट्रवाद (Nationalism) का खुलासा होगा। और तब इस ज़मात से परफॉर्मेंस के चलते मरने का सवाल पूछा जायेगा।
परोपकार की आड़ में काले धन का कारोबार
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