नई दिल्ली (शशांक शेखर): अतुल श्रीवास्तव का नाम बी- टाउन में पहचान का मोहताज नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री में लंबा वक्त गुजारने के साथ-साथ उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया। लुक्का-छुप्पी (Lukka Chuppi), स्त्री (Stri), लगे रहो मुन्ना भाई (Lago Raho Munna Bhai) और टॉयलेट एक प्रेम कथा (Toilet – Ek Prem Katha) जैसी फिल्मों में उनकी बेहतरीन अदाकारी उन्हें अच्छे कलाकारों की फेहरिस्त में शुमार करती है। फिलहाल अतुल श्रीवास्तव वरदराज स्वामी के निर्देशन में बनी फिल्म “कबाड़ द कॉइन (Kabbad The Coin)” को लेकर काफी उत्साहित हैं।
बकौल अतुल श्रीवास्तव- वरदराज बेहद संवेदनशील फिल्मकार है। इन्हें मैं मांझी द माउंटेन मैन के पहले से जानता हूं। मैं जिस तरह का काम करना चाहता हूं, उसमें वरदराज फिट बैठते हैं…
वरदराज अतुल श्रीवास्तव से अपने पुराने तालुक्कात के बारे में जिक्र करते हुए कहते है कि- अतुल जी से मेरा काफी पुराना नाता रहा है। मैं उन्हें पृथ्वी थिएटर के वक्त से जानता हूं। मेरी फिल्म कबाड़ द कॉइन में जिस तरह के कैरेक्टर की जरूरत थी, उसे लेकर मुझे अतुल जी से ये उम्मीद थी, ये किरदार अतुल जियेंगे तो अच्छा जियेंगे। अतुल जी भारतीय सिनेमा के उम्दा कलाकार हैं…
मैं अपनी स्क्रिप्ट लेकर उनके पास गया, उन्हें नरेशन दी, उन्होंने अपने करैक्टर का स्कोप देखा और कहा मैं इस फिल्म को कर रहा हूँ…। मैंने उनको करैक्टर की डिटेलिंग और वर्कशॉप के बारे में बताया। वर्कशॉप करने को कहा तो अतुल जी ने कहा “मैं अपने तरीके से वर्कशॉप करूँगा…तुम्हें ना-उम्मीद नहीं होने दूँगा…” मैंने एक करैक्टर स्केच तैयार करके उनको भेज दिया। मुझे पता ही नहीं था, मगर अतुल जी ने चुपचाप अपने तरीके से वर्कशॉप करना शुरू कर दिया, और दूसरी तरफ मैं बहुत टेंशन में रहता था कि, अतुल जी टाइम नहीं निकाल पा रहे हैं। सीधे सेट पर आयेंगे तो कैसे करैक्टर को प्ले करेंगे ? काफी वक़्त लगेगा सेट पर समझाने में।
एक दिन अतुल जी ने शहजाद के पास एक विडियो भेजा, जिसमें वो एक मोची के पास बैठे हुए थे। मैंने कॉल करके जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि, मैं अपना वर्कशॉप नेचुरल कर रहा हूँ। इसके लिए मैं अलग-अलग मोचियों के पास जाता हूँ और उनसे घंटों बातें करता हूँ। इन सबके बीच मैंने एक मोची को खोज रखा है, उससे दोस्ती भी हो गयी है। उसके पास जाता हूँ, उससे बातें करता हूँ, उसको समझने की कोशिश करता हूँ…आऊंगा तो आपको दिखाऊंगा, उसमें कुछ आपको करेक्शन करना होगा तो बताना, मैं वहीं तुरंत कर दूँगा।
अचानक एक दिन बिना कुछ बताये अतुल जी ऑफिस आ गए और उन्होंने स्क्रिप्ट के ख़ास-ख़ास डायलॉग बोल के दिखाये, मैं हैरान रह गया।
अतुल श्रीवास्तव कहते हैं कि-वरदराज ने मेरे ऊपर बहुत दबाव बना दिया था। इस करैक्टर को लेकर मुझे ऐसा लग रहा था कि, अगर करैक्टर से साथ न्याय नहीं किया गया तो अच्छा नहीं होगा। क्योंकि ये बहुत अलग मोची का किरदार था। जिसे मैंने अभी तक किया नहीं था। मैं इस करैक्टर को लेकर काफी डर हुआ था, इसलिये मैंने बहुत तैयारी की…बाद में वरदराज और शहजाद ने करैक्टर को थोड़ा और शेप दिया, उसको लाउड होने से बचाया। जिससे कि ये और निखर गया। इसके लिए मैं वरदराज और शहजाद का थैंक्स बोलूँगा।
वरदराज के मुताबिक अतुल श्रीवास्तव की ये अच्छी बात है कि जो भी करते हैं, उसमें पूरी तरह से इन्वॉल्व हो जाते हैं। यहां एक वाकये का जिक्र करूंगा। रोड के किनारे मोची की दुकान का सेट लगवाया गया। शूट में चप्पल सिलवाने के टेक के दौरान एक औरत असल में चप्पल सिलवाने चली आई, अतुल जी ने उसको चप्पल सिलकर दे दी। हैरानगी तो इस बात की रही, उस औरत को पता ही नहीं चला कि, शूटिंग चल रही है। मैं इनकी नेचुरल एक्टिंग देख कर हैरान रह गया।
अतुल श्रीवास्तव कहते हैं कि, मुझे वरदराज और उनकी यूनिट के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा। इनका छोटी सी छोटी चीज़ को शेप देने का जो तरीका है वो बहुत बेहतरीन है। बहुत कम फिल्मकार हैं जो इस बात को समझते हैं।