BACKGROUNDER –
बचपन में हिंदी में हमसे निबंध लिखवाया जाता। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो….। बताया जाता कि निबंध लिखवाने के पीछे बच्चे में जरूरी लीडरशिप इमैजिनेशन को डेवलप करना मकसद है। वही याद कर मैं सोच रहा था कि अगर मेरे हाथ में लीडरशिप होती तो मैं क्या करता। सो उत्तराखंड के लिए मैंने अपनी इमैजिनरी लीडरशिप (Imaginary Leadership) क्षमताओं के आधार पर एक प्लान तैयार किया है। ये शानदार, बेहूदा, बकवास, सही गलत, अतिरेकी, नॉन प्रैक्टिकल बहुत कुछ हो सकता है लेकिन अगर इसमें पहाड़ की कोविड स्थिति संभालने की थोड़ी भी गुंजाइश हो तो मैं इसे सार्थक समझूंगा। इसे आप कोविड से निपटने (Corona Management) के लिए मेरी ओपन प्रेजेंटेशन भी समझ सकते हैं!
OBJECTIVES-
1 – राज्य में सिविल पार्टिसिपेशन (Civil participation) का एक ऐसा तंत्र स्थापित करना जिसमे आम जिंदगी के लीडर्स को कोविड स्थिति में अपना नौलेज और एक्सपीरियंस शेयर करने का मौका और स्पेस मिले। बिना या बेहद कम ब्यूरोक्रेटिक फॉरमैलिटी के।
2 – मौजूदा और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए नई पीढ़ी के लीडर्स तैयार करना।
3 – पार्टिसिपेशन की भावना जगाकर समाज में हर तरह की राजनीतिक- सामाजिक दूरियों को कम कर एक मिशन के लिए लड़ना।
PLAN–
1 – कम्युनिटी पार्टिसिपिशेन
एक इंटीग्रेटेड एक्शन टीम बनायी जाए। जिसमें राज्य के युवा उद्यमी, आईटी एक्सपर्ट्स, पॉलिटिकल पार्टीज के युवा लीडर्स, यंग एमबीए, एमसीए, इंजीनियर्स, IITIANS वगैरह हों। इन लोगों को जहां तक हो सके एक डिसिप्लिंड तरीके से संसाधनों को इस्तेमाल करने और प्लैनिंग करने का मौका मिले। इन लोगों का बेसिक काम पूरे राज्य में चल रहे वॉलेंटियररी पार्टिसिपेशन की मॉनिटरिंग होगा।
2 – फ्रंटलाइन को डाइवर्सिफाई करना
सिर्फ सरकारी पुलिसकर्मी, डॉक्टर्स वगैरह ही क्यों फ्रंटलाइन का बोझ सहें। उनकी मदद के लिए एनसीसी, एनएसएस के जोशीले नौजवानों का यही सबसे बेहतरीन वक्त है। उन्हें मोटीवेट कर…उनका वैक्सिनेशन और एंटीबॉडी टेस्ट करवाकर फ्रंट लाइन वॉरियर्स बनवाया जाएगा।
3 – लीडर्स तैयार करना
कोविड में लीडरशिप ही जंग का नतीजा घोषित करेगी। उत्तराखंड में लीडरशिप घर घर में हैं। शुरुआत शहरों के स्कूल हेड बॉयज, हेड गर्ल्स, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के छात्र संघ पदाधिकारियों की अगुवाई में सोशल मीडिया हेल्प डेस्क टीम्स बनवाकर होगी। जो स्थानीय प्रशासन, डीएम, एसडीएम कार्यालय से अटैच होंगे। स्कूल कॉलेज से निकालकर इन बच्चों को रियल सिचुएशन में लीडरशिप का मौका मिलेगा। इनके मां बाप को गर्व करने का मौका भी।
4 – फिजिकल डिस्टेंसिंग हो ना कि पॉलिटिकल डिस्टेंसिंग
नेता आपस में झगड़ना कभी बंद नहीं करेंगे। लेकिन सिर्फ एक महीने के लिए सरकार आगे बढ़कर पॉलिटिकल स्तर पर एक शैडो कैबिनेट बनाए। जिसमें विपक्ष के नेताओं को विभागवार शैडो मिनिस्टर बनाया जाए। ये बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के सरकार के मंत्रियों को महत्वपूर्ण सलाह और ग्राउंड सिचुएश का क्रिटिकल एनालिसिस भेजेंगे।
5 – वेटरंस की विनिंग टीम
ये होंगे हमारे 60+ वॉरियर्स। इसमें राज्य के पूर्व सैनिक, पूर्व डॉक्टर्स, पूर्व इंजीनियर्स वगैरह का पूल बनाया जाएगा। ये लोग घर से ही 60 साल से ऊपर के लोगों की देखभाल के लिए प्लानिंग और एग्जिक्यूशन पर काम करेंगे। इसमें फोन हेल्प, विडियो कंसल्टेशन, रिसोर्स मैनेजमेंट, लॉजिस्टिक्स वगैरह शामिल है। ये लोग वर्क फ्रॉम होम करेंगे जिससे इनकी ऑफ्टर रिटायरमेंट लाइफ में एक्शन और डिग्निटी दोनों बरकरार रहेंगे।
6 – सही, इफेक्टिव और रेडी सोर्स ऑफ हेल्प
पहाड़ के हर जिले में कोई न कोई मिलिट्री और अर्धसैनिक इस्टैबलिशमेंट्स हैं। उनके साथ टायअप कर कोविड इंफ्रा पर काम करे। इसमें टेंपररी अस्पताल, नर्सिंग, स्पलाई चेन से जुड़ी चीजें होंगी!
7 – बॉटलनेक सॉल्यूशन पर फोकस
कम्युनिटी पार्टिसिपेशन का ये पूरा तंत्र शुरु हो जाए तो फिर बेसिक्स को पकड़ें। किसी भी समस्या का बॉटलनेक पहचान कर उसका समाधान निकालना आसान हो जाता है। कोविड की बॉटलनेक है एंट्री प्वॉइंट्स। इसलिए ऋषिकेष हल्द्वानी चकराता जैसे एंट्री प्वाइंट्स के साथ साथ शहरों गांवों के भीतर भी एंट्री प्वॉइंट्स पर चेक पोस्ट बनाएं आने जाने वालों की थर्मल स्क्रीनिंग और ट्रैवल हिस्ट्री चेक हो। इस काम में सरकार कर्मचारी नहीं यंग वॉलेंटियर्स की मदद ली जाए। उन्हें पैसे के साथ ही हाई लेवल (सीएम राज्यपाल मिलिट्री चीफ) एकनॉलेजमेंट मिलेगा।
8 – प्रॉबलम का बेस पकड़कर बेसिक सॉल्यूशन
कोविड फैलने की बेसिक दिक्कत है मास्क में कोताही या लापरवाही। पहाड़ की एक करोड़ आबादी में चार लोगों पर एक आदमी को बाहर आना पड़ रहा है तो 25 लाख लोग सड़कों पर हैं। इनमें से आधे भी मानिए कि मास्क गलत या नहीं पहन रहे हैं तो उन्हें मास्क दीजिए…10-12 लाख मास्क रोज के लगेंगे. एक महीने का मिशन हो तो कुल साढ़े तीन करोड़ मास्क लगेंगे। मार्केट रेट पर भी लिया तो एक महीने का 18 करोड़ आएगा।
9 – कोविड नियमों का दोस्त बनकर पालन करवाएं डंडे से नहीं।
शादी ब्याह बाजारों में पुलिस की जगह वॉलेंटियर्स मोर्चा संभालें। वॉलेंटियर्स वॉर्निंग देने वाला एक दोस्त की भूमिका निभाए। न सुधरे या प्यार की बात अनसुनी की तो दूसरे स्टेप में चालान या कार्रवाई हो। खासकर गरीब मजदूर- कारोबारी को चालान से पहले एक प्यार भरी वॉर्निंग से काफी फर्क पड़ सकता है।
10 – साइकोलॉजिकल हीलिंग
कोविड से जूझ रहे लोगों के लिए शहरों में वॉलेंटियर्स असिस्टेंस हो। पढ़े लिखे युवा इसमें पेशेंट की हर तरह की मदद में तत्पर रहें। आइसोलेशन में मरीज से बात हो। आईसीयू में हो तो पूरी सुरक्षा के साथ रेग्युलर विजिट हो। घर में सामान वगैरह की जरूरत हो तो पहुंचाने का तंत्र हो। परिवार के लोगों से बातचीत होती रहे। यानी एक साइकोलॉजिकल हीलिंग होती रहे।
11 – जीनोम स्क्वेंसिंग पर फोकस होगा
एक डेडिकेटेड टीम जीनोम सीक्वेंसिंग पर लगे। जिलावार कोविड पॉजिटिव का डेटा सेंट्रेल कमांड यानी INSACOG को भेजा जाए ताकी नए स्ट्रेन का पता लगाकर जिले में फैले वायरस की प्रकृति के हिसाब से तैयारियां हों। अभी अंधेरे में तीर मारे जा रहे हैं।
12- सुझाव मैक्रो लेवल पर करें अप्लाई
ये सुझाव फिलहाल मैक्रो लेवल के हैं। माइक्रो लेवल यानी कि नगर पालिका और मोहल्ला स्तर पर भी पार्टिसिपेशन की एक शानदार स्ट्रैटेजी तैयार है। उसे फिर कभी शेयर करूंगा। मेरे जैसी औसत समझ का इंसान बना सकता है तो कोई भी बना सकता है। मकसद बस यही है उत्तराखंड के आम बाशिंदे को अपनी चारों तरह मदद और आश्वासन मिलना चाहिए। मेन है पार्टिसिपेशन। उम्मीद और भरोसा वैक्सीन से ज्यादा असर कर सकते हैं।
जय हिंद
साभार-दीपक डोभल वरिष्ठ पत्रकार