Economic Crisis In Sri Lanka: भारत पर छाया श्रीलंकाई शरणार्थियों का संकट, कोलंबो को बेलआउट पैकेज से उम्मीदें

न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): Economic Crisis In Sri Lanka: भारत के पड़ोसी देशों में बढ़ती राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता ने नई दिल्ली की चिंतायें बढ़ा दी है। पाकिस्तान में अब एक परिवार की सरकार आ गयी है और वहां ISIS का खतरा बढ़ गया है। एशिया क्षेत्र में बढ़ती अस्थिरता के कारण चीन अपनी परमाणु शक्ति का विस्तार कर रहा है। नेपाल में भी विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के कारण आवश्यक वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। और हम सभी श्रीलंका की स्थिति से वाकिफ हैं।

श्रीलंका के आर्थिक संकट ने भारत की चिंता और बढ़ा दी है। श्रीलंका के लोग अब अपनी जान बचाने के लिये भारत में शरण लेना चाहते हैं और पिछले दो हफ्तों में कई श्रीलंकाई नागरिक समुद्र के रास्ते भारत के तमिलनाडु में आये हैं।

अगर श्रीलंका के हालात जल्द नहीं सुधरे तो पलायन बहुत गंभीर मोड़ लेगा और मुमकिन है कि स्थिति ठीक वैसी ही हो जाये जैसी श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान थी। साल 1983 और 2009 के बीच द्वीप राष्ट्र श्रीलंका में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) और श्रीलंकाई सेना के बीच लड़ाई हुई थी। उस समय 1990 से 2009 के बीच 16 लाख श्रीलंकाई नागरिकों ने भारत में शरण ली थी, जिससे दक्षिण भारत के शहरों में अस्थिरता और हिंसा का माहौल बढ़ गया था।

श्रीलंका के जाफना (Jaffna) में मछुआरे समुद्र के रास्ते भारत आना चाहते हैं। हालांकि श्रीलंका की सेना इन लोगों को रोकने की पूरी कोशिश कर रही है।

श्रीलंका पर वर्तमान में अन्य देशों का लगभग 5,100 मिलियन डॉलर बकाया है। और इसका विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो गया है। दूसरे देशों का कर्ज चुकाने की बात तो दूर श्रीलंका के पास अपने देश के लोगों का पेट भरने के लिये पैसे नहीं बचे हैं।

विदेशी मुद्रा के अभाव के कारण इसके खाने-पीने के लिए ईंधन का आयात बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इस झंझट में अब श्रीलंका को अपने लोगों का पेट भरने के लिए आईएमएफ और दूसरे देशों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है।

श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से बेलआउट पैकेज की उम्मीद कर रहा है लेकिन आईएमएफ (IMF) ने उसे कोई अतिरिक्त मदद नहीं दी है। श्रीलंका में अभी जो आर्थिक आपातकाल मौजूद है, वो किसी भी कर्ज में डूबे देश या संस्था के लिये सबक है कि कर्ज के सहारे कुछ समय के लिये अर्थव्यवस्था को खींचा जा सकता है, लेकिन कोई भी देश अकेले उसके दम पर आगे नहीं बढ़ सकता।

कर्ज की भी एक लिमिट होनी चाहिये। श्रीलंका ने उस सीमा की अनदेखी की और आज नतीजे पूरी दुनिया के सामने हैं। श्रीलंका सरकार की नजर अब न्यूयॉर्क में आईएमएफ के साथ होनी वाली बैठक पर है। इसके लिये 18 अप्रैल को श्रीलंका के वित्त मंत्री के साथ एक टीम न्यूयॉर्क जायेगी।

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More