Climate Change: अगर आपके शहर का तापमान एकाएक 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाये तो क्या होगा? मसलन दिल्ली में बीते मंगलवार (29 मार्च 2022) को अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया, लेकिन सोचिये अगर ये 80 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाये तो दिल्ली के हालात कैसे होंगे? यकीन मानिये ये हालात मौत से भी बदतर होगें। ये आपको धरती पर ही जहन्नुम महसूस करवाने के लिये काफी है। जहां 24 घंटे आप जलते हुए तंदूर में बैठे हैं और इस स्थिति में हीटस्ट्रोक (Heatstroke) की वज़ह से कई लोगों की मौत हो जायेगी।
अब इसी सोच से बाहर आपको असल दुनिया से वाक़िफ कराते हैं और आपको बता दें कि दुनिया का सबसे ठंडा इलाका माने जाने वाले अंटार्कटिका (Antarctica) में भी अब गर्मी का अहसास हो रहा है क्योंकि वहां का तापमान सामान्य से करीब 40 डिग्री ऊपर पहुंच गया है।
18 मार्च को अंटार्कटिका के कॉनकॉर्डिया रिसर्च सेंटर (Concordia Research Center) ने शून्य से 12.2 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान दर्ज किया, जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक भारी चिंता के तौर पर देख रहे है। दरअसल मार्च के महीने में इस जगह का सामान्य तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन इस बार ये माइनस 12.2 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। यानि इस हिसाब से यहां के तापमान में सामान्य से करीब 40 डिग्री की बढ़ोतरी हुई।
आमतौर पर तापमान में चार से पांच डिग्री सेल्सियस का अंतर दर्ज किया जाता है और ये खतरनाक भी माना जाता है। लेकिन 40 डिग्री सेल्सियस का अंतर एक बड़े भारी संकट की ओर इशारा करता है। अंटार्कटिका का कॉनकॉर्डिया रिसर्च सेंटर समुद्र तल से 3,234 मीटर की ऊंचाई पर है। इसकी शुरुआत 2005 में फ्रांस और इटली ने की थी।
अंटार्कटिका के एक अन्य रिसर्च सेंटर वोस्तोक (Vostok Research Center) में 18 मार्च को शून्य से 17.7 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया था, जो इन दिनों शून्य से 35 डिग्री के आसपास रहता है। यानि अंटार्कटिका जो अब तक भीषण ठंड के लिये जाना जाता था, में भी लू का प्रकोप देखने को मिल रहा है और तापमान में बेतरतीबी बदलाव देखे जा रहे हैं। वोस्तोक वो जगह है जहां रूस का रिसर्च सेंटर बना हुआ हैं।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (American Space Agency NASA) ने अंटार्कटिका में इस भंयकर गर्मी की लहर के दो कारण बताये हैं। इनमें से पहला है जलवायु परिवर्तन और दूसरा है ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बना एक उच्च दबाव का क्षेत्र, जिसने अंटार्कटिका के वातावरण में गर्म हवा और नमी की मात्रा काफी बढ़ा दी है।
इसे आप हाल की कुछ तस्वीरों से भी समझ सकते हैं। अंटार्कटिका में जहां ठंड लोगों का खून जमा सकती थी, अब लोग अपनी शर्ट उतारकर तस्वीरें ले रहे हैं, जैसे कि वो अंटार्कटिका में नहीं बल्कि गोवा के समुद्र तट पर हों। ये तस्वीरें हमें इस खबर की गंभीरता के बारे में बताती हैं।
उपग्रह से ली गयी एक दूसरी तस्वीर में ट्यूब के आकार का एक बड़ा हिमखंड अब टूट कर अलग हो गया है। इसका क्षेत्रफल 1,200 वर्ग किलोमीटर है, जिसका मतलब है कि ये क्षेत्रफल के मामले में इटली की राजधानी रोम, अमेरिकी शहर लॉस एंजिल्स और भारतीय राजधानी दिल्ली के लगभग बराबर था। लेकिन अब ये बर्फीला पहाड़ टूट गया है।
तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर भी धरती पर इंसान के जीवन को खत्म कर सकते हैं। यानि ये खतरा कोरोनावायरस से भी बड़ा और गंभीर है। दुनिया का खात्मा कैसे होगा, इस पर किताबों में जो बातें लिखी हैं, उनमें से एक वज़ह में इन ग्लेशियर्स (Glaciers) का जिक्र है।
मौजूदा वक़्त में धरती पर लगभग 2 मिलियन ग्लेशियर हैं। ये प्राचीन काल से ही धरती पर बर्फ का विशाल भण्डार रहे हैं। ऐसे में ग्लेशियरों के पिघलने से जमीन पर रहने वाले दुनिया के लोग प्रभावित होते हैं, जिनके लिये ग्लेशियर पानी का मुख्य स्रोत हैं। मिसाल के लिये हिमालय के ग्लेशियर आसपास की घाटियों में रहने वाले 25 करोड़ लोगों को पानी देते हैं और नदियाँ जो आगे बढ़ती हैं और लगभग 165 करोड़ लोगों के लिये भोजन, ऊर्जा और कमाई का जरिया बनती हैं।
अंटार्कटिका में दुनिया के पहाड़ों पर मौजूद सभी ग्लेशियरों के मुकाबले 50 गुना ज़्यादा बर्फ है और अगर ये ग्लेशियर पिघलते हैं तो ये पृथ्वी के तापमान में लगभग 60 डिग्री का इज़ाफा होगा। ये इतना होगा कि इंसान इस गर्मी को आसानी से सहन नहीं कर पायेंगे। और दूसरा नतीज़ा ये होगा कि इससे दुनिया में पीने का शुद्ध पानी खत्म हो जायेगा और इंसान भी पीने के पानी के लिये संघर्ष करने लगेगा। इसके कुछ साल बाद धरती पर इंसान का जीवन पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। धरती की सेहत के लिये पानी उतना ही अहम है, जितना हमारी सेहत के लिये जरूरी है।