न्यूज़ डेस्क (दिगान्त बरूआ): भारतीय सेना ने दुश्मनों का होश उड़ाने के लिए अब अपने तरकश में शौर्य (Shaurya) को शामिल करने जा रही है। शौर्य मिसाइल काफी हल्की है, इसे कम्पोजिट कनस्तर (Composite canister) में रखकर आसानी से कहीं भी ले जाया सकता है। सॉलिड फ्यूल सिस्टम का इस्तेमाल कर ये पलभर में है 6 मैक (6 Mach= आवाज़ से 6 गुना तेज) की रफ्तार पकड़ लेती है। इसे खास ऑपरेटिंग सिस्टम के मदद से नेविगेट किया जा सकता है। सरल भाषा में कहे तो किसी परम्परागत क्रूज मिसाइल की तरह ये लक्ष्य को भेदने के लिए ये अपना रास्ता खुद तलाश लेती है। ये 800 किलोमीटर के दायरे में तबाही का मंजर फैला सकती है। सबसे बड़ी बात न्यूक्लियर पेलोड (Nuclear payload) ले जाने और उसे दुश्मनों के ठिकाने पर छोड़ने में ये पूरी तरह सक्षम है।
शौर्य पनडुब्बी से दागी जाने मिसाइल सागारिका का ये लैंड वर्जन (Land version of Missile Sagarika) है। कम्पोजिट कनस्तर में रखे जाने के कारण ये लंबे समय तक बिना किसी रखरखाव के घातक रूप से कारगर बनी रहती है। दागे जाने पर कनस्तर के अन्दर की कम्प्रेस्ड गैस इसे भारी उछाल देती है। एक खास निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद शौर्य मिसाइल सॉलिड फ्यूल सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए दुश्मनों की ओर बढ़ जाती है। इसे दुश्मनों के इलैक्ट्रॉनिक सर्विलांस सिस्टम और सैटेलाइट निगरानी से बचाना बेहद आसान काम है। इसकी बनावट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि, किसी एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम (Advanced air defence system) को इसे ट्रैक-ट्रैस-लॉक और एंगेज करने में बेहद कम रिस्पॉन्स टाइम मिलेगा। इसे असली ताकत मिलती है इसकी पेलोड क्षमता से जो कि 1 टन है। अगर कोई एयर डिफेंस सिस्टम (आयरन डॉम या फिर एस-400) इसे मार गिराने की कोशिश करता है तो शौर्य खुद ही अपना हमला दो हिस्सों में करेगा।
इसकी मारक क्षमता बढ़ाने के लिए इसमें आधुनिकतम एक्सीलिरेशन मीटर और गायरोस्कोप (Sophisticated acceleration meter and gyroscope) का इस्तेमाल किया गया है। खास बात ये भी है कि इसमें स्वदेशी तकनीक से विकसित बूस्टर और एयरफ्रेम (Indigenous technology developed boosters and airframes) का इस्तेमाल किया गया है। जमीनी रास्ते का इस्तेमाल करते हुए इसे आसानी से कहीं भी ले जाया सकता है। सतह से सतह पर मार करने वाली ये मिसाइल 8.2 टन वजनी है। इसका व्यास 0.74 मीटर और ऊंचाई 10 मीटर है। अब जल्द ही ये भारतीय सेना की आर्टिलरी का हिस्सा बनेगी। साल 2008 के दौरान चांदीपुर इंटीग्रेटिड टेस्टिंग रेंज (Chandipur Integrated Testing Range) इसका पहला परीक्षण किया गया था। साल 2011 में भी दूसरी परीक्षण के दौरान इसने अपनी मारक क्षमता को साबित किया।
इस्लामाबाद और बीजिंग (Islamabad and Beijing) की ओर से खुले दो-तरफा मोर्चों की चुनौतियों के बीच ये मिसाइल परीक्षण भारत को लिए काफी अहम माना जा रहा है। कहीं ना कहीं ये दोनों ओर के दुश्मनों के बीच में खलबली पैदा करने में कामयाब रहेगा। इसके अलावा आज अटल टनल खुलने से भी भारत को सामरिक बढ़त मिली है। शौर्य के सफल परीक्षण के मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence research and development organisation) को बधाई दी है।