एजेंसी/न्यूज डेस्क (गंधर्विका वत्स): पाकिस्तान में हाल ही में चीनी इंजीनियरों पर हमले हुए। ये इंजीनियर चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में विभिन्न परियोजनाओं में काम कर रहे थे। सोशल मीडिया पर पाकिस्तान में काम कर रहे इंजीनियरों और मजदूरों की तस्वीरें सामने आयी है, जिनमें वो एके 47 से लैस होकर काम कर रहे है ताकि आंतकी हमला होने के हालातों में वो आंतकियों से लोहा ले सके।
गौरतलब है कि बीती 14 जुलाई को पाकिस्तान के उत्तरी प्रांत खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) में दसू बांध परियोजना में काम कर रहे इंजीनियरों को ले जा रही बस पर हमला हुआ था। इस हमले में नौ चीनी इंजीनियरों की मौत हो गयी। पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर पहली बार हुए इस हमले की जांच के लिये बीजिंग ने अपनी जांच टीमों को मौका-ए-वारदात के लिये रवाना किया।
चीनी इंजीनियरों और कामगारों के हथियारों उठाने पर पाकिस्तान की दो विशेष सुरक्षा डिवीजनों (एसएसडी) पर अब सवाल खड़ा हो गया है। साल 2016 में 34 लाइट इन्फैंट्री डिवीजन और साल 2020 में 44 लाइट इन्फैंट्री डिवीजन (Light Infantry Division) बनायी गयी। दोनों डिवीजनों ने 15,000 सैनिक हैं। इन विशेष सुरक्षा डिवीजनों का काम पाकिस्तान में चीनी कामगारों और उनकी संपत्तियों की सुरक्षा करना है। जिसमें दोनों फिलहाल नाकाम दिख रही है।
पाकिस्तान में चीनी श्रमिक कई मेगा प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। CPEC जो चीन के पश्चिमी क्षेत्र को अशांत अस्थिर बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है। इस प्रोजेक्ट का मकसद चीनी उत्पादों को पश्चिम एशिया में व्यापक बाजार मुहैया करवाना है लेकिन कई विश्लेषकों ने इस परियोजना की व्यवहार्यता (Project feasibility) और वित्तीय प्रभाव के बारे में सवाल उठाये हैं।
इस परियोजना में अरबों डॉलर लगाये जाने के साथ ही इसमें काम कर रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जा रहा है। ये माना जाता है कि बीजिंग इस्लामाबाद को वित्तीय सहायता प्रदान करता रहा है ताकि सुरक्षा कवर दिया जा सके लेकिन दासू हमला इस्लामाबाद की नाकामियों की ओर इशारा कर रहा है।
इस बीच ये मिद्दा पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों और चीनी कामगारों के बीच तनातनी की वज़ह भी रहा है। अतीत में पाकिस्तानी सेना के वाहनों का इस्तेमाल कर रेड लाइट एरिया में चीनी कामगारों के आने जाने को लेकर दोनों के बीच लड़ाइयां देखी गयी है।
एके 47 की तस्वीरें ये भी सवाल खड़े करती हैं कि चीनी नागरिकों ने कैसे हथियारों को थाम लिया। वो भी ऐसे इलाके में जहां विकास परियोजनाओं में काम करने के साथ बीजिंग और तालिबान लगातार एक दूसरे के सम्पर्क में है। इस इलाके पर कई अंतरराष्ट्रीय आतंकी समूहों का सीधा असर देखा जा सकता है।
हाल ही में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता एक लेख लिखा जिसमें कहा गया कि, तालिबान को दुश्मन बनाना चीन के हित में नहीं होगा। इसके साथ ही तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन (Taliban spokesman Suhail Shaheen) ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिये इन्टरव्यूह में कहा कि हमें कुछ ऐसा करना होगा कि चीन को लगे कि हम उसके दोस्त है। इसलिये तालिबान उइगर आतंकवादियों की मेजबानी नहीं करेगा।
बता दे कि उइगर चीन के शिनजियांग प्रांत में रहने वाले मुसलमान हैं, जो कि अफगानिस्तान के सीमाई इलाके मध्य एशिया के साथ जातीय संबंध रखते हैं। इस इलाके में चीनी अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। जिसके कारण उइगरों में चीनी नेतृत्व के खिलाफ विरोध और विद्रोह के सुर मुखर बनाते जा रहे है। इसी कारण उइगर चीन के खिलाफ अलगाववादी समूह तैयार कर सशस्त्र विरोध करने की जुगत में है। माना जा रहा है कि अंदरखाने कई इस्लामिक चरमपंथी गुटों के साथ उइगरों को मिल सकता है, जिसके दम पर वो चीनी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल सकते है।