Copa América: अर्जेंटीना में जीता खिताब, Lionel Messi ने उतारा फुटबाल का कर्ज

लियोनल मेस्सी (Lionel Messi) के पास सबकुछ था, सिवाय इस स्वर्ण-पदक के। वो शिखर पर था, किंतु उसके सिर पर कोई मुकुट नहीं था। ये आकाश-वृत्ति उसको छलती थी। स्वर्ण-पदक- जो तब उसके गले में कंठहार की तरह पहनाया जाता, जब उसने बार्सिलोना की लाल-नीली नहीं, अर्जेन्तीना की सफ़ेद-फ़ीरोज़ी जर्सी पहनी हो। लेकिन ये कभी हुआ नहीं था। ये स्वर्ण-पदक मेस्सी के लिए एक ऐसा स्वर्णमृग बन गया था, जिसकी मरीचिका उसे दूर खींचे लिए जाती थी, उसे विकलता से भरती थी, किंतु लक्ष्य अर्जित नहीं होता था। चंद्रमा पर दाग़ था, स्वर्ण में सुगन्ध नहीं थी, मणि में कोमलता नहीं- कुछ ना कुछ हमेशा अधूरा रह जाता था।

अर्जेन्तीना ने आख़िरी बार वर्ष 1993 में एक अंतरराष्ट्रीय ट्रॉफ़ी जीती थी। वो दिएगो मारादोना के पराभव का दौर था। विश्व-विजय का गौरव पहले ही अर्जेन्तीना के हिस्से में आ चुका था। किंतु जिस खिलाड़ी को मारादोना के बाद अर्जेन्तीना का सबसे बड़ा फ़ुटबॉलर एक-स्वर से स्वीकारा गया, वो अपना पूरा कॅरियर बिता देने के बावजूद इस अभाव की पूर्ति नहीं कर सका था। आज सुबह ये चित्र बदल गया। अर्जेन्तीना ने एक इंटरनेशनल ट्रॉफ़ी जीत ली। उसने वैसा लियोनल मेस्सी की सरपरस्ती में किया। मेस्सी ने ना केवल ट्रॉफ़ी उठाई, बल्कि टूर्नामेंट में श्रेष्ठता के दूसरे पुरस्कार भी अपने नाम किए। मेस्सी चाहें तो अब इस ट्रॉफ़ी को मुकुट की तरह अपने सिर पर पहन सकते हैं। राजा का सिर अब नंगा नहीं है। स्वर्ण-मृग अब छलावा नहीं। चन्द्रमा पूर्ण हो गया है और उसकी कान्ति ने कालिमा को छुपा दिया है।

किन्तु वैसी नौबत आनी नहीं चाहिए थी। आप कभी किसी श्रेष्ठ खिलाड़ी का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं कर सकते कि उसने कितने गोल किए और कितने पदक जीते। बहुत सम्भव है कोई बहुत अच्छा खेलकर भी हार जाए। अपने तमाम नियमों, रणनीतियों और प्रतिभा के प्राकट्य के बावजूद फ़ुटबॉल का खेल एक ऐसी अराजकता की अभिव्यक्ति है, जिसमें आप हमेशा चीज़ों के लिए तर्क नहीं प्रस्तुत कर सकते। यहाँ चंद सेंटीमीटर के फ़ासले से नियतियाँ बनती और बिगड़ती हैं। तब आपको ये याद रखना होता है कि कौन मन से खेला, किसने एक ख़ूबसूरत मूवमेंट से हमारी तबीयत हरी की, किसने सुन्दरता के प्रतिमान रचे, किसने हमें सामूहिक रूप से दाद देने पर मजबूर कर दिया।

क्योंकि, योहन क्रुएफ़ ने कभी विश्व-कप नहीं जीता, दिएगो मारादोना ने कभी चैम्पियंस लीग नहीं जीती, रोबेर्तो बैजियो (roberto bajio) विश्व-कप फ़ाइनल में निर्णायक पेनल्टी चूक गया, ज़िनेदिन ज़िदान विश्व-कप फ़ाइनल में रेडकार्ड का कलंक लेकर लौटा, 1974 की नीदरलैंड्स और 1982 की ब्राज़ील सर्वकालिक महान टीमें होने के बावजूद ख़ाली हाथ रहीं, चावी और इनीएस्ता ने कभी बैलोन डी ओर नहीं जीता। क्या फ़र्क़ पड़ता है? क्या फ़ुटबॉल का इतिहास क्रुएफ़, मारादोना, बैजियो, ज़िदान, सोक्रेटीज़, चावी, इनीएस्ता के बिना लिखा जा सकता है?

क्या फ़ुटबॉल का इतिहास मेस्सी के बिना लिखा जाता? क्या इतिहास यह बयान करता कि लियोनल मेस्सी ने एक भी अंतरराष्ट्रीय ट्रॉफ़ी नहीं जीती, इसलिए वह दोयम दर्जे का खिलाड़ी था? अगर वैसा होता तो इससे फ़ुटबॉल की भावना शर्मिंदा होती। शुक्र है कि आज सुबह वैसा होने के अंदेशों पर पलीता लगा दिया और मेस्सी के नेतृत्व में अर्जेन्तीना ने कोपा अमरीका- दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल टूर्नामेंट और दूसरा सबसे बड़ा कॉन्टिनेंटल कप- जीत लिया। राहत की साँस बहार की बयार की तरह हमारे दिलों में आज बस गई है।

जो लोग लियोनल मेस्सी के कॅरियर को नज़दीकी से फ़ॉलो करते रहे हैं, वो जानते हैं कि मेस्सी के यहाँ गौरव और पराभव की एक समान्तर धारा निरंतर बहती रही है। बार्सिलोना के स्वर्णयुग में, पेप गोर्डिओला जैसे रणनीतिकार के निर्देशन में, मेस्सी ने कीर्तिमानों की झड़ी लगा दी थी, पदक बरसने लगे थे, उन्हें सर्वकालिक महान फ़ुटबॉलर (Greatest Footballer Of All Time) एकमत से स्वीकार लिया गया था। किंतु अर्जेन्तीना के लिए खेलते हुए तब भी मेस्सी के हाथ निराशा लगी।

मेस्सी ने विगत चौदह वर्षों में चार अंतरराष्ट्रीय फ़ाइनल हारे हैं, एक बार वो सेमीफ़ाइनल तक पहुँचे और एक बार नॉकआउट राउंड तक। इनमें एक विश्व-कप फ़ाइनल और तीन कोपा अमरीका फ़ाइनल शुमार हैं। मेस्सी बार-बार अपनी जर्सी पहनते, ज़ुराबें चढ़ाते, कैप्टेन्स आर्मबैंड पहनकर मैदान में उतरते और हर बार हताशा किसी मुस्तैद सेंट्रल डिफ़ेंडर की तरह परछाई बनकर उनका पीछा करने लगती।

मेस्सी भीतर से टूट गए थे। पहले ऐसा होता कि अर्जेन्तीना से निराश होकर वो बार्सीलोना जाते और वहाँ कुछ हासिल कर ख़ुद को दिलासा देते, जैसा कि उन्होंने 2014 की विश्व-कप पराजय के ऐन बाद बार्सीलोना के लिए 2015 में ट्रेबल जीतकर किया था। किंतु बीते सालों में बार्सीलोना में भी मेस्सी को निरन्तर पराजयों का सामना करना पड़ा। दो बार चैम्पियंस लीग सेमीफ़ाइनल और तीन बार क्वार्टरफ़ाइनल में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। मामूली अंतर से उन्होंने लीग गंवाई। एक कोपा-देल-रे फ़ाइनल हारा।

यह एक अनवरत त्रासद-कथा रही। मेस्सी निरंतर उत्कृष्ट खेलते रहे, किंतु सफलता के मानदण्डों पर सोचने वाले संसार ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उसने पूछा- तुमने गोल तो किए, असिस्ट तो दिए, अच्छा तो खेला पर ट्रॉफ़ी कौन-सी जीती? मेस्सी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते थे, अपना सा मुँह लेकर लौट आते थे, हीन-भावना से भरे उनके आलोचक- जो उनके जूतों के फीते बाँधने की भी पात्रता नहीं रखते- अट्‌टहास करते थे। यह अट्‌टहास मेस्सी को खलता था, उनके प्रशंसकों की आत्मा में काँटा बनकर चुभता था। आज सुबह इसका अंत हो गया। मेस्सी के प्रशंसक ही जानते हैं कि इस कोपा ट्रॉफ़ी के क्या मायने हैं। मेस्सी तो ख़ैर जानते ही हैं कि यह उनके लिए क्या है। उनके लिए इससे बढ़कर कुछ नहीं। इस पर बार्सीलोना की तमाम ट्रॉफ़ियाँ निछावर हैं।

ख़िताबी मुक़ाबले में ब्राज़ील बेहतर टीम थी। उसने सर्वाधिक धावे बोले और 40 के बरअक़्स 60 फ़ीसदी बॉल-पज़ेशन रखा। कोई भी बड़ा खिलाड़ी अपनी टीम को फ़ाइनल तक ले जा सकता है- जैसा कि मेस्सी ने इस बार 4 गोल और 5 असिस्ट के साथ किया- लेकिन ख़िताबी मुक़ाबला जीतने के लिए टीम के स्तर पर एक बड़े सामूहिक-प्रयास की ज़रूरत होती है। इस बार मेस्सी के लिए यह टूर्नामेंट उनकी टीम ने जीतकर उन्हें तोहफ़े में दिया। हीरे-जवाहरात में तौला जाए, वैसे उम्दा फ़र्स्ट-टच के साथ एन्ख़ेल डी मारिया ने निर्णायक गोल किया। उन्होंने गोन्ज़ालो हिगुएन (Gonzalo Higuain) जैसी भयानक भूल नहीं की, जिन्होंने 2014 के विश्व-कप फ़ाइनल में गोलची से आमना-सामना होने पर चौकी के बाहर गेंद मार दी थी।

अर्जेन्तीना के गोलकीपर मार्तीनेज़ दीवार की तरह पूरे समय खड़े रहे। उनके डिफ़ेंडरों मोन्तीएल, रोमेरो, ओतामेन्दी ने गोलचौकी की रक्षा करने के लिए अपना सबकुछ दाँव पर लगा दिया। मेस्सी गदगद होकर यह देख रहे होंगे। उन्हें इस मदद की सख़्त ज़रूरत थी कि कोई उनके लिए हाथ बढ़ाकर उन्हें आसरा दे। मारादोना के लिए बुरुचागा ने निर्णायक गोल करके विश्व-कप जीता था, मेस्सी के लिए डी मारिया ने विजयी गोल दाग़कर कोपा जीता और उनकी झोली में डाल दिया।

मेस्सी इसके हक़दार थे। अगर मेस्सी यह टूर्नामेंट नहीं जीतते तो फ़ुटबॉल की दुनिया हमेशा उनकी क़र्ज़दार रहती। मेस्सी ने कोपा नहीं जीता, फ़ुटबॉल ने आज अपना क़र्ज़ चुका दिया है। क़र्ज़ चुकाकर आप जश्न मनाते हैं और चैन की नींद सोते हैं। जश्न शुरू हो चुका है और फ़ुटबॉल-प्रेमियों के दिलों में तसल्ली जुलाई की गुनगुनी धूप की तरह पैठ गई है। जो दिन की रौशनी की तरह सच्चाई को समझते हैं, वो जानते हैं कि मेस्सी इसके बिना भी सर्वकालिक महान खिलाड़ी थे, किन्तु लोकापवाद को निरुत्तर करने के लिए यह स्वर्ण-पदक उनके लिए ज़रूरी था।

इस मौक़े पर मैं बार्सीलोना और अर्जेन्तीना के तमाम समर्थकों को मुबारक़बाद देना चाहता हूँ- हमने यह कर दिखाया, हम घोर हताशा और पराजय के क्षण में डिगे नहीं और लियो के साथ बने रहे, यह लियो के जितना ही आज हम सबके लिए भी उत्सव का क्षण है।

वामोस अर्ख़ेन्तीना, फ़ोर्सा बार्सा, वीस्का एल कातालूनिया, वीवा लियो मेस्सी, वीवा दिएगो मारादोना, वीवा फ़ुतबोल!

साभार - सुशोभित

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