ख़ौफ़…
किसी नगर में बड़ा ही सिद्ध फकीर रहता था! प्रकृति पर उसका अद्भुत नियंत्रण था! मृत्यु से रोज उसका साक्षात्कार होता! कहते हैं, मृत्यु में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बिना उस फकीर की मर्जी के नगर में किसी को छू दे!
एक दिन की बात है! फकीर अपनी साधना में लगा हुआ था! मृत्यु उसके पास आयी और बोली- कल से लेकर अगले सात दिन इस नगर के लिए बहुत मुश्किल पड़ने वाले हैं!
फकीर ने पूछा- क्यों?
मृत्यु ने कहा- एक महामारी आने वाली है! नगर को खाली कराने का लक्ष्य है उसका! इस काम में मुझे उसकी मदद करनी है!
फकीर की आंखें गुस्से से लाल हो गयीं! उसने कहा- अभी के अभी तुझे कैद कर दूँ तो महामारी अपना लक्ष्य पूरा कर पायेगी?
मृत्यु बोली- मुझे कैद करना प्रकृति के नियमों (Laws of nature) के विरुद्ध है! फिर भी यदि तुम चाहो तो मुझे कैद कर के देख लो! फिर जो होगा तुम उसे देख नहीं पाओगे!
क्या होगा? फकीर ने पूछा!
मृत्यु बोली- लोग तड़पेंगे! रोयेंगे! चिल्लायेंगे! लेकिन मरेंगे नहीं! …और ये मौत से भी भयानक होगा नगरवासियों के लिए!
ठीक है फिर! तुझे नहीं कैद करूँगा! लेकिन तू एक वादा कर मुझसे! …कि तू सिर्फ 500 लोगों को ही मारेगी!
मृत्यु बोली- ठीक है!
अगले दिन से नगर में मौत का तांडव शुरू हो गया! फकीर चुपचाप बैठा सब देख रहा था! सात दिनों में कुछ 2000 के लगभग लोग मारे गए!
फकीर ने मृत्यु को बुलाया और कहा- तू कितनी झूठी है रे! 500 लोगों का बोलकर 2000 को मार दिया? क्यों किया ऐसा तूने?
मृत्यु ने कहा- मैंने कोई वादा नहीं तोड़ा है! मैंने सिर्फ 500 को ही मारा है! बाकी के 1500 तो (महामारी के) ख़ौफ़ के कारण मरे हैं!
देश और दुनिया में भी यही हो रहा है आजकल! खौफ पैदा किया जा रहा है!
यहां कई लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे! कहेंगे कि जिसका पाला इस बीमारी से नहीं पड़ा वो ऐसे ही ज्ञान बघारता है!
…तो उन लोगों से मैं कुछ पूछना चाहता हूँ-
फरवरी के आखिर से लेकर अक्टूबर की शुरुआत तक इस देश के अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरह की बीमारियां देखने को मिलतीं हैं! लेकिन इन महीनों में जो सबसे कॉमन हैं, जैसे- डायरिया, दस्त लगना, लू लगना, सरदर्द, मलेरिया, डेंगू, इंसेफेलाइटिस (Encephalitis)…कहाँ गयीं ये सारी बीमारियां?
टेलीविजन या प्रिंट में जो सिम्पटम बताये जा रहे हैं उनमें से अधिकांश लू वाले सिम्पटम हैं! कुछ मलेरिया वाले सिम्पटम हैं!
अधिकांश डॉक्टर कई बीमारियों के लक्षणों को मिक्सर में डालकर हिला दे रहे हैं और उसे कोविड का लक्षण बता रहे हैं! इनकी मानी जाए तो फिर तो देश में हर कोई कोविड पॉजिटिव (Corona positive) है आजकल!!
मने चल क्या रहा है?
अस्पतालों में तो सामान्य परिस्थितियों में भी डॉक्टर्स, ऑक्सीजन और दवाओं की कमी देखी गयी है! ये कमी कोई नयी थोड़ी न है!
महामारी अलग विषय है और महामारी के खौफ से मची अफरातफरी अलग विषय है! बेवजह के फैले खौफ का असर क्यों नहीं दिख रहा है किसी को?
नॉर्मल बुखार में इलाज का जो खर्च कुछ सौ या हजार का पड़ता था, आज उसी के लिए कम से कम पांच या 10 हजार देने पड़ रहे हैं!
जो दवाएं आसानी से उपलब्ध थीं उनकी कालाबाजारी बढ़ गयी है! एक अदद इंजेक्शन के लिए घण्टों तक लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है!
BP और हृदय का मरीज तो ऐसे ही मर जायेगा! इंजेक्शन मिल जायेगा तो ऑक्सीजन न मिलने की टेंसन से, ऑक्सीजन मिल जायेगा तो बेड न मिलने की टेंशन से! कहाँ तक कोई बचेगा??
कुल मिलाकर कुछ अफवाहों पर विराम लगाने की जरूरत है! वरना सरकार, स्वास्थ्यकर्मी, वालंटियर्स और वे तमाम लोग जो इस नेक काम में लगे हैं, उनकी मेहनत पर पानी फिर जायेगा!
शमशान घाटों पर चिताओं की कतार तब भी लगती थी, जब कोरोना नहीं था! अस्पतालों में लाइनें तब भी लगती थीं जब कोरोना नहीं था! सड़कों पर एम्बुलेंसें तब भी सांय सांय करती दौड़ती थीं जब कोरोना नहीं था!
हमें बंद पड़ी दुकानें, खाली पड़ी सड़कें, पार्कों व खेल के मैदानों का सूनापन देखने की आदत नहीं है! लेकिन देख रहे हैं!
कोशिश कीजिये कि ये सूनापन आप पर हावी न हो! सामान्य दिनचर्या फॉलो कीजिये! नियमों का पालन कीजिये!
…और उड़ती अफवाहों से बचिए!
साभार- कपिल देव