न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ): चीन से लद्दाख में मिलने वाली चुनौतियों के बीच आज पीएम मोदी ने ब्रिक्स देशों (BRICS Summit) के संगठन के साथ वर्चुअल बैठक की। दिलचस्प है कि ये बैठक ऐसे वक़्त में हो रही है। जब प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले हुई एससीओ की वार्ता के दौरान बीजिंग के विस्तारवादी रवैये (Beijing’s expansionist attitude) पर अपनी बात इशारों में रख चुके है। जिस दौरान पीएम मोदी इस कार्यक्रम में अपना संबोधन दे रहे थे, उसी दौरान क्वाड देश मालाबार नौ-सेना युद्धाभ्यास (Malabar Naval War Practice) कर ड्रैगन को अरब सागर में चुनौती दे रहे थे। गौरतलब है कि नंवबर महीने के दौरान ही चार बार पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का चार बार सामना होगा। एससीओ और ब्रिक्स के मंचों पर आमने-सामने आने के बाद पीएम मोदी 21 और 22 नवंबर को होनी वाली जी-20 की वर्चुअल बैठक में फिर एक दूसरे के सामने होगें।
ब्रिक्स वर्चुअल बैठक के दौरान पीएम मोदी के संबोधन के मुख्य अंश:
- भारत ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत एक व्यापक reform process शुरू किया है। यह campaign इस विश्वास पर आधारित है कि एक self-reliant और resilient भारत post-COVID वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए force multiplier हो सकता है और global value chains में एक मजबूत योगदान दे सकता है।
- इसका उदाहरण हमने COVID के दौरान भी देखा, जब भारतीय फार्मा उद्योग की क्षमता के कारण हम 150 से अधिक देशों को आवश्यक दवाइयां भेज पाए। हमारी वैक्सीन उत्पादन और डिलीवरी क्षमता भी इस तरह मानवता के हित में काम आएगी।
- 2021 में BRICS के 15 वर्ष पूरे हो जाएंगे। पिछले सालों में हमारे बीच लिए गए विभिन्न निर्णयों का मूल्यांकन करने के लिए हमारे शेरपा एक रिपोर्ट बना सकते हैं। 2021 में अपनी अध्यक्षता के दौरान हम BRICS के तीनों स्तंभों में intra-BRICS सहयोग को मजबूत करने का प्रयत्न करेंगे।
- आतंकवाद आज विश्व के सामने सबसे बड़ी समस्या है। हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि आंतकवादियों को समर्थन और सहायता देने वाले देशों को भी दोषी ठहराया जाये और इस समस्या का संगठित तरीके से मुकाबला किया जाये।
- हमें खुशी है कि ब्रिक्स की अध्यक्षता के दौरान ब्रिक्स काउंटर टेरिज़्म स्ट्रैटजी को अन्तिम रूप दे दिया गया है। ये महत्त्त्वपूर्ण उपलब्धि है और भारत इस कार्य को अपनी अध्यक्षता के दौरान और आगे बढ़ाय़ेगा।
- आज बहुपक्षीय सहयोग व्यवस्था एक संकट के दौर से गुजर रही है। ग्लोबल गर्वेनेंस संस्थानों की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता दोनों पर ही सवालिया निशान लगाये जा रहे है। इसका प्रमुख कारण ये है कि इनमें समय के साथ उचित बदलाव नहीं आया। ये अभी भी 75 साल पुराने विश्व की मानसिकता और वास्तविकता पर आधारित है।
- भारत का मानना है कि यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में रिफॉर्म्स बहुत ही अनिवार्य है। इस विषय पर हमें ब्रिक्स पार्टनर के सहयोग का अपेक्षा है। यूएन के अतिरिक्त कई अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें भी वर्तमान वास्तविकताओं के अनुसार काम नहीं कर रहे है। WTO, IMF, WHO जैसे इंस्टीट्यूशंस में भी सुधार होना चाहिए।