नई दिल्ली (प्रगति चौरसिया): भारत ने वक्त के साथ कई प्राकृतिक आपदाओं, बीमारी एवं महामारी जैसी गंभीर समस्याओं का सामना किया है। बहरहाल मानव शक्ति, एकता और वैज्ञानिक सामंजस्य द्वारा हमने इन विपदाओं को घुटने टेकते हुए भी देखा। लेकिन तेजी से फैल रही ये बीमारी जिसे दुनिया कोरोना के नाम से जानती है। ये इंसानियत के लिए बद्दुआ सी बन गई है। इसकी चपेट में आने से, होने वाली मौतों में रोजाना बड़ी तादाद में इजाफा हो रहा है। पहली दफा इस बीमारी ने चीन के वुहान शहर में आंखें खोली। और देखते ही देखते इसने कई लोगों को हमेशा के लिए आंखें मूंदने को मजबूर कर दिया। सुपरपावर (अमेरिका) ने भी बेबस होकर इसके सामने हाथ खड़े कर दिये। शायद इसके पीछे वजह ये रही कि, इसके खिलाफ अभी तक वैक्सीन बनाने में ठोस कामयाबी नहीं मिली।
कोरोना वायरस सिर्फ चिकित्सा संकट नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक संकट भी
अंदरूनी तौर पर बढ़ने वाली इस बीमारी के मद्देनज़र सरकार ने 24 मार्च को 21 दिनों के लॉकडाउन का फरमान जारी किया। जिसे हाल ही में बढ़ा कर 3 मई कर दिया गया है। इससे ये पुख्ता हो जाता है कि, देश में सामाजिक और आर्थिक हालातों पर गहरा असर पड़ रहा है। इसी के चलते कारोबारी दुनिया के साथ कई छोटे कारोबारियों, मज़दूरों और कई दूसरे मुलाजिमों का काम ठप्प पड़ गया है। रोज़गार न होने की वजह से दिहाड़ी मजदूर और इन्फॉर्मल सेक्टर में काम कर रहे मजदूरों के हालात पलट गए हैं। सरकारी मदद से पेट भर रहा है, अगर मदद ना मिले तो चूल्हा ठंडा ही रहता है। ऐसे में बेरोजगारी जमकर बढ़ रही है।
कई कॉरपोरेट एवं लघु उद्योग ने अपना रवैया दिखाना शुरू भी कर दिया है। आने वाले कल में नौकरी मिलने की गुंजाइश तो छोड़ दीजिए। मौजूदा नौकरी पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
मुश्किल हालातों से घिरी इकोनॉमी
वायरस की मार झेल रही दुनिया भर की 15 अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत भी है। चीन के प्रोड्क्शन सेक्टर में आई गिरावट का असर हिंदुस्तान को भी झेलना पड़ेगा। मोटे तौर पर इससे हमें 34.8 करोड़ डॉलर का नुकसान झेलना पड़ सकता है। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक इस महामारी की वजह से देश की जीडीपी 3% तक गिर सकती है। यही वजह है कि सरकार ने वित्तमंत्री की अध्यक्षता में covid- 19 आर्थिक प्रतिक्रिया बल के गठन का फैसला किया। जो आर्थिक संकट में लिए गए फैसलों का कारगर ढंग से क्रियान्वयन हो इसकी देखरेख करेगा।
पहले से ही मंदी में घिरी भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामारी के कारण हुए लॉकडाउन का गहरा असर पड़ता दिख रहा है। माना जा रहा है कि इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर मात्र 4.7% ही रहेगी।
ध्यान देने की बात :-
- भारत की Price Chain चीन से जुड़ी हुई है जिनमें से फार्मा उद्योग एक है।
- सूती धागे, समुद्री भोजन, पेट्रोकेमिकल, रत्न और आभूषण के लिए चीन भारत का सबसे बड़ा बाजार है।
- कोरोना संकट ने निर्यातकों को भी उलझन में डाल रखा है स्थिति अगर ऐसी रही तो मत्स्य पालन क्षेत्र को 1,300 करोड़ से भी अधिक का नुकसान हो सकता है।
- जयपुर में रत्न और आभूषण निर्यातकों का कहना है कि, फरवरी-अप्रैल के बीच चार मुख्य व्यापार कार्यक्रमों को रद्द करने से कारोबार लिहाज से 8000 – 10000 करोड़ का नुकसान हो चुका है।
- देश में पर्यटन एवं विमानन सेक्टर कि हालत खराब है। कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित होने से औषधि और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग पर असर पड़ रहा है।
सामाजिक स्थिति पर कोरोना का हमला
सामाजिक तौर पर देखा जाए तो इस महामारी का लोगों की व्यक्तिगत मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। सोशल डिस्टेंस ने लोगों को घरों में लॉक कर दिया है। कई दिनों से रोज़गार एवं अन्य क्रियाओं के रुक जाने से व्यक्ति असमंजस में है। कई लोग इसका पारिवारिक स्तर पर लुत्फ़ उठा रहें तो दूसरी ओर कुछ लोग घर बैठे बोरियत और अवसाद से जूझ रहे हैं। अर्थात जिनकी जेब खाली है, वह परिवार का पेट पालने की चिंता में है, तो वही कुछ लोग ऐसे भी है जिनकी जरूरतों की आपूर्ति तो हो रही है पर दोस्तों एवं करीबियों से न मिलने के कारण अकेलापन और अवसाद जैसी हालात झेलने पड़ रहे है। परिस्थिति ऐसी ही रही तो इससे घरेलू हिंसा, चिड़चिड़ापन, अशांति, मतभेद जैसी समस्याएं उजागर होने के आसार है।
सेवा या दिखावा ?
इस महामारी के दौरान ये भी देखा जा रहा है कि, कई निजी संगठन, राजनीतिक एवं फिल्मी कलाकार ज़रूरतमंदों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। बुनियादी चीजों की आपूर्ति के लिए फल,सब्जी,राशन का बंदोबस्त करने के साथ वे गरीबों एवं जरूरतमंदो के घरों तक पहुंचकर चीजें बांटने के साथ उस गुण का बखान या यूं कहें सोशल स्टेट्स के लिए फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड करने की होड़ में लगे हुए हैं। इस वज़ह से जरूरतमंदो एवं निचले तबकों में नाउम्मीदी पैदा हो रही है। इसे देखकर यही याद आता है कि, हमें बचपन से सिखाया जाता है कि नेकी कर दरिया में डाल। लेकिन मौजूदा हालातों में लोगों की जमीनी सोच को देखकर लगता है कि सोशल स्टेट्स की मान्यता किसी गरीब की जरूरतों को पूरा करने से ज्यादा जरूरी हो गई है।
सांप्रदायिक वायरस
कुछ दिनों पहले तब्लीगी जमात के मरकज़ में बड़ी तादाद में लोगों के जमा होने की वजह से इंफेक्शन का खतरा और भी बढ़ गया। जिसका नतीजा केंद्र और प्रदेश सरकार के साथ कई निर्दोष लोगों को भी झेलना पड़ा।ज़मातों का कहना था कि लॉकडाउन मुस्लिम समुदाय की धार्मिक विश्वसनीयता को धूमिल करने की सोची समझी साजिश है। जिसे वह अंजाम नहीं होने देंगे। इसी मानसिकता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने न केवल देशभर से बल्कि विश्व भर की कई जगहों से तब्लीगी जमातों का हुजूम इकट्ठा कर लिया। यही वजह है कि संक्रमण देश भर में तेजी से बढ़ता चला गया। गौरतलब है कि महामारी के साथ ये सांप्रदायिक समस्या बन कर भी उभरा। किसी ने मुसलमानों की नियत पर सवाल उठाए तो, किसी ने जमातों की मानसिकता को पूरी मुस्लिम कौम से ही जोड़ दिया। अब होना क्या था ? देश में सांप्रदायिक घटनाओं को तूल पकड़ते देर नहीं लगती। ये भी देखा गया कि कुछ असामाजिक तत्वों ने मुस्लिम समुदाय द्वारा फल एवं सब्जियों को जूठा करते हुए वीडियो वायरल किया। जो पड़ताल के बाद गलत साबित हुआ। बेशक इस पूरी घटना में तब्लीगी जमात की गलती थी, लेकिन इस आग में घी डाल कर सालों से दो बड़े मजहबों के बीच की खाई को और भी गहरा कर दिया गया।
अनेकता में एकता
तमाम परेशानियों और संघर्षों के बावजूद एक बेहतर खबर ये है कि, मुल्क के अलग-अलग हिस्सों से मजहब, नस्ल, कौम, सोशल स्टेटस के परे सभी वर्गों ने प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में अपनी हैसियत के मुताबिक पैसे की मदद देकर, ये दिखा दिया कि पूरा हिंदुस्तान एक धागे में पिरोया हुआ है। जहां विविधता होने के बावजूद सब एक है। सिनेमाई दुनिया हो या राजनीतिक, आम आदमी से लेकर उद्योग जगत ने इस नीति में साथ देते हुए देश और प्रधानसेवक का ढांढस बनाए रखा है।