देश का Democratic System और मुर्दों का गांव

साधो यह मुर्दों का गांव….

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ADR (Association for Democratic Reforms) ने देश के सांसदों पर एक सर्वे किया! सर्वे से निकलकर आया कि-

-देश की संसद में 82% करोड़पति घुस चुके हैं!

-लोअर हॉउस (लोकसभा) के 541 सदस्यों में 442 सदस्य ऐसे थे जिनकी चल अचल संपत्ति करोड़ों में है! (यहाँ करोड़ों से मतलब 1 या 2 करोड़ नहीं था)

-15 सांसद ऐसे हैं जो अरबपति हैं! इनमे सबसे ज्यादा सदस्य आंध्र प्रदेश से थे!

-अपर हाउस (राज्यसभा) में इन अमीरों की तादाद कुल सदस्यों का 90% है! मतलब 233 सदस्यों वाली राज्यसभा में से 205 सदस्य करोड़पति थे!

भारतीय राजनीति के इतिहास में तत्कालीन संसद को ‘धनवानों की सभा’ की संज्ञा दी गयी! 2019 की संसद का भी यही हाल है!

चुनाव आयोग के डाटा के मुताबिक, 2019 के आम चुनाव में इन पर देश के टैक्स पेयर का लगभग 50 हजार करोड़ ₹ खर्च हुआ है!

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये सब आंकड़े क्यों दे रहा हूँ?

ढाई करोड़ कोरोना पॉजिटिव, ढाई लाख से भी ज्यादा मौतें, बेसिक स्वास्थ्य सुविधाओं (Basic health facilities) के लिए परेशान लोग, दम तोड़ते मरीज, 50 लाख बेरोजगार, श्मशान से लेकर कब्रिस्तान तक कतारों में पड़े शव, घरों में बैठे करोड़ों लोग, लाठियों से पीटे जा रहे लोग…. हमारे चुने हुए धनवान माननीयों की कुशलता और नेतृत्व क्षमता का कुल जमा यही है!

आप किसी भी पार्टी का मेनिफेस्टो (Manifesto) उठाकर देख लीजिए! उनमें शिक्षा, साफ पानी, स्वास्थ्य, परिवहन, सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा, रोजगार, महंगाई….इन सब की चर्चा जरूर मिलेगी आपको! गरीब, मजदूर, महिला, नौजवान….जैसे शब्दों का बार बार जिक्र मिलेगा!

लोगों ने समय निकालकर इनकी बातों को सुना! इनके घोषणापत्र को समझा! अपना सारा काम धाम छोड़ कतारों में लगकर अपने मतदाता धर्म का पालन किया और इन्हें सदन में भेजा!

…. ताकि ये सारे लोग मिलकर अपने अपने घोषणापत्रों में उल्लिखित वादों को पूरा करेंगे! सारी कमियों दूर करेंगे! देश व देशवासियों को एक सुनिश्चित भविष्य देंगे!

लेकिन हो क्या रहा है??

जिस जनता ने इन्हें वोट, समय, टैक्स सब कुछ देकर चुना, आज उसी जनता की लाशें देश की सबसे पवित्र नदी में तैर रही हैं! लावारिस का ठप्पा लग चुका है उन पर! कोई पूछने वाला नहीं है उन्हें! उन शवों को चील, कौवे, कुत्ते और मछलियां नोंचकर खा रहे हैं!

क्या इसी दिन के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ फूंककर देश में मतदान कराये जाते हैं?

जनता इन धनवानों से इनका अपना धन खर्च करने को तो नहीं बोल रही है न? वो तो यही कह रही है कि आप अपना पैसा अपने पास रखो, लेकिन हमने देश को जो दिया है कम से कम वही हमारे ऊपर खर्च कर दो! हमें ऑक्सीजन दे दो! बेड दे दो! इंजेक्शन दे दो!

लेकिन धनवानों की ये जमात इतनी बेशर्म हो चुकी है कि कहाँ तो इस आपदा के वक्त जनता पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते….जनता की गाढ़ी कमाई से खरीदी एम्बुलेंसें तक नहीं चलवा पा रहे! कह रहे हैं कि ड्राइवर नहीं मिल रहे!

लोगों से जितना बन पड़ रहा है, वे कर रहे हैं! कोई ऑक्सीजन मुहैया करवा रहा है! कोई बेड और दवाओं के लिए मुहिम चला रहा है! कोई इंजेक्शन तो  खाना पहुंचा रहा है! …और ये कोई नयी बात नहीं है! ऐसी हर विपदा में जनता जनता के काम आयी है! एक राज्य के लोग दूसरे राज्यों के काम आये हैं!

लेकिन तुम मुर्दों का ज़मीर कब जागेगा, इसका इंतजार है! जागेगा भी कि नहीं, ईश्वर जानें!

तुम्हे वोट देकर सदन में इसलिये नहीं भेजा जाता है कि जब जनता को तुम्हारी जरूरत हो तो तुमलोग घर में बैठकर अंताक्षरी खेलो! लोगों को मास्क सिलना सिखाओ! काढ़ा बनाने का कोर्स कराओ! टीवी पर रामायण-महाभारत और अलिफ़ लैला प्रसारित करवाने के लिए वोट नहीं दिए जाते!

वोट दिए जाते हैं ताकि देश के नागरिक (जब तक वे जीवित हैं) सम्मान का जीवन जी सकें और मरने के बाद उनके शवों को उनके हिस्से का अंतिम संस्कार नसीब हो!

यदि ये दोनों काम नहीं कर सकते तो उतार फेंको अपना ये ‘सेवक’ और ‘चौकीदार’ वाला चोला! लोगों से कहो कि हमसे नहीं सम्हल पा रही तुम्हारी समस्याएं! हम मुर्दे हो चुके हैं, जमीर और ईमान दोनों से! जनता अपना विकल्प ढूंढ लेगी!

तुम जैसों के लिए कबीर कह गए हैं-

पीर मरे, पैगम्बर मरिहैं, मरिहैं ज़िन्दा जोगी,

राजा मरिहैं, परजा मरिहैं, मरि हैं बैद और रोगी।

नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं, मरि हैं सहज अठ्ठासी,

तैंतीस कोटि देवता मरि हैं, बड़ी काल की बाज़ी।

साभार – कपिल देव

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