नई दिल्ली (ब्यूरो): इस वक्त देश कोरोना की आपदा से जूझ रहा है। सरकार हालातों को संभालने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। लॉकडाउन (lockdown) और कर्फ्यू (curfew) लगाकर हालातों को संभालने की कोशिश की जा रही है। सड़क और इलाकों के हालात प्रशासन भली-भांति संभाल रहा है। लेकिन सोशल मीडिया (social media) पर कुछ तथाकथित बहुजन (Bahujan) चिंतक और दलित (Dalit) विचारक कोरोना वायरस से भी ज्यादा घातक वायरस फ़ैलाते दिख रहे हैं। जिससे सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को बड़ा खतरा है। ये लोग देश में पनप रहे नाजुक माहौल को दरकिनार करते हुए अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हुए हैं।
ट्विटर पर ट्राईबल आर्मी (Tribal Army) के संस्थापक और सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता हंसराज मीणा (Hansraj Meena) ट्वीट कर लिखते हैं कि- ये थाली, ताली, शंख, घंटी, घंटा बजाने से कोरोना नहीं जाने वाला।
ये बात पीएम नरेंद्र मोदी जी, अच्छे से जानते हैं और देश भी जानता है।एक बड़े आर्थिक पैकेज देकर सरकार लोगों की मदद करने से बच रही है।अब वक्त है मंदिरों का इकट्ठा धन जनता को बाटा जाये। #मंदिरधनलाओकोरोनाभागाओं।
हंसराज मीणा का ये विचार गौर करने लायक हैं। लेकिन जिन शब्दों को इस्तेमाल उन्होंने ट्वीट करने में किया है। उससे उनकी वैचारिक विवशता साफ झलकती है। जिस तरह से पीएम मोदी सहित पूरा कैबिनेट मौजूदा हालातों से लड़ने के लिए दिन रात एक कर रहा है। उसके उलट हंसराज मीणा बहुजन समाज के लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए गलत नैरेटिव तैयार कर रहे हैं।
अपने अगले ट्वीट में हंसराज मीणा लिखते हैं कि-मंदिरों का सालाना आवक :-
- तिरुपति 650 करोड़
- शिरडी मंदिर 500 करोड़
- सिद्धिविनायक मंदिर125 करोड़
- गोल्डन मंदिर 50 करोड़
- मदुराई मंदिर 60 करोड़
तो यह सब अथाह संपत्ति किसी भलाई के कार्य में नहीं लगेगी तो जाएगी कहा?
हंसराज मीणा की ओर से भड़काऊ ट्वीट्स का दौर यहीं नहीं थमता आगे भी लिखते हैं कि- आरएसएस के अंधभक्त कह रहें हैं कि “मन्दिर तेरे बाप का नहीं” तो हम बहुजन वर्ग के लोग कहना चाहते हैं।” जो हमारे बाप का नहीं, वो हमारे काम का नहीं”। 20 मिनिट के अंदर ट्रेंड करें। कड़ा जबाव दें #मंदिरमेंदानदेना_बंदकरो।
अपने फैलाए बौद्धिक षड्यंत्र में थोड़ी तर्कशीलता मिलाते हुए हंसराज मीणा लिखते हैं कि-हमारी किसी भी जाति-धर्म के खिलाफ लिखना मंशा नहीं रही हैं। हम ये सोचकर लिखतें है कि अब वो पाखण्ड, अंधविश्वास, ढोंग-आडम्बर की बेड़ियां टूटनी चाहिए जिनसे आदमी जकड़कर देश या समाज के लिए आगे बढ़कर नहीं सोच पाता। अब जरूरत है कि वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण का स्वतंत्र रूप से विकास हो।
जैसे ही हंसराज मीणा के ये ट्वीट ट्विटर पर तेजी से सर्कुलेट करने लगे तो #हंस_राज_एक_बाप_का_नही_है, ट्रेंड करने लगा।
गौरतलब है कि कुछ इसी तरह की हरकत प्रोफेसर दिलीप मंडल भी कर चुके हैं। हंसराज मीणा के तर्ज पर प्रोफेसर मंडल ने ट्वीट किए थे। उन्होंने लिखा था कि- मेरी ईश्वर से बात हुई है। वे बहुत दयालु हैं। वे चाहती हैं कि तमाम धर्मस्थल अपने दरवाज़े पीड़ितों के लिए खोल दें। दान पेटी में रखे धन से मास्क और सेनेटाइजर ख़रीदे जाएँ। ईश्वर ने बताया कि कोई चढ़ावा आज तक उनके पास नहीं।पहुँचा #मंदिर_धन_लाओ_कोरोना_भागाओं,
प्रोफेसर मंडल के इस ट्वीट के जवाब में ट्विटर पर #मंदिरतेरेबापकानहीं_है, ट्रेंड होता दिखाता था। सरकार भले ही कोरोना वायरस से लड़ लेगी। लेकिन जिस तरह से यह बहुजन चिंतक नफरत और उन्माद का माहौल तैयार कर रहे हैं। उससे लड़ना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। ये वक्त है दलित बहुजन और सवर्ण से ऊपर उठकर सोचने का। हम प्रोफेसर दिलीप मंडल और हंसराज मीणा जैसे तथाकथित बहुजन चिंतकों से आशा करते हैं कि, वे देश को एकजुट सतर्क और जागरूक बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया पर प्रयास करेंगे।