न्यूज डेस्क (अमित त्यागी): मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाजपा शासित उत्तर प्रदेश (UP- Uttar Pradesh) से लोकसभा चुनाव लड़ने की ताजा अटकलों ने बिहार (Bihar) में सत्तारूढ़ महागठबंधन और यहां विपक्ष में बैठी भगवा पार्टी को एक-दूसरे के निशाने पर ला दिया है। ये अटकलें तब शुरू हुईं जब बिहार के मंत्री श्रवण कुमार, जो यूपी के लिये जेडीयू (JDU) के प्रभारी भी हैं, ने कहा कि ऐसी मांगें थीं कि पार्टी प्रमुख पड़ोसी राज्य से चुनाव मैदान में उतरें। हाल ही में श्रवण कुमार ने एक लोकल न्यूज चैनल से कहा कि, “मैं हाल ही में जौनपुर में था और वहां बहुत मजबूत मांग थी कि माननीय मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ने पर विचार करें।”
कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य और जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिजेंद्र यादव (Bijendra Yadav) ने बीके गुरुवार (3 अगस्त 2023) को पार्टी कार्यालय में मीडिया से कहा कि, ”सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों में हमारी इकाइयां चाहती हैं कि मुख्यमंत्री वहां से चुनाव लड़ें। बेशक ये फैसला उन्हें ही लेना है।”
साल 2024 में भाजपा के अगुवाई वाले गठबंधन को हराने की कसम खाते हुए पिछले साल नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के एनडीए (NDA) छोड़ने के तुरंत बाद ये अटकलें तेजी से उठी थीं कि वो फूलपुर से चुनाव लड़ सकते हैं, जो कि इतिहास में जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की सीट के तौर पर मशहूर है।
ये सीट प्रयागराज (Prayagraj) शहर के एक बड़े हिस्से को कवर करती है, जिसे पहले इलाहाबाद (Allahabad) के नाम से जाना जाता था, यहां कुर्मी (Kurmi) जाति की बड़ी आबादी है, जिससे नीतीश कुमार आते हैं, और साथ ही ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी (Varanasi) से लगभग 100 किमी दूर है।
हालांकि श्रवण कुमार ने कहा कि “ये सिर्फ फूलपुर में नहीं है। मेरी हाल की यूपी यात्रा के दौरान मुझे एहसास हुआ कि फ़तेहपुर और प्रतापगढ़ (Fatehpur and Pratapgarh) समेत कई अन्य सीटें हैं, जहां हमारी पार्टी चाहती है कि सीएम नीतीश कुमार वहां से चुनाव लड़ें। उन्हें लगता है कि इससे माहौल बनेगा और इसे लेकर पूरे राज्य में हलचल है।”
इस मामले को लेकर बिहार में जेडीयू के सहयोगियों को थोड़ी परेशानी होती दिख रही है। कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान (Shakeel Ahmed Khan) ने कहा कि, “क्यों नहीं? जब गुजरात (Gujarat) का कोई शख़्स वाराणसी से चुनाव लड़ सकता है और जीत सकता है, तो हम उत्तर प्रदेश के इतने करीब हैं।”
बात दे कि खासतौर से इस सीट का नेहरू से जुड़ाव और उनकी मृत्यु के बाद विजय लक्ष्मी पंडित (Vijay Lakshmi Pandit) के बावजूद फूलपुर कांग्रेस की पकड़ से फिसल गया है, इस सीट पर आखिरी बार साल 1984 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद कांग्रेस ने भारी वोटों से जीत हासिल की थी।
राजद प्रवक्ता शक्ति यादव (RJD Spokesperson Shakti Yadav) से जब पूछा गया कि वो नीतीश कुमार के यूपी से चुनाव लड़ने के बारे में क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा कि, “अगर राज्य की जनता चाहती है तो उन्हें ऐसा करना चाहिए। ये बिहार के लिए गर्व की बात है कि हमारे नेता की लोकप्रियता बिहार की सीमाओं से परे है।”
दिलचस्प बात ये है कि हालांकि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद की किसी भी महत्वाकांक्षा से इनकार किया है, लेकिन पूरे विपक्ष को एकजुट करने की उनकी कोशिश के बावजूद उनकी राष्ट्रीय भूमिका निभाने की संभावनाओं ने न सिर्फ जद (यू) बल्कि राजद में भी नयी जान फूंकी है।
इस बीच नीतीश कुमार के यूपी में आकर चुनाव लड़ने की चर्चा से भाजपा में गहमागहमी का माहौल है। उत्तर प्रदेश जो न सिर्फ पीएम मोदी को लोकसभा भेजता है और बल्कि प्रदेश के पास सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें है। खास बात ये है कि उत्तर प्रदेश में पीए मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भगवा पार्टी के उभरते सितारे के तौर पर देखा जाता है।
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) और भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख सम्राट चौधरी ने इसी मुद्दे पर अलग-अलग कड़े शब्दों में बयान दिये, जिसमें आरोप लगाया गया कि नीतीश कुमार ने अपने घरेलू क्षेत्र में अपनी लोकप्रियता खो दी है और अगर वो पड़ोसी राज्य में जाते हैं तो उन्हें अपमान का सामना करना पड़ेगा।
भाजपा के दो नेता जो कि नीतीश कुमार और उनकी सरकार की ओर से कराये गये जाति सर्वेक्षण को पटना उच्च न्यायालय की ओर से खारिज किये जाने से नाराज हैं, ने उनकी पार्टी पर यूपी में जाति अंकगणित को लेकर सोचने का आरोप लगाया, जहां जदयू ने पहले कभी भी ऐसा नहीं किया है।