न्यूज डेस्क (गौरांग यदुवंशी): भारत के चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन ने एक और बड़ी छलांग लगायी, जब अंतरिक्ष यान का ‘विक्रम’ लैंडर मॉड्यूल आज (17 अगस्त 2023) को प्रॉपल्शन मॉड्यूल से कामयाब ढंग से अलग हो गया। चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर का नाम विक्रम साराभाई (1919-1971) के नाम पर रखा गया है, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है।
23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी तयशुदा लैंडिंग से एक हफ्ते पहले अंतरिक्ष यान ने बीते बुधवार (16 अगस्त 2023) को चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान ने आखिरी लूनर बाउंड ऑर्बिट (Lunar Bound Orbit) कटौती प्रक्रिया को अंजाम दिया।
अंतरिक्ष यान के लॉन्च के लिये जीएसएलवी मार्क 3 (एलवीएम 3) हेवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल किया गया था, जिसे 5 अगस्त को लूनर ऑर्बिट में स्थापित किया गया था और तब से ये ऑर्बिट मैन्युवर की सिलसिले को अंजाम देते हुए चंद्रमा की सतह के करीब उतारा गया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO- Indian Space Research Organization) की ओर से 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किये हुए एक महीना और दो दिन हो गये हैं। अंतरिक्ष यान को आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के श्रीहरिकोटा (Sriharikota) में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Center) से लॉन्च किया गया था। इसरो चंद्रमा पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन (Russia and China) के बाद ये बेमिसाल उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा मुल्क बन जायेगा।
चंद्रयान -3 में कई इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल सब सिस्टम शामिल हैं, जिसका मकसद सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग सुनिश्चित करना है, जैसे कि नेविगेशन सेंसर, प्रप्लशन, गाइडेंस और कंट्रोल। भारत के तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान-3 का मकसद सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग, चंद्रमा की सतह पर रोवर का घूमना और यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोग हैं।
चंद्रयान-3 की लागत 250 करोड़ रुपये (लॉन्च व्हीकल की लागत को छोड़कर) है। चंद्रयान-3 का विकास चरण जनवरी 2020 में शुरू हुआ और लॉन्च की योजना 2021 में किसी समय बनायी गयी थी। हालांकि कोविड-19 महामारी के चलते मिशन की रफ्तार में देरी हुई।
चंद्रयान-2 मिशन को साल 2019 में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान चुनौतियों का सामना करने के बाद चंद्रयान-3 इसरो का लगातार दूसरा प्रयास है। चंद्रयान-2 अपने मुख्य मिशन मकसद को हासिल करने में नाकाम माना गया था।
चंद्रयान-2 के प्रमुख वैज्ञानिक नतीज़ों में चांद के सोडियम के लिये पहला वैश्विक मानचित्र, क्रेटर आकार पर समझ को बढ़ाना, आईआईआरएस उपकरण के साथ चांद की सतह के पानी की बर्फ का साफ पता लगाना और इसकमें अलावा बहुत कुछ शामिल है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मुताबिक चंद्रयान-1 मिशन के दौरान उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से ज्यादा चक्कर लगाये और 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ कम्युनिकेशन टूट जाने पर मिशन खत्म हो गया।
इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने पिछले हफ्ते चंद्रयान 3 की प्रगति पर विश्वास ज़ाहिर किया और आश्वासन दिया कि सभी प्रणालियां तयशुदा तरीके से काम कर रही हैं। अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि, “अब सब कुछ ठीक चल रहा है। 23 अगस्त को (चंद्रमा पर) उतरने तक कई तरह की गतिविधियां होंगी। उपग्रह बेहतर कंडीशन में है।”
बता दे कि चंद्रमा पृथ्वी के अतीत के भंडार के तौर पर काम करता है और भारत का सफल चंद्र मिशन पृथ्वी पर जीवन को बढ़ाने में मदद करेगा, साथ ही इसे सौर मंडल के बाकी हिस्सों और उससे आगे का पता लगाने में भी इंसानी समझ को काफी बढ़ायेगा।
ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के लिये अंतरिक्ष यान मिशनों ने मुख्य रूप से भूमध्यरेखीय इलाकों को उसके अनुकूल इलाके और ऑप्रेशन हालातों की वज़हह से टारगेट किया है। हालाँकि चांद के दक्षिणी ध्रुव भूमध्यरेखीय इलाके के मुकाबले काफी अलग और ज्यादा चुनौतीपूर्ण भूभाग है।