छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के समय में कभी भी किसी औरत का नाच गाना नहीं होता था, महिलाओं का हमेशा सम्मान किया जाता था चाहे वो दुश्मन की बहन बेटियां हीं क्यों ना हो सभी को अपनी माता और बहन के समान समझा जाता था।
महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाये रखनी चाहिए, बेशक वो महिला किसी भी जाति या धर्म से हीं क्यों ना हो।
28 फरवरी 1678 में सुकुजी नामक सरदार ने बेलवाड़ी किले की घेराबंदी की। इस किले की किलेदार एक स्त्री थी। उसका नाम सावित्रीबाई देसाई (Savitribai Desai) था। इस बहादुर महिला ने 27 दिनों तक किले के लिये लड़ाई लड़ी। लेकिन आखिर में सुकुजी ने किले को जीत लिया और सावित्रीबाई से बदला लेने के लिये उसका अपमान किया, जब राजे (छत्रपति शिवाजी महाराज) ने ये समाचार सुना तो वो क्रोधित हो गये।
राजे के आदेशानुसार सुकुजी की आंखें फोड़ कर उसे आजीवन कैद कर दिया गया। 24 अक्टूबर 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर सोने देव ने जब कल्याण के किले पर घेराबंदी की और उसको जीत लिया, उस समय मौलाना अहमद की पुत्रवधू यानि औरंगजेब (Aurangzeb) की बहन और शाहजहां (Shahjahan) की बेटी रोशनआरा जो एक अभूतपूर्व सुंदरी थी, जिसको किले में कैद कर लिया गया उसके बाद सैनिकों ने उस रौशनाआरा को जब छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने पेश किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को ये कहा था कि ये तुम्हारी पहली और आखिरी गलती है। उसके बाद अगर ऐसा अपमानित करने का कार्य किसी भी जाति और धर्म की औरत के साथ किया तो इसकी सजा मौत होगी और एक पालकी सजा कर रोशनआरा (Roshanara) को उसके कहने पर उसके महल में भेज दिया गया।
इसी प्रकार से शाइस्ता खान (Shaista Khan) ने सन 1663 ईस्वी में कोंकण को जीतने के लिये अपने सेनापति दिलेर खान (Diler Khan) के साथ एक ब्राह्मण उदित राज देशमुख की पत्नी राय बाघिन (शेरनी) को भेजा तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने राय बाघिन और मुगल दिलेरखान को रात में कोल्हापुर में ही घेर लिया और दिलेरखान अपनी जान बचा कर भाग गया। उस समय राय बाघिन को एक सजी हुई पालकी में बैठा कर वापसी उसके घर भेज दिया था।
शिवराय जी का ताउम्र ये मानना रहा कि "महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाये रखनी चाहिए। बेशक वो किसी भी जाति या धर्म से क्यों ना हो।“
अगर किसी दुश्मन की पत्नी भी चाहे वो किसी भी धर्म या जाति से हो लड़ाई में फंस जाती है तो उसे परेशानी नहीं होनी चाहिये महाराज के इस तरह के आदेश पत्थर की लकीर होते थे.....और उन पर अमल भी शत प्रतिशत होता था।