न्यूज़ डेस्क (नई दिल्ली): सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि सरकार को COVID-19 महामारी के बीच बैंकों को लॉकडाउन अवधि के दौरान ऋण पर ब्याज माफ करने के निर्देश देने के लिए नहीं कहा जा सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऋण चुकाने की दिशा में EMI पर रोक 31 अगस्त, 2020 से आगे नहीं बढ़ाई जा सकती।
तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के न्यायमूर्ति एम आर शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ करने के पीछे तर्क को नहीं समझ सका। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ब्याज, दंड ब्याज या चक्रवृद्धि ब्याज के रूप में बैंकों द्वारा अधिस्थगन अवधि (moratorium period) के दौरान एकत्र की गई किसी भी राशि को या तो उधारकर्ताओं वापिस किया जाना चाहिए या फिर अगली EMI में adjust किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि न्यायाधीश वित्तीय, आर्थिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ नहीं हैं और अदालत इन क्षेत्रों में नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी जब तक कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में खराबी साबित नहीं होती।
सरकार ने पहले SC के समक्ष कहा था कि अगर वह COVID के मद्देनजर रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित छह महीने की स्थगन अवधि के लिए सभी श्रेणियों के ऋणों और अग्रिमों पर ब्याज में छूट देने पर विचार करता है, तो यह राशि 6 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगी। ऐसे में अगर बैंकों को यह बोझ उठाना पड़ता है यह बैंकों के सामने उनकी सम्पति को लेकर बड़ी परेशानी बन सकता है।
सरकार ने कहा कि यह मुख्य कारण था कि ब्याज की माफी पर भी विचार नहीं किया गया था और केवल किस्तों का भुगतान टाल दिया गया था।
पिछले साल 27 नवंबर को शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज की आठ निर्दिष्ट श्रेणियों पर ब्याज के अपने फैसले को लागू करने के लिए सभी कदम उठाए जाएं।
आरबीआई ने 27 मार्च को सर्कुलर जारी किया था, जिसने महामारी के कारण 1 मार्च से 31 मई, 2020 के बीच गिरते हुए टर्म लोन की किस्तों के भुगतान के लिए ऋण संस्थानों को स्थगन (moratorium) देने की अनुमति दी थी। बाद में, स्थगन को 31 अगस्त, 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया था।
आज, SC ने केंद्र और RBI के पिछले साल 31 अगस्त से अधिक के ऋण अधिस्थगन को नहीं बढ़ाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह नीतिगत निर्णय है।