नई दिल्ली (शौर्य यादव): हाल में कांग्रेस (Congress) समेत पूरे विपक्ष ने गंगा में लाशें मिलने के मुद्दे पर केंद्र सरकार और योगी सरकार को जमकर घेरा था। दोनों सरकारों पर इल्ज़ाम लगाये गये कि, उनके राज में हिन्दूओं को ढ़ंग से मुखाग्नि और विधिवत अंतिम संस्कार तक नहीं मिल पा रहा है। कई बड़े विदेशी मीडिया (Media) संस्थानों, देशी अखब़ारों और वाम समर्थित न्यूज पोर्टलों ने पूर्वांचल के कई जिलों में गंगा में तैरती लाशों की तस्वीरें छापी।
साथ ही गंगा के किनारे रेत में दफ़न रामनामी से ढ़की हुई शवों की तस्वीरें भी जमकर छापी गयी, पब्लिश की गयी। पीएम मोदी और उनकी हिंदूत्व वाली छवि का इस मुद्दे को लेकर जमकर मखौल उड़ाया गया। साज़िशन और सिलसिलेवार तरीके से नैरेटिव और प्रोपेगेंडा रचने की कोशिश की गयी।
तैयार किया गया ये नैरेटिव
प्लांटेड खब़रों में कहा गया कि कोरोना के कारण मरने वाले लोगो की तादाद लगातार बढ़ रही है। योगी-मोदी राज में प्रशानिक तंत्र की लापरवाही से लोगों की मौतें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अंतिम संस्कार में इस्तेमाल होने वाली चीज़े मसलन लकड़ी और आहूति सामग्री इतनी मंहगी हो गयी है कि पूर्वांचल के हिन्दू परिवार अपने मृत परिजनों को गंगा किनारे गाड़ रहे है।
गरीबी और महामारी के डर से लोग इतने खौफजदा है कि वो अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने से कतरा रहे है। अगर प्रशासनिक मदद मिलती तो हिन्दुओं की ये दुर्दशा ना होती। उन्हें विधिवत तरीके से अंतिम संस्कार नसीब होता। योगी-मोदी राज में हिन्दुओं को सही से मुखाग्नि और अंतिम संस्कार नहीं मिल रहा है। मोदी को लोगों ने श्मशान और कब्रिस्तान के नाम पर चुना इसलिये ये दिन देखने पड़ रहे है।
विपक्ष के साथ हमलावर हुआ पेड विदेशी मीडिया
इस नैरेटिव को धार देने के लिये विपक्ष को कई दिग्गज विदेशी मीडिया का साथ मिला। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), राहुल गांधी (Rahul Gandhi), प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) समेत तमाम विपक्षी दलों के प्रवक्ताओं ने योगी-मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। इसमें विपक्षी पार्टियों की मदद न्यूयार्क टाइम्स (New York Times), वाशिंगटन पोस्ट और गार्जियन जैसे मीडिया संस्थानों ने की। जिन्होनें गंगा और गंगा किनारे की तस्वीरें निकालकर आधी सच्चाई के साथ दुनिया के सामने पेश किया।
जमकर फेक क्रिटिकल स्टोरी, एकतरफा एडिटोरियल और फर्जी एनालिटिकल आर्टिकल (Unilateral editorial and bogus analytical article) छापकर देश की छवि बिगाड़ने की पूरी कोशिश की गयी। सवाल उठाये गये कि हिन्दू की लाशें क्यों दफनाई गयी? क्यों उन्हें बहाया गया? किन वज़हों से रामनामी डालकर लाशों का दफ़न किया गया?
इसी क्रम में देसी मीडिया संस्थान अमर उजाला, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर ने बगैर जांच पड़ताल किये रिपोर्टिंग की। इन मीडिया संस्थानों ने भी विदेशी मीडिया वाली रिपोर्टिंग को तव्ज़जों दिया, भावुकता में बहकर जमकर खब़रें छापी। जानबूझकर ऐसी हेडलाइन, तस्वीरों और शब्दों को इस्तेमाल किया कि, जिससे लगे कि योगी-मोदी राज में हिन्दू ठीक से अंतिम संस्कार ने मिलने पाने के विक्टिम है। जबकि इस खब़रों से जुड़ी सतही हकीकत इन मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर और स्ट्रिंगर्स बेहतर तरीके से जानते है। बावजूद इसके इन मीडिया संस्थानों ने ऐसा किस मज़बूरी के तहत किया। ये अपने आप में यक्ष प्रश्न है।
ये असली हकीकत, आंखे खोलकर पढ़ लीजिये
पूर्वांचली संस्कृति (Purvanchal Culture) के जानकार ये बात अच्छे से जानते है कि, जिन हिन्दूओं की मौत संक्रामक गंभीर बीमारी, सांप काटने और अकाल मृत्यु से होती है उनका अंतिम संस्कार प्रवाह कर या दफ़न कर किया जाता है। पूर्वांचल में परम्परा काफी पुरानी रही है। सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अमेठी, रायबरेली, अम्बेडकर नगर, गाज़ीपुर, आज़मगढ़, गोरखपुर, जौनपुर, बलिया और मिर्जापुर के ज्यादातर लोग इस तथ्य से भली-भांति वाकिफ है। गंगा नदी और सरयू नदी के किनारे रहने वाले लोग ये मामले तकरीबन रोजाना ही देखते है।
इससे भी ज़्यादा हकीकत जाननी हो तो इन इलाकों में रहने वाले डोमराजा, पंड़ों और मल्लाहों से इस बात की तस्दीक की जा सकती है। सभी एक सुर में एक ही ज़वाब देगें कि ये परम्परा काफी पुरानी है। इस साल कोरोना के प्रकोप के कारण ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। ऐसे में कई लोग इससे मरे रहे है। ऐसे किसी भी बीमारी से मरने वाले शख़्स पर कोरोना की बीमारी होने के शक पर लोगों की इन इलाकों में विसर्जित और दफ़न किया जा रहा है। ज़ाहिर है कोरोना संक्रामक बीमारी है इसलिये ऐसा लोग कर रहे है।
प्रयागराज का स्थानीय प्रशासन भी इस बात से अच्छी तरह वाक़िफ है। जब भी कुंभ के मौके पर पंटून पुल बनाये जाते है तो वहां प्रशासनिक अमले का लाशें मिलती रही है।
साज़िश और चुप्पी
केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिये दफ़न की गयी लाशों से रामनामी हटाकर एरियल फोटोग्राफी कर विदेशी मीडिया में छापा गया। कई जगह नदी के बहाव के कारण रेत में दफ़न लाशें उभर आयी। जो कि पानी में बहने लगी, उनकी भी तस्वीरें उतारी गयी। इस सच्चाई से अखिलेश यादव भलीभांति वाक़िफ है। वो ज़मीनी नेता है। ऐसे में उन्होनें जानबूझकर सच्चाई पर पर्दा डाला और ब्लैमगेम में शामिल हो गये।
दूसरी ओर अमर उजाला, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर की रिपोर्टरों और स्ट्रिंगरों का बड़ा और कारगर नेटवर्क पूरे उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले सभी रिपोर्टर और स्ट्रिंगर इस बात से वाक़िफ है। बावजूद इसके उन्होनें उसी एंगल से खब़र चलायी जो एंगल विपक्षी पार्टियों और विदेशी मीडिया का था।
अब ये है बड़े सवाल
अगर आपने ये पूरा आर्टिकल पढ़ लिया हो और आपको पूर्वांचल की संस्कृति की सतही समझ हो तो, ये आप तरह जान गये होगें कि कौन और कैसे लाशों पर राजनीति कर रहा है। ऐसे में कई बड़े सवाल उभरते है। किसके इशारों पर दिग्गज़ विदेशी मीडिया संस्थानों ने एक सुर एक आलाप में पूर्वाग्रहों से भरी एकतरफा खब़रे छापी? विदेशी मीडिया संस्थानों ने खब़र की हकीकत और तह तक जाने की जहमत क्यों नहीं उठायी? किसके कहने पर लाशों से रामनामी हटाकर एरियल फोटोग्राफी की गयी? अखिलेश यादव जैसे समझदार और ज़मीनी स्तर के नेता ने सब कुछ जानते हुए फेक नैरेटिव क्यों शामिल हुए जबकि वो मृत हिन्दूओं को विसर्जित और दफ़न करने की पुरानी परम्परा के बारे में अच्छे से जानते है?
अमर उजाला, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर जैसे अखबारों ने एक तरफा रिपोर्टिंग क्यों की? जबकि उनके यूपी नेटवर्क में काम करने वाले रिपोर्टर और स्ट्रिंगर ज़मीनी हकीकत से पूरी तरह रूबरू है।