नई दिल्ली (समरजीत अधिकारी): केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की कथित ‘फीडबैक यूनिट’ (FBU) से जुड़े जासूसी मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) समेत सात लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) की ओर से सिसोदिया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दिये जाने के 14 दिन बाद सीबीआई ने मामले पर बीते 14 मार्च को प्राथमिकी दर्ज की। उन पर आपराधिक साजिश, बेईमानी से संपत्ति के गबन, लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी के मकसद से जालसाजी, जाली दस्तावेज को असली बनाना, और खातों में हेराफेरी जैसे आपराधिक कदाचार के आरोप में मामला दर्ज किया गया है।
बता दे कि 9 मार्च को सीबीआई (भ्रष्टाचार विरोधी शाखा) को लिखित शिकायत मिली थी। जिसमें दिल्ली के तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, दिल्ली सरकार में तत्कालीन सचिव सतर्कता सुकेश कुमार जैन, सीआईएसएफ के सेवानिवृत्त डीआईजी और मुख्यमंत्री के तत्कालीन विशेष सलाहकार और संयुक्त निदेशक (एफबीयू) राकेश कुमार सिन्हा, इंटेलिजेंस ब्यूरो के सेवानिवृत्त संयुक्त उप निदेशक और तत्कालीन उप निदेशक (FBU) दीप कुमार पुंज, सतीश खेत्रपाल, CISF के सेवानिवृत्त सहायक कमांडेंट और फीड बैक ऑफिसर के तौर पर कार्यरत गोपाल मोहन, दिल्ली के मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार विरोधी सलाहकार समेत कई अन्य अज्ञात लोगों के के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
शिकायतकर्ता ने कहा कि जांच से पता चला है कि एफबीयू जरूरी जानकारी इकट्ठा करने के अलावा यूनिट ने राजनीतिक खुफिया जानकारी भी इकट्ठा की, जो कि इसकी की ओर से जारी कुल रिपोर्ट का लगभग 40 प्रतिशत थी और ये काम दिल्ली सरकार के दायरे बाहर आता है। साफतौर पर दिल्ली सरकार की ये गैरकानूनी कार्रवाई थी। जांच से ये भी पता चला है कि सिसोदिया ने 22 अप्रैल 2016 को पीके पुंज की ओर से पेश किये गये एक नोट पर एफबीयू के लिये विशेष भत्ते की मंजूरी दे दी, इससे दिल्ली सरकार के सरकारी खजाने पर लगभग 36 लाख रुपये का बोझ पड़ा।
शिकायतकर्ता देसाई ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल आदेश के आधार पर केसी मीणा, उप सचिव (सतर्कता), सतर्कता निदेशालय दिल्ली सचिवालय की ओर से एक लिखित शिकायत मिली थी। इस शिकायत पर सीबीआई ने 2 दिसंबर 2016 को शुरूआती जांच दर्ज की, जांच से पता चला है कि 20 सितंबर 2015 को कैबिनेट निर्णय संख्या 2217 के तहत एफबीयू बनाने को मंजूरी दी गयी थी।
सीबीआई की दर्ज की गयी एफआईआर में कहा गया कि “एफबीयू का काम दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में विभिन्न विभागों/स्वायत्त निकायों/संस्थाओं/इकाइयों के कामकाज के बारे में जरूरी जानकारी और कार्रवाई योग्य प्रतिक्रिया एकत्र करना और फंसे मामलों का संचालन करना था। सचिव (सतर्कता) को एफबीयू की बनाने के लिये विस्तृत प्रस्ताव पेश करने का निर्देश दिया गया था। एफबीयू के लिए सृजित किये जा रहे पदों को शुरू में सेवारत और साथ ही सेवानिवृत्त कर्मियों द्वारा संचालित करने का प्रस्ताव था। बाद में सचिव (सतर्कता) ने FBU की बनाने के लिये विस्तृत प्रस्ताव पेश किया, जिसे 28 अक्टूबर 2015 को मुख्यमंत्री की ओर से अनुमोदित किया गया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री के अनुमोदन के मुताबिक FBU को सचिव (सतर्कता) को रिपोर्ट करने के लिये कहा गया था। ”
एफआईआर में आगे कहा गया कि- “किसी भी स्तर पर सुकेश जैन ने इन पदों को भरने से जुड़ी सहमति के लिये प्रशासनिक सुधार विभाग को एफबीयू में 20 पदों के सृजन के मामले को जानबूझकर टाल दिया। जैन के प्रस्ताव के आधार पर सिसोदिया ने मंजूरी दी कि 25 जनवरी, 2016 को भ्रष्टाचार विरोधी शाखा में सृजित 88 पदों को एफबीयू में 20 पदों में एडजस्ट किया जाये। हालांकि प्रशासनिक सुधार विभाग ने इन 88 पदों के सृजन के लिये सिर्फ अस्थायी तौर पर सहमति ज़ाहिर की थी। इन 88 पदों के सृजन का प्रस्ताव सक्षम प्राधिकारी दिल्ली एल-जी की मंजूरी के लिये नहीं भेजा गया और इन पदों को नोटिफाई नहीं किया गया। साथ ही एफबीयू में सृजित किये जाने वाले पदों के लिये कोई ‘भर्ती नियमावली’ नहीं बनायी गयी थी, लेकिन एफबीयू में 17 पदों को अनुबंध के आधार पर सेवानिवृत्त कर्मियों की नियुक्ति से भरा गया, जिसके लिये रू0 20,59,474/- के खर्च के लिये प्रशासनिक मंजूरी दी गयी थी। ”
देसाई ने अपनी शिकायत में कहा कि, जांच से ये भी पता चला है कि एफबीयू में सेवानिवृत्त कर्मियों की नियुक्ति के लिये सक्षम प्राधिकारी ने दिल्ली एलजी से कोई मंजूरी नहीं ली और ये नियुक्तियां एफयूबी बनाये जाने के वक्त से ही गैर-स्थायी और शून्य थीं, क्योंकि इससे जुड़ी कवायदें सीधे तौर पर नियम, दिशानिर्देश और संवैधानिक प्रावधान को उल्लंघन करती है।
उन्होनें आगे कहा कि- एफबीयू ने फरवरी 2016 से काम करना शुरू किया और अन्य चीज़ों के अलावा साल 2016-17 के दौरान गुप्त सेवा खर्च के लिये 1 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया, जिसमें से 10 लाख रुपये एफबीयू को 5-5 लाख रुपये की दो किस्तों में दिये गये। इसके तहत पहली किस्त 7 जून 2016 और दूसरी किस्त 13 जून 2016 को जारी की गयी।
छानबीन के दौरान सामने आया कि दो मामलों में एसएस फंड (एसएसएफ) से मैसर्स सिल्वर शील्ड डिटेक्टिव्स को 1.5 लाख रुपये और मैसर्स डब्ल्यू.डब्ल्यू सिक्योरिटीज को 60,000 रुपये का भुगतान 8 जून 2016 को किया गया। एसएसएफ फंड की देखरेख करने वाले सतीश खेत्रपाल ने पूछताछ के दौरान बताया कि पेमेंट डिस्बर्स करने के बदले में दिये गये वाउचर फर्जी पाये गये हैं। दोनों सिक्योरिटी फर्मों के मालिकों ने दिल्ली सरकार या FBU के लिये किसी भी तरह का काम करने से इनकार किया और ऐसा कोई भी पेमेंट मिलने से भी इंकार किया। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी फर्मों के नाम पर बनाये गये वाउचर फर्जी हैं।