न्यूज़ डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): चॉकलेट्स (Chocolate) सभी को खूब भाती है। बच्चों बूढ़े और ज़वान सभी इसका लुत्फ उठाते है। लोगों के स्वाद के मुताबिक इसकी कई वैराइटियां आती है जैसे डॉर्क चॉकलेट्स, मिल्की चॉकलेट्स और फ्रूट एंड नट। लुधियाना स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Science University) के वैज्ञानिकों ने दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) के लिए पोषक तत्वों से भरी चॉकलेट ईजाद की है। इससे बनाने में दुधारू पशुओं की पाचन क्षमता, उनकी पोषण की जरूरतों का खास ख्याल रखा गया है।
इसके इस्तेमाल से पशुओं की दूध देने क्षमता में खासा इज़ाफा दर्ज किया गया है। चाकलेट विकसित करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार इसके स्वाद को पशुओं ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। बोलचाल की भाषा में इसे पशु चाट भी कहा जा सकता है। दूध देने के अलावा पशुओं में बांझपन और भूख ना लगने जैसी समस्यायों (Problems like infertility and loss of appetite in dairy cattle) का समाधान भी इसी चॉकलेट में छिपा हुआ है। देशी या विदेशी (मुर्रा, साहिवाल, जर्सी) नस्लों के दुधारू पशुओं (dairy cattle) में ये सामान रूप से कारगर असर दिखाती है।
न्यूट्रिशनल वैल्यू (Nutritional value) के पैमाने पर भी ये पशु चाट काफी खरी उतरती है। इसे बनाने में सरसों की खली, ग्वार गम, गेंहू के आटे के साथ-साथ चावल की पॉलिश, यूरिया, सीरा, नमक और यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी वज़ह से इसमें रेशा, प्रोटीन की सही मात्रा पशु में पहुँच जाती है। इसके साथ ही पशुओं को कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन और विटामिन-बी की सही मात्रा भी मिल जाती है। जिसकी वज़ह से लेप्टोस्पायरोसिस और ब्रूसेलोसिस (Leptospirosis and Brucellosis) में भी कमी आती है। जिससे पशुओं में गर्भपात की संभावनायें ना के बराबर हो जाती है।
पशु इसे धीरे-धीरे चाटकर खाते है। एक बारी देने पर पशु चाट खत्म होने में तीन लग जाते है। एक साल के दौरान दुधारू पशुओं को इसकी दो से तीन खुराक दी जा सकती है। साथ ही विश्वविद्यालय ने किसानों को आत्मनिर्भर और व्यापार करने के मकसद से पशुचाट बनाने का पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम (Five day training program for farmers) भी तैयार कर रखा है। इसमें किसानों का प्रशिक्षण दिया जायेगा। जिसकी मदद से किसान पशुचाट बनाकर बेचने सकते है या फिर अपने पशुओं के लिए बना सकेगें। प्रशिक्षण सत्र में हिस्सा लेने के लिए किसानों को विश्वविद्यालय प्रशासन से सम्पर्क करना होगा (University administration will have to be contacted for the training session)।