एजेंसियां/टेक डेस्क (यामिनी गजपति): डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक चीन (China) के आला वैज्ञानिकों ने ‘नकली सूरज’ बनाने का दावा किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन का बनाया गया कृत्रिम सूर्य (Artificial Sun) असल सूर्य से मुकाबले दस गुना ज़्यादा गर्म है, जिसके चारों ओर हमारी धरती घूमती है। इन प्रयोगों पर काम कर रहे वैज्ञानिक ने कहा है कि दस सेकंड के अंतराल में इस कृत्रिम सूर्य का तापमान 16 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जो इसे वास्तविक सूर्य से दस गुना ज़्यादा गर्म बनाता है! जब प्रयोग किया गया तो करीब 100 सेकेंड तक तापमान 16 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहा।
दक्षिणी शेनझेन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (University of Science and Technology in Southern Shenzhen) में भौतिकी विभाग के निदेशक ली मियाओ (Physics Department Director Li Miao) ने कहा कि टीम अगले कुछ हफ्तों तक इस प्रोजेक्ट के तहत बनाये गये नकली सूरज के तापमान को स्थिर रखने की कोशिश करेगी। अभी के लिए इस तापमान को सिर्फ 100 सेकंड के लिये बनाये रखना अपने आप में बड़ी कामयाबी है।
इस नकली सूरज को परमाणु संलयन (Nuclear Fusion) की मदद से न्यूक्लियर रिएक्टर (Nuclear Reactor) के जरिये विकसित किया जा रहा है। आमतौर पर इस तकनीक और विज्ञान का इस्तेमाल हाइड्रोजन बम बनाने में किया जाता है। इस तकनीक में गर्म प्लाज्मा को फ्यूज करने के लिये मजबूत चुंबकीय क्षेत्र (Strong Magnetic Field) का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि बेहद ज़्यादा गर्मी पैदा करता है।
हेफ़ेई इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल साइंस (Hefei Institute Of Physical Science) में इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज़्मा फिजिक्स के डिप्टी डायरेक्टर सोंग यूंताओ (Song Yuntao, Deputy Director Of The Institute Of Plasma Physics) ने कहा कि, “अब से पांच साल बाद हम अपने फ्यूजन रिएक्टर का बनाना शुरू करेंगे, जिसे बनने के लिये और 10 साल की जरूरत होगी। उसके बाद हम बिजली जनरेटर बनायेगें और इसकी मदद से लगभग साल 2040 तक बिजली पैदा करना शुरू कर देंगे।
जिस प्लांट में एक एक्सपेरिमेंट को अंज़ाम दिया गया उसका आकार वड़े की तरह है, जो कि लगभग 6 बिलियन युआन (893 मिलियन डॉलर) की लागत से बना है। ये प्लाज्मा के संलयन की प्रक्रिया (Plasma Fusion Process) को अंजाम देता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर इस एक्सपेरिमेंट के दौरान पैदा हुई ऊर्जा का पूरी तरह से इस्तेमाल किया जाता है तो इसके लिये सिर्फ थोड़ी मात्रा में ईंधन की जरूरत होगी यानि कि रेडियोधर्मी कचरा (Radioactive Waste) ना के बराबर निकलेगा।
चीनी वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे इस एक्सपेरिमेंट का मकसद कृत्रिम सूर्य या सहायक ताप प्रणाली को ‘गर्म’ और ज़्यादा ‘टिकाऊ’ बनाना है। उम्मीद है कि ये परियोजना 20 सालों से थोड़े कम वक़्त में पूरी हो जायेगी।