Inflation: देश की थोक महंगाई दर में फरवरी में भी जारी रही गिरावट

बिजनेस डेस्क (राजकुमार): भारत में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित थोक मुद्रास्फीति (wholesale inflation) फरवरी 2023 में मध्यम बनी रही और 3.85 फीसदी (प्रोविजनल) रही, जबकि पिछले महीने ये 4.73 फीसदी थी, आज (14 मार्च 2023) इससे जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक किया गया। बीते अक्टूबर में कुल मिलाकर थोक महंगाई दर 8.39 थी और तब से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। खासतौर से थोक मूल्य सूचकांक (WPI- Wholesale Price Index) आधारित मुद्रास्फीति सितंबर तक लगातार 18 महीनों के लिये दोहरे अंकों में रही थी।

इस बीच देश में खुदरा मुद्रास्फीति मामूली तौर पर गिर गयी लेकिन फरवरी 2023 में दूसरे सीधे महीने के लिये ये आरबीआई (RBI) के 6 फीसदी ऊपरी टॉलरेंस बैंड से ऊपर रही, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 6.44 फीसदी पर आंका गया। ग्रामीण और शहरी भारत में खुदरा मुद्रास्फीति क्रमशः 6.72 प्रतिशत और 6.1 प्रतिशत थी। इसके तहत अनाज उत्पाद और फलों ने फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ाने में योगदान दिया।

इसके अलावा बीते फरवरी महीने में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक 5.95 फीसदी था, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है। सब्जियों की खुदरा महंगाई दर हालांकि 11.61 फीसदी घटी। जनवरी में खुदरा महंगाई दर 6.52 फीसदी थी। देश की खुदरा मुद्रास्फीति लगातार तीन तिमाहियों के लिये आरबीआई के 6 प्रतिशत लक्ष्य से ऊपर थी और नवंबर 2022 में ही आरबीआई के कम्फर्ट जोन में वापस आने में कामयाब रही।

लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे के तहत अगर सीपीआई बेस्ड मुद्रास्फीति लगातार तीन तिमाहियों के लिये 2-6 प्रतिशत की सीमा से बाहर है तो आरबीआई को मूल्य वृद्धि के मैनेजमेंट में नाकाम माना जाता है। पिछले साल मई से आरबीआई ने मुद्रास्फीति को कम करने के लिये ताजातरीन 25 बीपीएस बढ़ोतरी समेत अल्पकालिक उधार दर में 250 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि की है। रेपो दर बढ़ाने से अर्थव्यवस्था में मांग को कम करने में मदद मिलती है और इस तरह मुद्रास्फीति को मैनेज करने में बड़ी मदद मिलती है।

ब्याज दरें बढ़ाना एक तरह का मौद्रिक नीति साधन है, जो कि आम तौर पर अर्थव्यवस्था में मांग को दबाने में मदद करता है, जिससे मुद्रास्फीति की दर में गिरावट आती है।

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