नई दिल्ली (राम अजोर): कोरोना इंफेक्शन ने दिखा दिया है कि, देश की मेडिकल व्यवस्था अंदर के कितनी खोखली और सड़ी हुई है। भले ही सरकारें इन पर फूल बरसाये, कोरोना वॉरियर्स (Corona warriors) कहकर इन्हें सम्मानित करे। लेकिन देश के मेडिकल ढांचे (Medical infrastructure) की चरमराई हुई पर्ते आखिरकर सामने आ ही जाती है। आम आदमी का सामना जब इस लगड़ाते सिस्टम से होता है तो, ज़मीनी हकीकत (Ground reality) की बेरहम मार के सामने उसे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ता है। कोरोना इंफेक्शन (Corona infection) के इन अभूतपूर्व हालातों ने साबित कर दिया है कि भले ही सरकारें काम करने का कितना ही दम भरे ले, लेकिन आम जनता उसके लिए एक वोटर आईडी नंबर (Voter ID Number) है। जो सिर्फ पांच साल में एक बार काम आता है।
कुछ इन्हीं हालातों का शिकार बने राजधानी दिल्ली में आनंद पर्वत गली नं-17 के निवासी कौशल कुमार (Kaushal Kumar)। जिन्होनें लापरवाह मेडिकल व्यवस्था के तले दम तोड़ दिया। बीती 29 मई को लो ब्लड़ प्रेशर, कमजोरी और सांस लेने में तकलीफ के चलते परिजनों ने फोन पर जीवनमाला (Jeewan Mala Nursing Home) और बाली (Bali Nursing Home) में भर्ती करवाने के लिए सम्पर्क किया। फोन पर ही दोनों नर्सिंग होम्स (Nursing Homes) ने भर्ती लेने से साफ इंकार कर दिया। परेशान होकर परिजन उन्हें जयपुर गोल्डन (Jaipur Golden Hospital) और ब्रह्मशक्ति अस्पताल (Brahmshakti Hospital) ले गये, जहां गेट से ही उन्हें वापस कर दिया गया। ऐसे में कई बड़े सवाल उठते है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से मरीज़ों का तुरन्त इलाज़ करने के सख़्त निर्देश (Strict instructions) जारी करने के बावजूद अस्पतालों और नर्सिंग होम्स का ये रवैया दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था (Delhi Administrative System) पर कई बड़े सवालिया निशान लगाता है। इस दौरान लगातार मरीज की हालत खराब होती चली गयी। आखिरकर उन्हें रोहिणी के अम्बेडकर अस्पताल (Ambedkar Hospital) ले जाया गया। जहां तकरीबन 1 घंटा इंतज़ार करवाने के बाद उन्हें भर्ती लिया गया। भर्ती (Admit) होने के 4-5 घंटे बाद उन्हें वेंटीलेंटर पर ले जाया गया। इस दौरान अस्पताल में शुरू से लेकर आखिर तक उनके साथ हर मौके पर मेडिकल लापरवाही (Medical negligence) बरती गयी। अम्बेडकर अस्पताल के मेडिकल स्टॉफ का काम करने का तौर-तरीका बेहद लापरवाह और गैर-पेशेवराना (Unprofessional) था। इलाज के दौरान लगभग हर स्तर पर मेडिकल प्रोटोकॉल (Medical protocol) और चिकित्सकीय मानक संचालन प्रणाली का उल्लंघन (Violation of Medical Standard Operating System) होता रहा।
इस दौरान अस्पताल प्रशासन (Hospital administration) ने कौशल कुमार के परिजनों से खाली कागज़ पर साइन करवाने की कोशिश भी की। उन्हें Ventilator पर बिना Food Pipe तीन दिन रखा गया। IV Bottle खत्म होने पर अस्पताल कर्मी घंटो बाद नयी बोतल लगाते थे। इसके लिए भी परिवारवालों को कई बार मिन्नतें करनी पड़ती थी। इस बीच Doctor कौशल कुमार को देखने कम ही आते थे। Doctors ने अपने हिस्से का काम Ventilator Technician को सौंपा रखा था। 31 मई को Ventilator पर Respiratory Reading Blank आने के साथ परिजन ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर्स (Doctor on Duty) से उन्हें देखने की गुहार लगातार लगाते रहे, लेकिन कोई भी Doctor उनकी सुध लेने नहीं आया। ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर अपने कमरे से निकलने को तैयार ही नहीं थे। डॉक्टरों का कहना था कि PPE Kit पहननी पड़ेगी, इसलिए हम मरीज़ को देखने नहीं आ सकते। लापरवाही की हद तो तब हो गयी, जब अस्पताल के नर्सिंग स्टॉफ (Nursing staff) ने कोरोना रिपोर्ट आने से पहले ही कौशल कुमार को अस्पताल के कागज़ों में कोरोना पॉजिटिव घोषित कर दिया। परिजनों के विरोध जताने के बाद स्टॉफ ने कागज़ में तुरन्त बदलाव कर दिया। ऐसे में अस्पताल का रवैया उन लोगों के प्रति और भी अमानवीय (Inhuman) रहता होगा, जो निरक्षर (Illiterate) है जिन्हें कागज़ो और मेडिकल प्रोटोकॉल की बुनियादी समझ ही नहीं होती है। अस्पताल कर्मियों की लापरवाही के बीच कौशल कुमार ने दम तोड़ दिया। काफी देर बाद Ventilator Technician ने औपचारिकता पूरी करते हुए, उन्हें मृत घोषित कर दिया। और इस तरह निर्मम तन्त्र (Ruthless system) के सामने एक और ज़िन्दगी हार गयी।
व्यवस्था की मार यहीं नहीं थमती। कौशल कुमार की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। परिजनों को कोरोना रिपोर्ट के नाम पर MS-Excel पर बेतरतीबी (Unstructured Manner) से छपा कागज़ का एक टुकड़ा थमा दिया जाता है। रिपोर्ट के नाम पर दिये गये, इस दस्तावेज़ में किसी तरह की कोई official Formatting नहीं है। और ना ही ये किसी तरह का आधिकारिक दस्तावेज़ (Official document) दिखता है। ऐसे में ये भी सवाल उठते है कि, क्या दी गयी कोरोना रिपोर्ट वास्तव में वैध (legitimate) है? क्या मरीज़ों का हो रहा कोरोना टेस्ट तयशुदा चिकित्सकीय प्रक्रिया (Prescribed medical procedure) से हो रहा है? रिपोर्ट का ढ़ांचा (Formatting Structure of Corona Report) ऐसा है कि इसे किसी भी न्यायालय (Court) में चुनौती नहीं दी जा सकती। कोरोना पॉजिटिव (Corona positive) होने के बावजूद उनके शव को अस्पताल प्रशासन परिजनों के सुपुर्द (Handed over) कर देता है। जबकि कायदे से प्रशासन को उनका अंतिम संस्कार (Funeral) करना चाहिए था। उनके घर पर अधिकारी कोरोना पॉजिटिव होने का नोटिस तक चस्पा (Paste) नहीं करते। परिवार वालों को कोरोना टेस्ट कराने के लिए काफी भटकना पड़ रहा है। टेस्ट सेंटर जाने पर पता लगाता है कि, टेस्ट किट उपलब्ध ही नहीं है। जब परिवार वाले प्राइवेट लैब (Private lab) की ओर रूख़ करते है तो, वहाँ से ज़वाब मिलता है कि अभी दिल्ली सरकार ने टेस्ट करने के लिए मनाही कर रखी है। ऐसे में बड़ा सवाल (Big Question) ये उठता है कि, क्या दिल्ली सरकार टेस्ट कम करके संक्रमण आंकड़ों के साथ खेल रही है? अगर टेस्ट कम होगें तो इंफेक्शन आंकड़े ज़ाहिर तौर पर कम ही आयेगें।
ये सिर्फ एक कौशल कुमार का किस्सा था। ऐसे कई किस्से देशभर में अनसुने ही रह जाते है। जहां सुध लेने वाला कोई नहीं होता। बेबसी और तकलीफ़ के चलते लोग अपने साथ हुई नाइंसाफी (Injustice) के खिल़ाफ आवाज़ तक नहीं उठा पाते। सरकारें सिर्फ आंकड़े छिपाकर छवि चमकाने के काम में लगी हुई हैं। आम जनता (General public) उनके लिए सिर्फ मोहरे है, जिसके दम पर शतरंज की बिसात (Chess board) पर सियासी चालें (Political Moves) चली जाती है। देश का प्रशासनिक ढ़ांचा 70 सालों से इंसानियत से दूरी बनाये हुए है। जब तक ये दूरी खत्म नहीं हो जाती, तब-तक लापरवाह व्यवस्था (Careless system) के सामने ऐसे कई कौशल कुमार दम तोड़ते रहेगें।