न्यूज डेस्क (निकुंजा वत्स): उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ रहे कोरोना वायरस संक्रमण (Corona Crisis In UP) और त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव को संपन्न करवाने के तौर-तरीकों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारी नाराजगी जतायी है। माननीय न्यायालय ने कहा कि प्रदेश सरकार को कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर का अच्छे से अंदाजा था। बावजूद इसके चुनाव करवाने के लिये तैयार ब्लूप्रिंट में अध्यापकों और सरकारी कर्मचारियों को जबरन चुनाव ड्यूटी देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
कोर्ट ने आगे कहा कि, राजकीय कर्मचारियों की सेहत को इन नाजुक हालातों में दरकिनार कर उन्हें पोलिंग बूथों पर भेजा जा रहा है। ये किसी भी सूरत में ठीक नहीं माना जा सकता। चुनाव करवाने वाले अधिकारियों को इस बात से अच्छे तरह वाकिफ़ है कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान लोगों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग को प्रभावी तरीके से लागू नहीं करवाया जा सकता है। क्या ऐसे आयोजन के खिलाफ महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई की नहीं जानी चाहिये। न्यायिक खंडपीठ (Judicial bench) ने कहा कि सरकार के लिए सिर्फ अर्थव्यवस्था ही मायने रखती है। सभी प्रमुख आर्थिक गतिविधियों को बहाल रखा गया है लेकिन जरूरी दवाइयों, ऑक्सीजन, रेमेडीसीवर टीके का पर्याप्त अभाव देखा जा रहा है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि, वाराणसी, लखनऊ, प्रयागराज और गोरखपुर में 26 अप्रैल तक सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों को बंद रखा जाये। इसके साथ ही इन जिलों के फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन, मेडिकल सर्विसेज, इंडस्ट्रियल और साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, म्युनिसिपल काउंसिल और पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को इस नियम से अलग रखा जाये। इस दौरान रेस्टोरेंट, फूड प्वाइंट और ढाबों को बंद रखा जाये। सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शैक्षिक संस्थान भी को भी पूरी तरह बंद रखना होगा। विवाह कार्यक्रम में सिर्फ 25 लोग ही शामिल हो सकेंगे। इसके लिए जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होगा। फल, सब्जी, और दूध विक्रेता दिन में 11:00 बजे तक सामान बेच सकेंगे। इसके साथ ही सड़कों पर इमरजेंसी और मेडिकल सर्विसेज के अलावा कोई और वाहन नहीं चल सकेंगे। जिला प्रशासन को कंटेनमेंट जोन की जानकारी अखबारों में देनी होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायिक खंड पीठ ने कहा कि प्रयागराज की कुल आबादी करीब 30 लाख है। ऐसे में जिले के कुल 12 अस्पतालों में सिर्फ 1977 बैड्स हैं, जिनमें से 514 बेड ही आईसीयू है। ये व्यवस्था शहर के आधे फीसदी लोगों के लिये काफी है। हर घर में पांचवा शख्स सर्दी खांसी बुखार से पीड़ित है। जिनकी जांच नहीं हो पा रही है। आम आदमी को टेस्ट रिपोर्ट 3 दिनों में मिल रही है। ऐसे में वो कहां जायें क्या करें, इसके लिए किसी भी तरह के पुख्ता इंतजाम नहीं है। जिन हेल्थ वर्करों ने मोर्चा संभाल रखा है, उनमें भी बड़ी तादाद में लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में है। लाइफ सेविंग मेडिसिंस (Life Saving Medicines) की भी भारी कमी है। ऐसे में जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार को इस मुद्दे पर गहन चिंतन कर और कारगर पुख़्ता कदम उठाते हुये आम आदमी को फौरी राहत देनी चाहिये।