पहिलै- पहिलै हम कीन्हीं छठी मैय्या व्रत तौहरा
हिन्दु मान्यताओं में छठ पूजा का विशेष स्थान है। पूर्वांचल (बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश) में खासतौर से इसे मनाया जाता है। ये महाव्रत चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा को डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा के नामों से भी जाना जाता है। इस व्रत के दौरान खास बात ये है कि इसमें डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। लोगों का मानना है कि यदि इस व्रत को विधि-विधान से संपन्न किया जाये तो छठी मैया प्रसन्न होकर मनोवांछित वर देती है। हर वर्ष ये महापर्व चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है।
छठ महापर्व से जुड़ी मुख्य तिथियां
31 अक्टूबर 2019 – नहाय–खाय
1 नवंबर 2019 – खरना
2 नवंबर 2019 – सायंकालीन अर्घ्य3 नवंबर 2019 – प्रात कालीन अर्घ्यx
छठ महापर्व रखने की विधि
1. नहाय खाय – छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय से शुरू होता है। छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी के साथ शुरू हो जाता है। लेकिन इसका औपचारिक आरम्भ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ ही हो जाता है। इस दिन व्रती स्नान आदि कर नवीन वस्त्र धारण करते हैं और साथ ही शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
2. खरना – ये छठ पूजा का दूसरा दिन है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन निराहार और निर्जली व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। गोधूलिवेला में चाव और गुड़ से खीर बनाकर खायी जाती है। नमक व चीनी का प्रयोग निषिद्ध होता है। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी खाई प्रसाद के तौर पर बांटी जाती है।
3. प्रातःकाल उठकर व्रती ये मन्त्र बोलते हुए महाव्रत करने का संकल्प लेते है।
ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
षष्ठी के दिन छठ पूजा का महाप्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ खासतौर से शामिल होता है। कुछ जगहों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के आटे से लड्डू बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाया जाता हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के उद्देश्य से तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर अस्त होते सूर्य से प्रार्थना की जाती है। साथ ही इन मंत्रों का जाप व्रती द्वारा किया जाता है।
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥
4. अगले दिन यानि सप्तमी को भोर में सूर्योदय के वक़्त भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को फिर से दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा का पारायण किया जाता है। प्रातः अर्घ्य देते समय इन मंत्रों का उच्चारण करे
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||
छठी मैय्या को प्रसन्न करने के लिए, इन मंत्रो को उच्चारण करे-
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्।पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।।
छठ पूजा के महात्मय से जुड़ी कथायें
पौराणिक जनश्रुतियों के मुताबिक राजा प्रियंवद को लंबे समय से संतान रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए वैदिक सम्मत विधान करवाकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र तो हुआ, लेकिन वे मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने के लिए आतुर हो उठे। ठीक उसी समय भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘समस्त बह्माण्ड़ की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से रचित होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी विधि-विधान से पूजा करो और इसके लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करो।’ राजा ने पुत्ररत्न की इच्छा से देवी षष्ठी का महाव्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
दूसरी कथा ये है कि सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर परित्याग कर दिया था वीर कर्ण सूर्यदेव के अनन्य उपासक थे। वे लंबे अन्तराल तक जल में रहकर सूर्य की उपासना करते। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा सदैव बनी रही। जिसकी वज़ह से उन्हें बल, तेज, और शौर्य प्राप्त होता था। सूर्य देव ने ही कर्ण को रक्षा के लिए कवच और कुंड़ल दिये थे। इसी कारण लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिये भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।
इसके अतिरिक्त पुराणों के अनुसार भगवान राम ने सीता सहित और द्रौपदी ने भी छठी मैय्या का व्रत किया था।
इस बार विशेष होगा छठ महापर्व
छठ पर्व पर इस साल यह भी संयोग बना है कि उगते सूर्य को सूर्य देव के दिन यानी कि रविवार को अर्घ्य दिया जाएगा। रविवार 3 नवंबर 2019 को सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना रहा है जोकि शुभ और महाफलदायी योग है। ये योग सूर्योदय के साथ ही प्रारम्भ हो जायेगा। छठ पर्व के आखिरी दिन इस योग में सूर्य का उदित होना छठ व्रतियों के लिए मंगलमय और कल्याणकारी संकेत है कि, इस साल सूर्य देव शीघ्र ही व्रतियों की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले हैं। अन्न धन की परिपूर्णता के मामले में यह साल सुखद रहने वाला है।