Legal Age Of Marriage For Women: महिलाओं के लिये शादी की उम्र बढ़ाने को लेकर मोदी सरकार के सामने चुनौतियां और उसके पीछे का तर्क

केंद्र सरकार का एक ऐसा कदम में जो समाज के कुछ वर्गों को नागंवार लग सकता है, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में महिलाओं के लिये शादी की कानूनी उम्र (Age Of Marriage For Women) 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव पारित किया। पुरुषों के लिये शादी की कानूनी उम्र 21 साल ही बनी हुई है। इस फैसले के लागू होने से देश में महिला और पुरुष दोनों की शादी की उम्र बराबर हो जायेगी।

ये प्रस्ताव केंद्र द्वारा निर्धारित टास्क फोर्स द्वारा नीति आयोग के सामने रखी गयी सिफारिशों पर आधारित है। जया जेटली की अध्यक्षता वाली टास्क फोर्स (Task Force headed by Jaya Jaitley) ने मातृत्व की उम्र, मातृ मृत्यु दर को कम करने और आहार सीमा से लेकर कई बिंदुओं की जांच की, जिसके बाद इन सिफारिशों की अनुशंसा की गयी।

हालांकि ये प्रस्ताव बहुत अच्छा नहीं रहा है और कुछ लोगों ने देश के भीतर इस मुद्दे को लेकर बहस छेड़ दी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board – AIMPLB) के सदस्य खालिद राशिद फिरंगी महली (Rashid Firangi Mahli) ने कहा है कि ये प्रस्ताव नहीं लागू होना चाहिये। उन्होंने ये भी कहा कि ये भारतीय समाज की परंपराओं के खिलाफ है और सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिये।

बाल और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनसंख्या और परिवार नियोजन (Population and Family Planning) विशेषज्ञों का तर्क है कि महिलाओं के लिये शादी की कानूनी उम्र 18 साल होने के बावजूद भी भारत में बाल विवाह जारी है। बाल विवाह को अनिवार्य रूप से गैरकानूनी घोषित करने और नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिये कानून विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित करता है।

विवाह से जुड़े विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों के अपने मानक होते हैं, जो अक्सर प्रथा को दर्शाते हैं इसलिए ये एकरूपता लाता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 दुल्हन के लिये न्यूनतम आयु 18 वर्ष और दूल्हे के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है। विशेष विवाह अधिनियम 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 भी लड़कियों और लड़कों के लिये 18 और 21 साल की उम्र तय करता है।

नरेंद्र मोदी के अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने जेंडर न्यूट्रैलिटी (Gender Neutrality) समेत कई कारणों से महिलाओं के लिये शादी की उम्र की पर फिर से जांच करने का फैसला किया। कम उम्र में शादी करने से जल्दी गर्भधारण होता है और इसका असर माताओं और बच्चों के पोषण स्तर, समग्र स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा पड़ता है। कम उम्र में विवाह होने से देश में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों पर सीधा असर पड़ता है।

कानून में संशोधन से उन महिलाओं को सशक्तिकरण मिलेगा जो कम उम्र में शादी के बाद शिक्षा और आजीविका से वंचित रह जाती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चला है कि देश में बाल विवाह 2015-16 में 27% से मामूली रूप से कम होकर 2019-20 में 23% हो गया।

समिति ने देश भर के 16 विश्वविद्यालयों से युवा वयस्कों से हासिल प्रतिक्रिया और फीडबैक के आधार पर सिफारिशें कीं। दूर-दराज के इलाकों और हाशिये के समुदायों से तालुक्क रखने वाले युवाओं तक पहुँचने के लिये टास्क फोर्स ने 15 से ज़्यादा गैर सरकारी संगठनों को भी रिसर्च के काम में लगाया गया।

कमेटी ने सभी धर्मों के युवाओं के साथ-साथ देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से समान रूप से फीडबैक लिया है। कमेटी ने सरकार से लड़कियों के लिये उनके परिवहन समेत स्कूलों और कॉलेजों तक पहुंच बढ़ाने पर भी विचार करने को कहा। इसके साथ ही स्कूलों में लड़कियों के लिये यौन शिक्षा समेत कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण की भी सिफारिश की गयी है।

समिति ने कहा कि जब तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जाता और महिलाओं को सशक्त नहीं किया जाता तब तक कानून उतना प्रभावी नहीं होगा। शादी की उम्र में इज़ाफे को लेकर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया जाये। ये नये कानून की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित करेगा, जिसके बारे में उन्होंने कहा है कि ये जबरदस्ती के उपायों की मुकाबले कहीं ज़्यादा कारगर होगा।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More