नई दिल्ली (गौरांग यदुवंशी): साल 2014 के बाद से कांग्रेस पार्टी (Congress Party) हाशिये पर आ गयी। जिसके बाद से वो लगातार कई मोर्चों पर गंभीर संकट से जूझ रही है। हाल ही कांग्रेस ने एक इमरर्जेंसी मैसेज वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों को भेजा जिसके मुताबिक वो गहरे आर्थिक संकट से जूझ रही है। पार्टी के कई आला पदाधिकारियों ने पिछले महीने महाराष्ट्र, झारखंड और पंजाब के नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की। माना जा रहा है कि जल्द ही एआईसीसी वित्तीय सहायता के लिए चुनिंदा राज्य इकाइयों के साथ बैठकों आयोजित करेगा। जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा की जायेगी।
हाल ही में कांग्रेस में संगठनात्मक मामलों (Organizational affairs) पर बैठकों कई दौर आयोजित किया गया। इन बैठकों का बड़ा हिस्सा पार्टी के लिए फडिंग से जुड़ा था। बैठक में शामिल कांग्रेसी नेताओं के बीच फंड़ की जानकारी दी गयी। साथ ही उनसे फंड इकट्ठा करने की जिम्मेदारी लेने को कहा। इसके साथ ही इन बैठकों में राज्य प्रमुख के नामांकन पर भी गहन चर्चा की गयी।
एक वरिष्ठ कांग्रेसी पदाधिकारी ने टेड्रीं न्यूज को बताया कि- हाल ही में सम्पन्न हुई बैठकों का एजेंडा फाइनेंस और फंड पर फोकस्ड था। आगामी केरल, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी विधानसभा चुनावों को देखते हुए मौजूदा वित्तीय हालत पार्टी के लिए परेशानी का सब़ब बने हुए है।
वरिष्ठ कांग्रेसी पदाधिकारी के मुताबिक इन्हीं विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की मैनेजमेंट पावर का असली इंतिहान होगा। इस समस्या से निपटने के लिए कई राज्यों के कांग्रेसी पदाधिकारियों को संदेश भेज दिया गया है। गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली में कांग्रेस का नया मुख्यालय पार्टी खोलने का विचार पार्टी के दिमाग में चल रहा है। पिछले कुछ समय से कांग्रेस पार्टी का नया मुख्यालय निर्माणधीन चल रहा है। फंड मोबालाइजेशन (Fund mobilization) की समस्या कांग्रेस यूपीए सरकार के डूबने के बाद झेल रही है।
जिस रफ्तार के साथ देश के तकरीबन सभी राज्यों में बीजेपी तेजी से बढ़त बनाये हुए है। उससे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की सियासी बिसात को भारी नुकसान पहुँचा है। हांलाकि कांग्रेस का राजनीतिक वजूद पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अभी बना हुआ है। जबकि महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन वहां पर गठबंधन के बड़े सियासी खिलाड़ी शिवसेना, राकांपा और जेएमएम ही है।
बड़ी बात ये है कि किसी भी पॉलिटिकल पार्टी की फंडिंग इकट्ठा करने की काबिलियत हद तक पार्टी की राजनीतिक ताकत और लचीलापन पर निर्भर करती है। ये बात कांग्रेस अच्छे से जानती है। इसीलिए उसने इस काम के लिए उसने देश भर में अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को मैदान में उतारने का फैसला लिया है। जिसके लिए खासतौर से उन्हें संदेश भिजवाया गया। ये मामला पेडिंग कन्ट्रीब्यूशन से भी जुड़ा हुआ हो सकता है। जो कि सांसदों और विधायकों इंस्टीट्यूशनल मैकेनिज़्म के तहत हर साल पार्टी को देते है।