नई दिल्ली (दिगान्त बरूआ): मौत की काली परछाई (Black Death) यानि कि ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) की आंशकाओं के चलते मंगोलियाई इलाके बाओटौ को चीन (China) ने पूरी तरह सील (Seal) कर दिया। इलाके में इस बीमारी के चलते दो मौतें हो चुकी है। एहियाती कदम के तौर पर स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी मामले की जांच में लगे हुए है। संक्रमित मरीज के सैम्पल्स को लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा गया है। क्षेत्रीय स्वास्थ्य निकाय की वेबसाइट के मुताबिक ब्यूबोनिक प्लेग से संक्रमित व्यक्ति मल्टी ऑगर्न फेल्योर के चलते मरा है। एकाएक उसके कई अहम अंगों ने काम करना छोड़ दिया था।
संक्रमित व्यक्ति के आसपास वाले सभी रिहायशी इलाकों को सील कर, ट्रैसिंग और टेस्टिंग की कवायदों को शुरू कर दिया गया है। मृतक के सम्पर्क में आये सात लोगों को आइसोलेशन वॉर्ड (Isolation ward) में रखकर संक्रमण की जांच की गयी। मेडिकल मॉनिटरिंग (Medical monitoring) के दौरान सभी संदिग्ध व्यक्ति सामान्य पाये गए है। प्लेग से संबंधित किसी भी तरह का लक्षण इनमें नहीं पाया गया है। इलाके में प्लेग से हुई पहली मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया था। कई लोग अबूझ पहेली की तरह देख रहे थे। जिससे इलाके में दहशत फैलने की संभावना काफी बढ़ गयी थी।
चीन के पश्चिमी मंगोलिया प्लेग से हुई मौत का पहला शिकार एक 15 साल का लड़का बना। मिल रही जानकारी के मुताबिक उस लड़के ने मर्मोट (गिलहरीनुमा जीव) का मांस खाया था। जिसकी वज़ह से वो संक्रमण की चपेट में आ गया। मौजूदा हालातों में प्लेग का खात्मा हो चुका है। लेकिन इस वायरस के वाहक जीवों (Virus carrier creatures) को भोजन में शामिल करने की वज़ह से लगातार इसका इंफेक्शन फैलने का खतरा बना रहता है। बीजिंग के आधिकारिक दस्तावेज़ो के मुताबिक बड़े पैमाने पर इसका प्रकोप साल 2009 के दौरान दर्ज किया गया था। तब इसकी चपेट में चीन प्रशासित तिब्बत के किंघई प्रांत का ज़िकेतन शहर (Ziketan City of Qinghai Province, China-administered Tibet) इलाका आया था। जिसकी वजह से कई लोगों की मौतें हुई थी।
ये इंफेक्शन इतना घातक है कि, इसे इतिहास में काली मौत का नाम दिया गया है। यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरिया जनित (Yersinia pestis bacterial infection) इस रोग के वाहक ज्यादातर चूहें, खरगोश, और गिलहारियां जैसे जीव होते है। ये जीव अक्सर पिस्सू छोड़ते है। जब इंसान इसके सम्पर्क में आता है तो तकरीबन 7 दिनों बाद बीमारी के लक्षण तेजी से उभरने लगते है। ये ज़्यादातर वाहक जीवों के फर और मल (Fur and feces of carrier organisms) में पाये जाते है। लेकिन चीन में जो मामले सामने आये है, उनमें वायरस वाहक जीवों को सीधे खाये जाने के कारण बीमारी फैलाना अहम कारण सामने आ रहा है। एहतियाती कदम के तौर पर इस इलाके में मर्मोट के खाने और शिकार करने पर कड़े प्रतिबंध लगा दिये गये है।